दिल परिंदा
कैसे मारदें अरमानों को कैसे रखें ख़ुद को जिंदा,
पँख लगाकर उड़ लेने दो क्योंकि दिल है एक परिंदा,
रखी हैं कुछ ख्वाहिश दिल में तंमन्नाए हैं कुछ चुनिंदा,
कोशिश है न करूं कभी ऐसा के होना पड़े शर्मिंदा,
मुझे पँख लगाकर उड़ लेने दो क्योंकि दिल है एक परिंदा।
दबा दिए अरमान है कितने मैंने दिल में अपने,
बंद आँखों में सिमट गए हैं हुए न साकार जो सपने,
तालों सी बंद अलमारियों में जज़्बात पड़े हैं रखने,
न छेड़ो मेरी दबी हसरतें वरना दिल ये लगेगा दुखने,
क्यूँ रोका मैंने उड़ने से ख़ुद को क्यूँ डाला बेड़ियों का फंदा,
मुझे पँख लगाकर उड़ लेने दो क्यूंकि दिल है एक परिंदा।
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सोनल उमाकांत बादल , कुछ इस तरह अभिसंचित करो अपने व्यक्तित्व की अदा, सुनकर तुम्हारी कविताएं कोई भी हो जाये तुमपर फ़िदा 🙏🏻💐😊