🌷🏵♥माँ♥🏵🌷
विश्वास नहीं होता है , चली गई यूं छोड़ हमें,
सारी दुनियाँ दिखती है,पर तू दिखती नहीं हमें।
अंर्तमन से चित्र एक पल, धुंधला कभी नहीं होता,
एक बार आकर तू क्यों, गले लगाती नहीं हमें।
अपने अंर्तमन की पीड़ा का ,भंडार छिपाये रखा था,
आकर क्यों पीड़ा की गठरी ,खोल दिखाती नहीं हमें।
नादान तेरे हैं ये बच्चे, तनिक तरस न आता क्या?
सपने में ही आकर बस ,ममता अपनी दिखला दे हमें।
भूल तो बच्चे करते रहते, तू ये बात समझती है,
ऐसी गुस्ताखी क्या कर दी,जो सजा असहय दे रही हमें।
माफ करो हे माँ हमको,हम सब हँसना भूल गये,
गुस्सा छोड़ अब आ जाओ,गले लगाओ जल्द हमें।
या फिर ऐसा कर माते,हमें बुला ले वहीं हमें,
ऐसी मजबूरी थी क्या,क्यों इतनी कठिन सजा दी हमें।
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About Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002