लघुकथा: रघु की दीवाली

Last updated on: October 2nd, 2020

रघु की दीवाली

पूरे गांव में दीपावली का उत्साह था। गांव का हर घर अपनी सामर्थ्य के अनुसार रंगीन झालरों, मोमबत्तियों, और दियों की रोशनी से चमक रहा था।

गांव के एक कोने पर एक झोपड़ी अंधेरे में डूबी हुई थी। रघु अपनी किस्मत को कोसते हुए झोपड़ी में पड़ा था,क्योंकि आज कहीं से मजदूरी का इंतजाम ना हो सका। एक दिया जलाने तक को उसके घर में तेल तो क्या खाने तक के लिए एक दाना नहीं था ।

उसके घर के ठीक सामने एक हवेलीनुमा मकान पर रघु की निगाहें बार बार जाकर ठहर जाती थी, जैसे उम्मीद की एक किरण उसे उस मकान से दिख उस मकान से दिख रही थी ।

लेकिन हाय रे किस्मत तूने इतना बेबस कर दिया कि आप दीपावली का त्यौहार दीपावली का त्यौहार भी अंधेरी कुटिया में भूखा रहकर ही काटना पड़ेगा ।

तभी एक छोटी बच्ची उस घर से निकली और रघु के घर की तरफ बढ़ी बढ़ी। रघु के घर पहुंच के सामने खड़ी होकर पहुंचकर सामने खड़ी होकर सामने खड़ी होकर उसने रघु को पुकारा काका पुकारा काका पुकारा काका बाहर आइए ।उसने हाथ में थामा हुआ थैला रघु को पकड़ा दिया।

कांपते हाथों से थैला लूट लिया लिया और हाथ उठाकर बच्ची को ढेर सारा आशीर्वाद दे डाला ।बच्ची ने उसे बताया कि थैले में दिया,बाती,तेल,माचिस, मोमबत्ती ,पटाखे और भोजन है।रघु ने पटाखे वापस कर दिया कि ये पटाखे वो छुड़ायेगी तो तेरा रघु काका खुश हो जायेगा।

बच्ची ने पटाखा ले लिए और जाते जाते रघु के घर को दियों,मोमबत्तियों की रोशनी से जगमग कर दिया और रघु से सचेत करती गई कि खाना जरूर खा लेना।रघु ने उस बच्ची को दुआओं का अंबार सौंप दिया।

उसे लगा कि उस बच्ची के रूप में ईश्वर उसकी सुध लेने और बधाइयां देने खुद आये हों।उसने हाथ जोड़कर ऊपर की ओर देखते भगवान को धन्यवाद कहते हुए प्रणाम किया।और अंदर चला गया, जहाँ अब दिये का प्रकाश उसको आश्वस्त कर रहा था।

Read Also:
लौटकर नहीं आओगी
भीख
रेप की सजा फांसी
गांधी और शास्त्री जी

अगर आप की कोई कृति है जो हमसे साझा करना चाहते हो तो कृपया नीचे कमेंट सेक्शन पर जा कर बताये अथवा contact@helphindime.in पर मेल करें.

1 Star2 Stars3 Stars4 Stars5 Stars (1 votes, average: 5.00 out of 5)
Loading...

About Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002