🌹एछिक कल्पनाएं🌹
तुम हँसते हुए लगते हो बड़े प्यार
क्यों रोने जैसी सूरत जो तुमने बनाई है,
इस बात को लेकर बहुत गहरी
चोट जो हमैं दिल पर आई है,
सूरत तुम्हारी देखकर
लालसा जौ मेरे मन में आई है,
दिन रात सुबह-शाम बस तेरीही
बात जो इस दिल गुनगुनायी हैं,
दर्पण की और से एक छाव जो
पहली बन कर नजर आई है,
मानवता की खोज में एक
प्रेम की रस्सी जो हमारे हाथ आई है,
भुल के सारे घम को इस चेहरे पर
हस्सी जो लोट आई है,
तुम्हारे चेहरे की खुशी के बिना
हमारी आँखे फिर भर आई है,
दूर रहकर भी कई कल्पनाएं
हमारे मन में आई है,
सच् कहे तो बड़ी कोशिशो के बाद
तुम से प्रित करने की ऊमंग जो
हमारे दिल में आई है,
तुम से प्रित करने की ऊमंग जो
हमारे दिल में आई है।
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About Author:
चन्द्र प्रकाश रेगर (चन्दु भाई), नैनपुरिया
पो., नमाना नाथद्वारा, राजसमदं