गुरु (कवि श्री सुधीर श्रीवास्तव जी ) को समर्पित
मिला है जिनसे मुझको ज्ञान
उन गुरुओं को करूँ प्रणाम।
आशा के एक दीप जले हैं
नई राह नई दिशा मिली है,
कभी शांत वे कभी धीर हैं
वे स्वभाव से बहुत गंभीर हैं।
मिली मान प्रतिष्ठा जिससे
सीखा कर्तव्यनिष्ठा जिससे
करूँ मैं उनके नित गुणगान।
आज दिवस शिक्षक का मेरे
हर पथ दर्शक हैं जो मेरे
अपने अंदर भी गुण भर पाऊँ
काश! उनके जैसा बन पाऊँ,
हक़ है उनका, करो सम्मान
जग में जिनका ऊँचा नाम,
मिला है जिनसे मुझको ज्ञान
उन गुरुओं को करूँ प्रणाम।
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Author:
शेख रहमत अली “बस्तवी”
बस्ती उ, प्र,