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🌹आशा का दीप🌹
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं।
परिस्थिति विकट है और चहुओर संकट है,
पर समाधान भी तो हम ही निकलवाएं,
साथ और संबलता से फिर सफलता लाएं,
स्वंय सभी आत्मशक्ति को जागृत कर जाएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं,
हमारे भगवान हमारे अन्दर जब तक भक्ति है,
हम जीवित हैं यहाँ जब तक आत्मशक्ति है,
गएं उनको श्रद्धांजलि यादों का विष पी जाएं,
बचें उन्हें भविष्य में आगे बढ़ाकर जी जाएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं,
घोर तम का अंधेरा है तो क्या छट जाएगा,
सुखद हर्षित सवेरा यहां अवश्य आएगा,
हम मानव हैं हम हीं जीते हैं हम हीं जितेंगे,
नित्य यही सबके हृदय में विश्वास जगाएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं।
लड़ेंगे भी जितेंगे खुश होंगे और जीएंगे भी,
आरोग्यता का अमृत हम फिर से पिएंगे भी,
आती ही हैं समस्याएं परीक्षा लेने को आएं,
उतीर्ण हम ही होंगें की सकारात्मकता फैलाएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं।
साथ न छोड़ें इस कुसमय में एक दूसरे का,
अकेलापन से न तोड़ें हृदय एक दूसरे का,
मैं नहीं ‘हम’ हैं तभी ये संचालित सृष्टि हैं,
इसका नित्य प्रतिपल प्रतिक्षण भान कराएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं।
अपनो को सहयोग साथ और समर्पण करें,
और समाज के लिए भी स्वयं को अर्पण करें,
भय और आशंका से समाज को मुक्त कराएं,
चलो फिर मानवतारथ के हम सारथी बन जाएं,
आओ मिलकर आशा का दीप जलाएं।
❤️ “हम नारियां” ❤️
हम नारियां सदा बहुत मजबूत होती हैं,
जग के लिए सदा प्रथमा बुद्ध होती हैं,
सृष्टि संचालन निमित्त मूलाभूत होती हैं,
हां! सचमुच हम बहुत मजबूत होती हैं।
हम स्वयं ही सर्वस्व अर्पण करती हैं,
हम तृण को भी वृक्ष विशाल करती हैं,
धैर्य,शील,क्षमा,दान की प्रबुद्ध होती हैं,
हां! सचमुच हम बहुत मजबूत होती हैं।
हम जब स्वंय का समर्पण करती हैं,
एक प्यारा आदर्श परिवार कहती हैं,
वंशबेल की स्थायित्व देवदूत होती हैं,
हां! सचमुच हम बहुत मजबूत होती हैं।
हम जब सभ्य संस्कार साज बजती हैं,
तो एक न्यारा आदर्श समाज कहती हैं,
संस्कृति,संरक्षण को स्वआहुत होती हैं,
हां! सचमुच हम बहुत मजबूत होती हैं।
स्वयं हीं झुककर दबी अबला लगती हैं,
समय आने पर दुर्गा बनकर भी जगती हैं,
कभी जगजननी,कभी कालदूत होती हैं,
हां! सचमुच हम बहुत मजबूत होती हैं।
मौन हो रिश्ते बचाती निंदा,व्यंग्य सहती हैं,
मगर जननी बनकर सब ज़िंदा रखती हैं,
उपेक्षित हो भी सबकी स्नेहाधुत्त होती हैं,
हां! सचमुच हम बहुत मजबूत होती हैं।
सृष्टि संजीवित रखना है तो संज्ञान करो,
बेटियों का संरक्षण नारी का सम्मान करो,
वर्ना अपमानित प्रकृति भी आयुध होती हैं,
हां! सचमुच हम बहुत मजबूत होती हैं।
❤️ “प्रेम पथिक” ❤️
हम सदियों से प्रेम पथिक हैं,
परन्तु अभी थोड़े व्यथित हैं।
न जा पा रहे हैं मंदिर,
प्रभु मिलन को हैं अधीर,
सारा संसार यहां सुना पड़ा है,
बाग बागीचों का कोना पड़ा है,
होता अकेला दिन व्यतीत है,
हम सदियों से प्रेम पथिक हैं,
परन्तु अभी थोड़े व्यथित हैं।
कुछ अपने हैं अब गुजरे हुए,
कुछ दिल से अभी हैं डरे हुए,
महामारी ने तांडव दिखलाया है,
मानव को भी प्रचण्ड डराया है,
आशंका भरा अभी हमारा नित्य है,
हम सदियों से प्रेम पथिक हैं,
परन्तु अभी थोड़े व्यथित हैं।
पर हम सदियों से आशावादी हैं,
हम शौर्य साहस के प्रतिभागी हैं,
संबलता से अरोग्यता हम हीं लाएंगे,
इस दुष्ट महामारी को भी मार गिराएंगे,
हम मानव सदा से अभिजीत्य हैं,
हम सदियों से प्रेम पथिक हैं,
परन्तु अभी थोड़े व्यथित हैं।
क्या हुआ जो थोड़े थके है,
कुपरिस्थिति के चक्र फंसे हैं,
हम सृजन पथ के अग्रहरि हैं,
नव सुचेतना के नित्य प्रहरी हैं,
हम नवल प्रारंभ सुशोभित हैं,
हम सदियों से प्रेम पथिक हैं,
परन्तु अभी थोड़े व्यथित हैं।
हम सदा अदम्य साहस के पार्थी हैं,
दृढ़ विश्वास के अविचल सारथी हैं,
काल का यह आघात भी हम सह लेंगे,
पुनः इस पल को इतिहास में बदल देंगे,
हम रखते मानवता सदा जीवित हैं,
हम सदियों से प्रेम पथिक हैं,
परन्तु अभी थोड़े व्यथित हैं।
मेरा अहंकार
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
धराश्रेष्ठ सौराष्ट्र उद्धभवित हिन्दूधर्मा नार के लिए,
सुसभ्यता श्रेष्ठ संस्कृति पर्याप्त है अहंकार के लिए,
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
श्रीकैलाश के अद्भुतरूप शिवशिखर के लिए,
श्रीजगन्नाथ के वायुविपरीत ध्वजप्रहर के लिए,
मोक्षदायिनी माँ गंगा के अनंत विस्तार के लिए,
गाँव घर में बसते गवईं प्रेम व्यवहार के लिए,
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
बैकुंठरूपी प्रत्यक्ष दृष्टा अयोध्या धाम के लिए,
श्रीरामचन्द्र के सकल मुक्तिदायी नाम के लिए,
सीया के त्याग शील धैर्य मर्यादा मान के लिए,
सत्य सनातन धर्म अखण्ड स्वाभिमान के लिए,
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
मोहन प्रीत व्याकुल मीरा की वीणा धुन के लिए,
मस्त मलंग दासकबीरा के साखी निर्गुण के लिए,
श्रीकृष्ण के गीता ज्ञान मुरली की तान के लिए,
तैंतीस कोटी देवी देव ऋचाएँ वेद पुराण के लिए,
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
माघमास की ठंडी-ठंडी शीत लहर के लिए,
ज्येष्ठ के नींद ऊंघते हुए गर्म दोपहर के लिए,
ऋतुराज बसंत के रमणिक नज़ारों के लिए,
रंग बदलते ऋतुओं के प्रथम फुहारों के लिए,
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
तिरंगे की सगर्वित अविचल आन के लिए,
माँ भारती की अखण्ड अटल शान के लिए,
रंग-रूप भेषभूषा की विविधता के लिए,
आर्यावर्त के सभीं जन की एकता के लिए,
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
माँ के शीर्षमुकुट कश्मीर हिमाद्र के लिए ,
कन्याकुमारी के चरण धोते समुद्र के लिए,
गुजरात के सागरतट व्यापार के लिए,
बंगाल के सजे मच्छी बाजार के लिए,
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
मंदिर में पूजा-पाठ घण्टी आरती मंगल के लिए,
मेरे झारखंड के हरे-भरे पुष्पित जंगल के लिए,
संसद में वाद-विवाद प्रश्न के तर्कमंत्र के लिए,
भारत के प्राचीन गौरवशाली लोकतंत्र के लिए,
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
सेना के रक्त उबलते शौर्य साहस के लिए,
शत्रु के हर क्षण तोड़ते दुस्साहस के लिए,
तिरंगे लिटे वीर स्वीकारती वीरांगनाओं के लिए,
सगर्वित अभिमानित शहीद की माताओं के लिए,
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
अंतरिक्ष में लिखे भारत की पहचान के लिए,
भारत के विश्वगुरु होने के ख्यातिनाम के लिए,
वसुधैव कुटुम्बकम सैद्धांतिक राष्ट्रधर्म के लिए,
राष्ट्रहित जनहित संवैधानिक नीतिकर्म के लिए,
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
भारतभूमि में जन्म लेने के सौभाग्य के लिए,
पथिक सनातन धर्म के सुयात्री मार्ग के लिए,
महावीर का शांति मार्ग बुद्ध के ज्ञान के लिए,
विश्व का सत्य हिन्दूधर्म के गौरवगान के लिए,
हां! सत्य है कि मुझमें अहंकार है।
कविता संग्रह: आराधना प्रियदर्शनी
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Author:
ममता रानी सिन्हा
तोपा, रामगढ़ (झारखंड)