Hindi Kavita on Life | शतरंज सा जीवन
समय ऐसा बदल रहा है
जीवन जैसे शतरंज का खेल
जैसा हो गया है,
शतरंजी बिसात पर ये जीवन
बिछ सा गया है।
शह मात का खेल अब तो
हम सबके जीवन में चल रहा है
कौन कब आड़ा तिरछा आकर
हमें ढकेलकर गिरा रहा है,
मैदान से बाहर कर रहा है
पता लगना तो दूर की बात है
अहसास तक नहीं हो पा रहा है।
राजा हो या रंक सब मौके तलाशते हैं,
पलक झपकते ही वार कर जाते हैं,
तनिक दया नहीं दिखाते हैं
जानवर तो जानवर
इंसान को भी कसाई बन काटते हैं।
कौन कब हमें खेल से बाहर कर
हमें दुनिया से बाहर कर दे
अब तो हम आप कहाँ जान पाते हैं
शतरंज के प्यादों की तरह
जीते और मर जाते हैं।
सबको एक दिन जाना है
चार दिन का ये जीवन है
इस पर न तू गुमान कर,
मानव तन जो पाया है तो
मानवता का काम कर।
राग, द्वेष , निंदा, नफरत में
समय न तू बर्बाद कर,
सेवा, दया, परोपकार से
सबके दिल पर राज कर।
छोटी सी है जिंदगी ये
सबसे ही तू प्यार कर
न कोई अपना, न ही पराया
सबसे सम व्यवहार कर।
इस धरती पर जो भी आया
सबको ही एक दिन जाना है,
अमरता का घमंड न कर तू
तुझको भी आखिर जाना है।
हर रिश्ता है महज कल्पना
कोई नहीं सयाना है,
तन का पिंजड़ा कब छोड़ जायेगा
यह कहाँ किसी ने जाना है।
अंतिम यात्रा
कड़ुआ पर सच है
जीवन में अनगिनत यात्रियों
के बाद हमें अंतिम यात्रा पर
जाना ही होगा,
हम लाख इस सत्य से दूर भागते रहें
सच से मुंह छुपाते भागते रहें
पर बच नहीं पायेंगे,
अंतिम यात्रा से मुक्त होने का मार्ग
या छुपने का स्थान भला कहाँ पायेंगे?
जो आया है वो जायेगा भी
जन्म संसार की यात्रा का शुभारंभ है
मृत्यु इस संसार से विदाई संग
अंतिम यात्रा का निश्चित अनुबंध है।
अगर आप की कोई कृति है जो हमसे साझा करना चाहते हो तो कृपया नीचे कमेंट सेक्शन पर जा कर बताये अथवा contact@helphindime.in पर मेल करें.
कृपया कविता को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और whats App पर शेयर करना न भूले, शेयर बटन नीचे दिए गए हैं। इस कविता से सम्बंधित अपने सवाल और सुझाव आप नीचे कमेंट में लिख कर हमे बता सकते हैं।
Author:
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.