Motivational Story | ईमानदारी भरी जिद
पापा आज रिटायर हो गए थे। घर आने पर उनका चेहरा मायूस दिख रहा था। जाहिर सी बात थी इतने लंबे समय तक जिनके साथ काम किया, उनसे बिछड़ने का तो गम होना ही था। हालांकि, एक और बड़ी वजह थी इस निराशा की। आर्थिक तौर पर अब परेशानियां पैदा होने वाली थीं।
मानसी अपने पिता के चेहरे पर उभर रही मायूसी को साफ तौर पर देख पा रही थी। वह भी अपने पिता के साथ चिंतित होने लगी थी। उसके मन में यही ख्याल आ रहा था कि पापा ने जितना भी कमाया, अधिकतर पैसा मम्मी के इलाज में ही खर्च हो गया। अब तो पेंशन के रूप में आधी सैलरी ही मिलेगी। गुजारा करना अब और कठिन हो जाएगा।
बस यही सोचते-सोचते मानसी ने ठान लिया कि कम-से-कम अपना खर्च तो वह अपने पापा से नहीं मांगेगी। सोच लिया उसने कि करना तो अब कुछ अपने दम पर है। कोई-न-कोई नौकरी तो अब करनी ही पड़ेगी। मास्टर्स मानसी का पूरा हो गया था। रिजल्ट आने का इंतजार था।
उसका झुकाव मीडिया की ओर हो रहा था। अच्छा लिख लेती थी। सोचा कि क्यों न किसी अखबार में नौकरी की कोशिश की जाए। मानसी ने पता लगाना शुरू किया। इसी दौरान उसे पता चला कि एक अखबार में वैकेंसी आई है। वह भी अपने दोस्तों के साथ इंटरव्यू देने के लिए पहुंच गई।
तभी फोन आ गया कि मम्मी की तबीयत खराब है। सब कुछ छोड़ कर मानसी घर की तरफ दौड़ गई। मम्मी की सांसें फूल रही थीं। अस्पताल ले जाने की तैयारी हो रही थी। एंबुलेंस भी आ गई थी, लेकिन फिर मम्मी कहने लगी कि नहीं-नहीं अब मुझे आराम है। हॉस्पिटल जाने से मम्मी ने मना कर दिया। वह भी शायद यही सोच रही थी इतना पैसा पहले से ही मुझ पर खर्च हो चुका है। अब तो पति भी रिटायर हो गए हैं और कितना खर्च करवाऊं।
मम्मी घर पर ही रह गई। धीरे-धीरे उन्हें आराम मिल गया। मानसी पापा से बोली, पापा मैं बस एक-दो घंटे में आ रही हूं। कह कर घर से निकल गई। अखबार के दफ्तर पहुंच गई। वहां पता चला कि इंटरव्यू की प्रक्रिया पूरी हो गई है। फिर भी मानसी ने अनुरोध किया। ऐसे में उसे एक मौका दिया गया। अगले दिन से ऑफिस आने के लिए कह दिया गया। संपादक ने कहा कि एक महीना बतौर प्रक्षिशु काम करना पड़ेगा। काम अच्छा रहा तो पक्की नौकरी हो जाएगी।
मानसी घर पहुंची। किसी तरीके से घरवालों को मनाया। घरवाले सुरक्षा को लेकर बड़े चिंतित थे। फिर पापा मान गए। सोचा कुछ तो पैसे घर में आ जाएंगे।
मानसी अगले दिन से ऑफिस जाने लगी। मानसी ने जितना सोचा था यह काम इतना भी आसान नहीं था। सुबह बैठक होती थी। 10 बजे पहुंचने के साथ ही उस दिन के आर्टिकल को लेकर आईडिया देना होता था। फिर दिन भर के कार्यक्रमों के असाइनमेंट मिलते थे। यहां-वहां जाकर खबर जमा करना। जो बीट मिली है, उससे संबंधित खबरें ढूंढना। शाम 4 बजे ऑफिस पहुंच जाना। यहां अपनी खबरें लिखना। 8 बजे तक रात काम करना। 10 बजे तक रात में घर पहुंचना। यह उसकी रोज की दिनचर्या बन चुकी थी।
बेटी के रात में घर लौटने की वजह से परिवार वाले बड़े चिंतित रहते थे। बड़ा दबाव बन रहा था कि वह नौकरी छोड़ दे। फिर भी किसी तरीके से मानसी ने एक बार फिर से अपने घर वालों को मनाया। मानसी अपने काम में लगी रही। धीरे-धीरे ऑफिस में उसके काम को पसंद किया जाने लगा। मानसी की लेखनी धीरे-धीरे अच्छी होती जा रही थी। हर ओर से उसे तारीफें मिलने भी शुरू हो गई थीं।
मानसी को लगा कि सबकुछ अब ठीक होता जा रहा है। अब पैसे भी आने लगे थे। मानसी अपना खुद से खर्च निकाल रही थी।
हर दिन की तरह मानसी एक रात घर लौट रही थी। उस वक्त रात के सवा 10 बज रहे थे। मानसी ऑटो रिक्शा से उतरी और अपनी गली में पैदल अपने घर की ओर बढ़ने लगी। तभी मानसी को लगा कि कोई उसके पीछे-पीछे आ रहा है। मानसी ने मुड़कर देखा तो कोई नहीं था। फिर आगे बढ़ी तो फिर उसे महसूस हुआ कि कोई उसका पीछा कर रहा है। पीछे मुड़कर देखा तो कोई नजर नहीं आया। मानसी को लगा कि यह उसका वहम है।
दो कदम और बढ़ी ही थी कि किसी ने पीछे से उसे पकड़ कर उसका मुंह बंद कर दिया। मानसी की नाक भी बंद हो गई थी। सांसें उसकी फूलने लगी थीं। मानसी को लगा कि अब तो जान ही निकल जाएगी। खुद पर उसका नियंत्रण खत्म हो गया। हाथों से बैग छूट कर नीचे गिर पड़ा। मोबाइल भी हाथ से छूट गया। बैग और मोबाइल जैसे ही हाथ से छूटे, उस आदमी ने मानसी को छोड़ दिया। बैग और मोबाइल लेकर वह वहां से भाग निकला।
मानसी को थोड़ा समय लग गया सामान्य होने में। रात होने की वजह से गली में कोई भी नहीं था। मानसी को यह भी होश नहीं था कि उसके चप्पल छूट गए हैं। नंगे पांव ही वह अपने घर पहुंची। वहां उसने सारी बात बताई। घरवालों की चिंता अब कहीं ज्यादा बढ़ चुकी थी। पापा और भाई ने तो साफ कर दिया कि अब ऑफिस नहीं जाना है। किसी तरीके से मानसी से की रात गुजरी।
अगले दिन मानसी ने फिर से घरवालों को मनाना शुरू किया। घरवाले मानने को तैयार नहीं थे। मानसी ने इस बार जिद दिखाई। आखिरकार उसकी जिद के आगे घरवालों को झुकना ही पड़ा।
अंदर से डर तो मानसी भी गई थी, फिर भी उसका उत्साह ठंडा नहीं पड़ा था। अपने पैरों पर मानसी खड़े रहना चाहती थी। अगले कुछ दिनों तक मानसी को डर जरूर लगा। फिर भी वह अपना काम करती रही।
कहते हैं कि जब कामयाबी आपके चरण चूमती है तो बहुत से लोग आपको देखकर ईर्ष्या भी करने लगते हैं। मानसी के साथ भी ऐसा ही हो रहा था। मानसी अच्छी-अच्छी खबरें लिख रही थी। उसकी खबरों का असर हो रहा था। मानसी का नाम धीरे-धीरे मीडिया में बढ़ता ही जा रहा था। इसकी वजह से उसके साथ काम करने वाले को उससे जबरदस्त ईर्ष्या होने लगी थी। उसके खिलाफ ऑफिस में लोगों ने चालें चलने शुरू कर दी।
मानसी के खिलाफ संपादक को भड़काया जाने लगा। मानसी की तरह-तरह की शिकायतें पहुंचाई जाने लगीं। मानसी जहां खबरों के लिए जाती थी, वहां उसके सहयोगियों ने उन्हें भड़काने शुरू कर दिया। इस वजह से मानसी के सूत्र भड़क गए थे। अब उसे खबरें मिलने में दिक्कत हो रही थी। मानसी का प्रदर्शन धीरे-धीरे गिरने लगा था। संपादक से प्रायः मानसी को डांट भी लग रही थी।
मानसी बहुत परेशान हो गई थी। छुप-छुप कर वह आंसू भी बहा लेती थी। ऐसा नहीं था कि मानसी मेहनत कम कर रही थी। दिनभर वह धूप में यहां-वहां दौड़ती थी। कई बार तो भोजन करने का भी समय नहीं निकाल पाती थी। फिर भी मानसी अपने सहयोगियों के जाल में उलझ गई थी। नौबत यहां तक आ गई थी कि मानसी को अल्टीमेटम भी दे दिया गया था। अच्छी खबरें लाओ, नहीं तो नौकरी छोड़ दो।
मानसी ने सोचा कि दूसरे अखबार में चली जाऊं। फिर उसने सोचा कि परिस्थिति से डर कर भागना कहीं से भी उचित नहीं। उसने ठान लिया कि वह इसी अखबार में रहेगी। मुकाबला करेगी। अपने काम से हर किसी को जवाब देगी।
मानसी ने अपनी मेहनत और बढ़ा दी। वह सतर्क भी रहने लगी। उसने अपने सूत्रों के बीच अपना भरोसा बढ़ाया। अलग-अलग विभागों के अधिकारियों से अच्छा संपर्क बनाया। धीरे-धीरे एक बार फिर से मानसी का काम बोलने लगा। सहकर्मियों के मुंह अब धीरे-धीरे बंद हो रहे थे। वे समझ ही नहीं पा रहे थे कि अब और क्या करें।
इसी दौरान एक प्रतिष्ठित मीडिया अवॉर्ड्स की घोषणा हो गई। इसके लिए प्रविष्टियां आमंत्रित की गईं। सभी पत्रकारों ने अपने अच्छे-अच्छे आर्टिकल निकालने शुरू कर दिए। सभी ने आवेदन करना शुरू कर दिया। मानसी ने भी अपना एक सबसे अच्छा आर्टिकल चुना। उन्होंने भी इसके लिए आवेदन कर दिया।
परिणाम की घोषणा हुई तो मानसी का ही नाम आया। मानसी को यह मीडिया अवार्ड दिए जाने की घोषणा हो गई थी। जिस अखबार के लिए वह लिखा करती थी, उसी अखबार के पहले पन्ने पर उसकी फोटो के साथ ही खबर भी छपी थी। हर ओर से उसे बधाइयां मिल रही थीं।
अब वक्त आ गया अवॉर्ड सेरिमनी का। मानसी अपने मम्मी-पापा कर भाई-बहन के साथ तैयार होकर यहां पहुंची थी। उसके मां-बाप के चेहरे पर गर्व झलक रहा था। फिर मानसी के नाम की घोषणा हुई। मानसी अवार्ड लेने के लिए मंच पर पहुंच गई। आज मानसी की खुशी का ठिकाना नहीं था। यहां तक पहुंचने के लिए मानसी ने बड़ा संघर्ष किया था। आज उसे महसूस हो रहा था कि उसके संघर्ष की जीत हुई है।
मानसी अवार्ड हाथ में लेने ही वाली थी कि अचानक से उसे रुकने का इशारा किया गया। अवार्ड देने वाले के पास कुछ लोग पहुंचे। उनके कान में उन्होंने कुछ कहा। फिर वे लोग पीछे हट गए। मानसी को स्टेज से उतर जाने का इशारा किया गया।
इसके बाद फिर एक घोषणा हुई। इस घोषणा ने जो कहा गया उसे सुनकर मानसी के पैरों तले जमीन ही खिसक गई। इसमें कहा गया कि मानसी ने किसी और का आर्टिकल चुराया था। इसलिए वह इस अवार्ड की हकदार नहीं है। मानसी की जगह उसके एक सहकर्मी का नाम बुलाया गया उसे यह पुरस्कार देने की घोषणा की गई।
मानसी खुद को बड़ी अपमानित महसूस कर रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हुआ है। काटो तो खून नहीं, ऐसी उसकी हालत थी। शर्मिंदगी से उसका चेहरा झुक गया था। समझ नहीं पा रही थी वह कि ऐसा कैसे हुआ। आर्टिकल तो उसका ही था।
ऑफिस जब पहुंची तो यहां हर कोई उसे देख कर हंस रहा था। फिर संपादक ने उसे अपने केबिन में बुलाया। संपादक ने भी डांट लगाई। उससे कहा कि अब से तुम्हें नौकरी पर आने की जरूरत नहीं है। मानसी आंसू बहाते हुए वहां से निकल गई। वह पूरी तरीके से टूट चुकी थी। घर पहुंच कर वह बहुत रोई। कई दिनों तक वह घर पर ही रही। आखिरकार उसने सच का पता लगाने का निर्णय लिया। वह न्याय खुद को दिलाना चाहती थी।
उसने इसकी पड़ताल शुरू कर दी। कई दिनों तक उसने मेहनत की। आखिरकार मानसी को अपने ईमेल का ध्यान आया। मानसी ने वह ईमेल खंगाला, जिसमें कि उसने वह आर्टिकल अपने ही एक और ईमेल आईडी पर भेजा था। उसने इसकी तारीख निकाल ली। मानसी संपादक से मिलने के लिए पहुंची।
उसने संपादक से कहा कि सर मुझे एक मौका दीजिए खुद की बेगुनाही साबित करने का। संपादक ने आखिरकार उसका अनुरोध स्वीकार कर लिया। मानसी ने संपादक से कहा कि आप अवार्ड लेने वाले से यह पूछिए कि उसने यह आर्टिकल कब लिखा था।
मानसी के उस सहकर्मी को बुलाया गया। उससे तारीख पूछी गई। उसने 15 अप्रैल, 2020 की तारीख बताई। इसके बाद मानसी ने अपना ईमेल संपादक को दिखाया। यह ईमेल उसने 20 फरवरी को ही भेजा था। इससे यह साफ हो गया कि मानसी ने यह आर्टिकल लिखा था। संपादक को भी इसके बाद अपनी गलती का एहसास हो गया।
मानसी के सहकर्मी से जब कड़ाई से पूछा गया तो उसने सच उगल दिया। उसने बताया कि उसे मानसी की सफलता से जलन हो रही थी। इसलिए उसने उसे नीचा दिखाने के लिए ऐसा किया। इसके बाद यह बात अवार्ड समारोह के आयोजकों तक पहुंचाई गई। वे भी अपनी इस गलती पर बेहद शर्मिंदा हुए।
उन्होंने एक बार फिर से मीडिया अवार्ड की घोषणा की। इसमें उन्होंने अपनी गलती के लिए न केवल सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी, बल्कि मानसी को सम्मानपूर्वक यह अवार्ड प्रदान किया।
मानसी की इस कामयाबी को देख उसके मां-बाप और उसके भाई-बहनों की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। मानसी के पिता ने उससे कहा कि बेटी तुमने यह साबित कर दिया कि ईमानदारी से किसी काम में लगा जाए तो वह काम जरूर पूरा होता है। ईमानदारी से मेहनत की जाए तो कामयाबी जरूर मिलती है। खुद के प्रति ईमानदार रहो तो भगवान भी साथ देते हैं।
मानसी अब एक मशहूर पत्रकार के रूप में स्थापित हो गई है। अब तक उसने कई अवार्ड जीत लिए हैं। मां के दिल का ऑपरेशन भी उसने करवा दिया है। मां अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं। मानसी हर किसी की प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
आपको हमारी यह स्टोरी कैसी लगी हमें कमेंट कर के जरूर बताएं। आपके अच्छे कमैंट्स हमारा मनोबल बढ़ाते हैं. हमारी स्टोरी को फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और WhatsApp पर शेयर करना बिलकुल न भूलें 🙏।
लेखक: शैलेश कुमार