सत्य की जीत
यह विडंबना है जीवन की
कि सत्य सदा परेशान होता है
ठोकरें खाता है,
संघर्ष करता,टूटता,बिखरता
फिर संभलकर
खुद में हौसला भरता,
नयी उम्मीद के साथ
फिर खड़ा होता।
जीत का विश्वास रखता
टूटते हौसलों में
नया जोश भरता,
बिखरते हौसलों की
कड़ियाँ संभालता,
जीत से पहले
हारना नहीं चाहता,
अंत में आखिरकार
सत्य जीत ही जाता।
ठीक वैसे ही
जैसे राम जी ने
बुराई के प्रतीक
रावण को मारा था,
सत्य का ही ये
खेल सारा था।
आज भी समाज में
रावणों की कमी नहीं है,
सत्य हारेगा, ये सोचने की
कोई वजह नहीं है।
आज के इंसानी रावण का भी
अंत सुनिश्चित है,
ये रावण भी मरेंगे
इतना तो निश्चित है।
इनका भी अहंकार
चरम पर पहुंच रहा है,
इन इंसानी रावणों का
अंत अब करीब है।
विश्वास है मन में
रावण के पुतले के साथ
इंसानी रावण भी जलेगा,
दुगने उत्साह के साथ ही
दशहरा मनेगा।
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Author:
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
VERY DIFFICULF WORDS TO SPELL , NOT NICE FOR A CHILD WHO IS WEAK IN HINDI . BUT NICE .