दाता
सत्ता का नशा
आदमी को अंधा बना देता है
एक आम आदमी को झुकाने के लिए
पूरा तंत्र लगा देता है।
कुर्सी के मद में
इतना मगरूर हो जाता है कि
वह ये भूल जाता है कि
वही आम आदमी ही
उस कुर्सी का दाता है।
पर सत्ता के घमण्डियों को
यह याद कहाँ रहता है कि
दाता सिर्फ़ देता ही नहीं
छीन भी लेता है।
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लौटकर नहीं आओगी
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About Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002