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डॉ. ज़ाकिर हुसैन की जीवनी | Biography of Dr. Zakir Hussain in Hindi
आपने देश के अहम विश्वविद्यालयों में शामिल जामिया मिलिया इस्लामिया का नाम तो आपने सुना ही होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जामिया की स्थापना किसने की?
दरअसल, इसकी स्थापना डॉ. जाकिर हुसैन ने की थी। डॉ. जाकिर हुसैन हमारे देश के तीसरे और पहले मुस्लिम राष्ट्रपति हैं। आइए जानते हैं डॉ. जाकिर हुसैन के जीवन के बारे में-
नाम | डॉ. ज़ाकिर हुसैन |
कार्य | देश के तीसरे राष्ट्रपति |
जन्म तिथि | 8 फरवरी 1897 |
जन्म स्थान | हैदराबाद, आंध्र प्रदेश |
पिता का नाम | फिदा हुसैन खान |
माता का नाम | नाज़नीन बेगम |
पत्नी का नाम | शाहजहान बेगम |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
मृत्यु | 3 मई 1969 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
डॉ. ज़ाकिर हुसैन का आरंभिक जीवन
डॉ. जाकिर हुसैन का जन्म आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुआ था। मौजूदा समय में तेलंगाना उनका जन्म स्थान है। उनका जन्म 8 फरवरी 1897 को एक पठान परिवार में हुआ।
बचपन से उनका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था। उनके जन्म के बाद ही उनका पूरा परिवार उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के एक कस्बे कायमगंज में बस गया। यदि इतिहास पर गौर फरमाएं तो उनका जन्म भारत में तो हुआ था, लेकिन उनका परिवार अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों से आकर उत्तर प्रदेश में बसा था।
डॉ. जाकिर हुसैन के पिता का नाम फिदा हुसैन खान और उनकी माता का नाम नाज़नीन बेगम था। उनके पिता फ़िदा हुसैन अपने कारोबार की वजह से हैदराबाद में रहने लगे थे। उन्हें पढ़ाई लिखाई का बहुत शौक था जिस वजह से उन्होंने हैदराबाद से वकालत पढ़ी और एक काबिल वकील भी बने।
उनका यह पढ़ाई लिखाई का शौक भी डॉ. जाकिर हुसैन को विरासत में मिला। उनके पिता एक विद्वान होने के साथ ही सभी धर्मों का आदर करते थे। इसी वजह से डॉ. जाकिर हुसैन भी अपने पिता की तरह थे। वे सभी धर्मों के प्रति आदर भाव रखते थे।
जाकिर हुसैन जैसे ही 10 साल के हुए वैसे ही उनके पिता का इंतकाल हो गया। जिसके बाद उनका ध्यान उनकी मां नाज़नीन ने रखा।
लेकिन उनका यह साथ उनकी मां के साथ भी ज्यादा समय तक नहीं रहा। पिता की मौत की 4 साल बाद ही, जब जाकिर हुसैन 14 साल के थे तभी उनकी मां की भी मौत प्लेग की वजह से हो गई। इतनी छोटी उम्र में माता-पिता को खो देने के बाद भी उन्होंने संयम बनाए रखा तथा आगे भी प्रगति करते रहे।
डॉ. ज़ाकिर हुसैन की शिक्षा
डॉ जाकिर हुसैन ने अपनी शुरुआती पढ़ाई घर पर ही की। उन्होंने स्कूल से पहले घर पर ही कुरान पढ़ी। इसके अलावा उर्दू, फारसी की शिक्षा भी हासिल की।
इसके बाद वे इटावा के स्कूल में पढ़ने लगे। दरअसल, उनकी मां ने ही उन्हें कायमगंज से इटावा भेजा था जिससे कि वह अपने पिता की इच्छा पूरी कर सके। बालक ज़ाकिर ने भी अपनी मां की बातों का मान रखते हुए इटावा के इस्लामिया हाई स्कूल में पांचवी कक्षा में दाखिला ले लिया।
वे पढ़ाई की अहमियत से भलीभांति परिचित थे इसलिए पिता की मृत्यु तथा मां के चले जाने के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई कभी नहीं रोकी। इस्लामिया हाई स्कूल के बाद वह एंग्लो मुस्लिम ओरिएंटल कॉलेज में दाखिल हुए। इस कॉलेज में उन्होंने कानून की पढ़ाई की।
बता दें, एंग्लो मुस्लिम ओरिएंटल कॉलेज मौजूदा समय में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है। यहां से एम.ए. करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए 1922 में जर्मनी चले गए।
जर्मनी जाकर उन्होंने वहां के विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएच.डी. की डिग्री हासिल की। जर्मनी से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल कर वे भारत आ गए।
जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना
डॉक्टर जाकिर हुसैन ने जर्मनी जाने से पहले 29 अक्टूबर 1920 को ही जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की थी। जामिया मिलिया स्थापना के पीछे एक घटना का उल्लेख करना जरूरी है।
दरअसल, ज़ाकिर हुसैन ने महात्मा गांधी के राष्ट्रीय आंदोलन का अनुसरण करते हुए उस समय एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज का बहिष्कार किया। ऐसे में जब उनके साथियों ने उनसे पूछा कि यदि वे इसका बहिष्कार करेंगे तो आगे की पढ़ाई कहां से करेंगे तो इसके उत्तर में जाकिर हुसैन ने कहा कि वह एक राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान की स्थापना करेंगे।
जिसके बाद से ही वह शिक्षण संस्थान की स्थापना के लिए जुट गए। उनके दृढ़ निश्चय के चलते उन्होंने डॉक्टर हकीम अजमल खान और मौलाना मोहम्मद अली समेत कुछ लोगों के साथ मिलकर शिक्षण संस्थान की स्थापना की राह अख़्तियार की, जिसके बाद उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ की एक छोटी सी जमीन पर जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की गई।
लेकिन जब वे जर्मनी में पढ़ रहे थे तो उस दौरान जामिया मिलिया की स्थिति खराब होने लगी। ज़ाकिर वापस आ गए जिसके बाद वह जामिया के सुधार के पीछे जुट गए। उन्होंने जामिया के बिगड़ते हालात के संबंध में गांधी जी से सलाह ली जिसके बाद उनकी सलाह पर ही उन्होंने जामिया को अलीगढ़ से दिल्ली में स्थापित किया।
वह लंबे समय तक जामिया में शिक्षण देने का काम करने लगे और 29 साल तक उन्होंने जामिया में कुलपति पद का भार भी संभाला। गांधी जी ने जामिया को लेकर सलाह दी थी कि उनकी बुनियादी शिक्षा के कार्यक्रमों को भी जामिया में शुरू किया जाए। इसके अंतर्गत छात्रों को 7वीं तक मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान किया गया।
शिक्षा के साथ-साथ उनके पाठ्यक्रमों में हस्तकला, दस्तकारी से संबंधित पढ़ाई भी शामिल किया। जिसमें छात्रों को तकली, चरखा, मिट्टी के बर्तन बनाना आदि काम सिखाए जाते थे। आज डॉक्टर जाकिर हुसैन की मेहनतों की वजह से ही जामिया मिलिया इस्लामिया अस्तित्व में है तथा देश में कई छात्रों को यह शिक्षित कर रहा है।
डॉ. जाकिर हुसैन पढ़ाई के महत्व को भलीभांति जानते थे उन्होंने सिर्फ जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना नहीं की बल्कि वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में भी काबिज रहे। 1930 में जब देश में शिक्षा सुधार आंदोलन जोरों पर थे तब भी जाकिर हुसैन ने आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति व राज्यपाल का पदभार संभाला
जाकिर हुसैन साल 1952 में राज्यसभा के सदस्य बने। यह साल के राजनीति में प्रवेश का काल भी कहा जाता है इसी तरह 1956 में भारतीय संसद के एक सदस्य के रूप में काबिज हुए और इसी के 1 साल बाद यानी कि 1957 में वह बिहार के राज्यपाल बने।
राज्यपाल का पदभार संभालते हुए उन्होंने बिहार की जनता के लिए काफी काम किया। इस पद पर वह 5 साल तक के लिए काबिज रहे। 1962 तक उन्होंने बिहार के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। राज्यपाल के बाद साल 1962 में वे देश के उप राष्ट्रपति बने।
उपराष्ट्रपति पद पर अपनी सेवाएं देने के बाद 1967 में भारत के तीसरे राष्ट्रपति और पहले मुस्लिम राष्ट्रपति बने।
असहयोग आंदोलन में डॉ. ज़ाकिर हुसैन की भूमिका
महात्मा गांधी ने साल 1920 में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की घोषणा की। अलीगढ़ के एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज में छात्रों को अंग्रेजी पढ़ाई जाती थी जिसे लेकर डॉ. जाकिर हुसैन ने कॉलेजों संस्थान का बहिष्कार करने की लोगों से अपील की।
जिस वजह से उस कॉलेज के प्रिंसिपल घबरा गए और उन्होंने ज़ाकिर को जिलाधीश बनाने का प्रलोभन दिया। लेकिन ज़ाकिर हुसैन ने उनकी एक नहीं मानी और उनका यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। उन्होंने उस प्रिंसिपल से यह बात साफ तौर पर कह दी कि उनके लिए उनकी मातृभूमि ज्यादा जरूरी है।
डॉ. ज़ाकिर हुसैन की मृत्यु
डॉ जाकिर हुसैन 1967 में ही देश के राष्ट्रपति बने थे। लेकिन वह लंबे समय तक इस पद पर काम नहीं कर सके। दरअसल, 3 मई 1969 को उनका दिल का दौरा पड़ने की वजह से निधन हो गया।
उन्हें दिल्ली में ही जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के केंद्रीय परिसर में दफनाया गया है।
डॉ. ज़ाकिर हुसैन की उपलब्धियां
- 1920 में जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की।
- 1954 में पद्म विभूषण से नवाजा गया।
- 1956 में संसद के सदस्य बने।
- 1957 में बिहार के राज्यपाल का पदभार संभाला।
- 1956 से 1958 तक यूनेस्को की कार्यकारी समिति के सदस्य रहे।
- 1962 में भारत के उपराष्ट्रपति बने।
- 1963 में उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया।
- इसके अलावा उन्हें दिल्ली, अलीगढ़, इलाहाबाद, कोलकाता विश्वविद्यालय की ओर से डि.लिट्. की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
- 13 मई 1967 में भारत के राष्ट्रपति बने व भारत के तीसरे तथा पहले मुस्लिम राष्ट्रपति बने।
डॉ. ज़ाकिर हुसैन की किताबें
जैसा कि सर्वविदित है कि डॉक्टर हुसैन को पढ़ने-लिखने का अत्यंत शौक था। जिसकी वजह से उन्होंने कई किताबों की रचना की जिनमें से कुछ किताबें निम्नलिखित है:-
- सनशाइन फॉर अम्मा
- ए फ्लावर सॉन्ग
- अँधा घोड़ा
- रिपब्लिक
- केपेटिलिज़्म
- स्केल एंड मेथड्स ऑफ़ इकोनॉमिक्स
Author:
भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।