
गुलाब
सुरूप, सुभाग है सौंदर्य उसका,
उस पर मनोरम उसका रंग,
खिल जाए वह, मुस्काए वह,
छाए उस पर जब पीला रंग।
नृत्य करे और इठलाए,
जब हो जाए शाम शराबी,
खूब हंसे और शोर मचाए,
जब पाए वह वर्ण गुलाबी।
हर रंग में वह सौंदर्य छलकाए,
वह सब को अपने पास बुलाए,
खेले मिट्टी की गोद में,
हरा रंग जब उस पर छाए।
उसका रंग निखरता ही जाए,
जब जब बादल बरसाए पानी,
पंखुड़ी थिरक थिरक कर गाए,
प्रसिद्ध मैं फूलों की रानी।
सब से कहती है वह बलखा के,
खुश रहती हूं हर हाल में,
सबसे ज्यादा सौंदर्य मेरा,
खिलता है रंग लाल में।
मेरी सुंदरता है अनोखी,
मैं सौरभ हूं अनुराग हूंँ,
मुझ जैसा है कौन यहाँ,
मैं अति रमणीय गुलाब हूंँ।
पिता
जिसने हमको संसार दिया,
आनंद ख़ुशी और प्यार दिया,
ना तुल्य है सोने चांदी से,
प्रेम जो अपरम्पार दिया l
कोई नहीं उनके समान,
देंगे उनको शोहरत सम्मान,
भू पर देव का रूप है,
हाँ हाँ हैं वह मेरे भगवान् l
कोई पूजा नहीं उनकी सेवा से बढ़कर,
हर सुख दिया हमें खुद कष्ट सहकर,
हर तरह से हमें परिपूर्ण किया है,
और कहूं मैं क्या इतना कहकर l
कभी कमी नहीं की प्यार में,
स्वर्ग मिला संसार में,
अगर ईश्वर का वरदान न मिलता,
हम रह जाते मझधार में l
हम जीवन में सफल न होते,
न देख सलोने स्वप्न में खोते,
रहता ये संसार अधूरा सा,
कभी ना होता स्वप्न भी पूरा।
राहों में हम भटके होते,
अगर हमारे पिता ना होते।
माली
कितने श्रम और कितने लगन से,
सींचा है माटी धूलो को,
जीवंत बनाया है उसने,
निर्जीव अचेतन फूलों को।
पतझड़ में भी मुस्काए वह,
कर कल्पना बाहर की,
मग्न रहे कल्पनाओं में,
फिक्र नहीं संसार की।
अपने मेहनती हाथों से,
पौधों में स्फूर्ति डाली है,
फूलों के रंग से खिला हुआ,
बगिया का रक्षक माली है।
उसके स्पर्श मात्र से चहकती,
हर फूल फूल और डाली है,
फुलवारी से घिरा हुआ,
बगिया का रक्षक माली है।
मनचाहा साथी
ना दिन नजर आता हो,
ना रात नजर आती हो,
क्या कहना उन लम्हों का,
जब साथ मनचाहा साथी हो।
चाहे धूल भरी आंधी हो,
या हो चांदनी रात,
पता नहीं चलता वक्त का,
जब होते हैं वह साथ।
रोजाना मिलना होता उनका,
अक्सर होती उनकी मुलाकात,
पर वह कहते ही रहते,
कभी खत्म ना होती उनकी बात।
अलग होकर भी वह अलग नहीं,
मिलते हैं नींद में सपनों में,
एक आत्मा दो शरीर है वह,
ना गैरों में, ना अपनों में।
एक दूजे की ही ख्वाहिश बस,
ना रुचि किसी उपहार में,
एक ही बातें दोनों सोचते,
समानता ऐसी है विचार में।
मित्रता सदा सलामत रहे,
ऐसा पवित्र रिश्ता बनाया है,
मानव रूप में जन्म लेकर,
एक दूजे को पाया है।
देखे ना जब तक एक दूजे को,
मन के इनको ना राहत है,
साथ रहे एक दूजे का,
और न कोई चाहत है।
एक जैसी सोच है उनकी,
विश्वास उनका भगवान है,
जीवन का अभिन्न हिस्सा वह,
एक दूजे को वरदान है।
ना एक दूजे के बिना सुकून,
ना नींद उन्हें फिर आती हो,
लगता है जीवन तब संपूर्ण,
जब साथ मनचाहा साथी हो।
मूर्ति
मौन रहकर भी सबकुछ कहती है,
मन मे भक्ति बनकर रहती है,
ये स्थित होती है धर्म स्थलों मे,
निर्जीव होकर भी जीवन्त रहती है।
कभी मुस्काती, कभी हंसाती,
डुबोती बचपन को प्यार मे,
खुशी देती है खुद अचल होकर,
जो बिकती है बाजार मे।
कभी ये धरकर रूप शहीदों का,
हमको उनकी याद दिलाये,
कभी चँचलता, कभी मृदुलता देकर,
हर मूर्ति जीवन दर्शाए।
कभी तो अपने हास्य विनोद से,
तरह तरह के रंग दिखलाए,
कभी नयन मे करूणा भरकर,
सागर अश्रु मोति छलकाए।
हमेशा सजी नई संवेदनाओं से,
और नई स्फूर्ति से,
पाते हम जीने की प्रेरणा,
इक बेजान मूर्ति से
आकर भी ना आए तुम
कभी बनकर हंसी हंसाए,
कभी आंसू बन रुलाए तुम,
कभी खिले फूल बनकर तो कभी,
खुद ही जैसे मुरझाए तुम।
कभी बहे नदी की धारा सी,
और कभी बने हवाएं तुम,
कभी बने गम का भंवर,
कभी खुशियां बेशुमार लाए तुम।
कभी घनघोर घटा बनकर तो कभी,
बादल बनकर छाए तुम,
कई बार ऐसा लगता है कि,
आकर भी ना आए तुम।
कभी जैसे खुशियों का छलावा,
तो कभी लहरों से लहराए तुम,
न जाने क्यों ऐसा लगता है जैसे,
आकर भी ना आए तुम।
आईना
जो हंसोगे तुम तो हंसेगा वो,
जो रो दोगे तो रोएगा,
जो उदासी आई चेहरे पर तुम्हारे,
तो वह भी रौनक अपनी खोएगा।
आपकी प्रतीक्षा में अडिग रहता है,
अपनी सत्य बंधुता से कभी नहीं डोलता,
गलतफहमी की तो कोई जगह ही नहीं,
आईना कभी झूठ नहीं बोलता।
सब कुछ पारदर्शित है उसके सामने,
कैसे उसे भटकाओगे,
चाह कर भी वास्तविकता अपनी छवि की,
उससे छुपा नहीं पाओगे।
खुद को देखकर तुम में,
हम हर्षित होते मन ही मन में,
ना खूबियां ना कमियां,
कुछ भी छुपता नहीं है दर्पण में।
ऐसी कोई दुल्हन नहीं इस जग में,
जो देख तुम्हें शरमाई ना हो,
तुम से बेहतर कौन दर्शा सकता है अक्स मेरा,
इसलिए तो तुम निष्पक्ष और निश्छल आईना हो।
स्वार्थी दुनिया
जब जी चाहा जज्बात दिखाया,
जब जी चाहा यादों से हटा दिया,
जब जी चाहा मुकर गए वादों से,
जब जी चाहा गले लगा लिया।
ना समझी वजह शिकवों की कभी,
ना समझा फर्क गौरव और अभिमान में,
गिना प्यार के रिश्तों को भी,
फायदे और नुकसान में।
यह कलयुग है अद्भुत, अनूठा,
है रिश्ता यहां विचित्र ही,
जब तक ना घेरे मुश्किलें भयंकर,
तब तक याद ना आए मित्र भी।
जो होता है निश्छल, निष्कपट,
आत्मा उस पर ही तन मन वारती है,
पर यह बस्ती है लालच की,
हर शख्स यहाँ बस स्वार्थी है।
रोम रोम तड़पकर चिल्लाता है,
अनुभूतियां ममता श्रद्धा को पुकारती है,
कहाॅं गई वह पवित्रता रिश्तो की,
क्यों यह दुनिया इतनी स्वार्थी है।
खुशहाली
जब लगता है कुछ मिलने वाला है,
नई रौशनी नया उजाला है,
आज नया सवेरा शायद है,
कहीं दूर बसेरा शायद है।
क्यों धूप में चमक है,
क्यों मौसम में दमक है,
क्यों वातावरण है वर्णमयी,
क्यों हवाओं में महक है।
आज कोई सूनापन नहीं,
आज मैं खुद के साथ हूं,
आज अंधेरी रात नहीं,
मैं सावन, मैं बरसात हूं।
हर तरफ फूलों से सजी बगिया है,
क्यों नीला सा यह गगन है,
बेमतलब ही आज न जाने क्यों,
मेरा मन प्रसन्न है।
खंडहर मन का महल में बदला,
सजीले से पतवार पर,
लगता है कोई दस्तक देगा,
आज मन के द्वार पर।
प्रवाह है यह भावनाओं का,
मन अति भावुक एक प्याला है,
आज मेरे घर आंगन में,
कोई अपना आने वाला है।
फिर रंग जाएगा जीवन,
रंगो के फुलवारी में,
फिर झूलेगा झूला जीवन,
फूलों से बनी सवारी में।
खुशी तो एक ज़ज्बात है,
जिसके लिए जरूरी कोई वजह नहीं,
खुशहाली तो मन का भाव है,
देखती कोई रंग रूप और जगह नहीं।
खुशी का कोई पुख्ता कारण नहीं होता,
यह तो एहसासों की धूप-छांव है,
जहां बस्ती है सिर्फ दुआएं,
खुशहाली वह स्वर्ग से सुंदर गांव है।
आत्मविश्वास
सभी ऑंखों ने देखे हैं ख्वाब,
सभी ऑंखों ने सपने सजाए हैं,
पर सफल वही है जिनके साथ,
मांँ बाप की दुआएं हैं।
जीवन का एक उद्देश्य है,
अपने मंजिल को पाना है,
ख्वाबों पर दृढ़ विश्वास करके,
आत्मविश्वास जगाना है।
वह भाग्य ही क्या जो तकदीरों पर निर्भर है,
वह जीवन ही क्या जो तीखे तानों से जर्जर है,
वह सामर्थ्य ही क्या जो ख्वाब को सच ना बना सके,
वह व्यक्तित्व ही क्या जो पाले आँसू, हिम्मत ना जुटा सके।
जीवन वह निरर्थक है जो डरता है सवालों से,
जीवन वही बस सार्थक है जो लड़े तेज़ तलवारों से।
जीत तो हर कोई हासिल करना चाहता है,
पर क्या हक के लिए उठाई कभी आवाज है,
जो जीते हर पल, हर शत्रु से,
अनमोल रत्न वह आत्मविश्वास है।
भक्ति में शक्ति
क्यों जाने हम होनी को पहले,
क्यों विधि का विधान बदल दे।
क्यों औरों की बातों में आकर,
हम अपना ईमान बदल दें।।
क्यों सुनकर बातें भविष्य की,
हम पहले ही व्याकुल हो जाए।
क्यों होकर हद से ज्यादा विचलित,
इतने आतुर हो जाएं।।
भविष्यवाणी करने वाला तो,
लाखों बातें कहता है।
बदल नहीं सकता कोई किस्मत का लेखा,
जो होना है, होकर ही रहता है।।
अनजान होते हैं हर आने वाले पलों से हम,
तभी तो उम्मीद करते हैं।
जो हर बात जानना चाहते हैं भविष्य का,
वह ना जीते हैं, ना मरते हैं।।
जो ले जाती है हमें मंजिल तक,
वह अनभिज्ञ, अजनबी रास्ता ही है।
जिस पर है यह जग दुनिया टिकी,
वह मालिक पर एक आस्था ही है।।
डर तो हावी तब होता है,
जब आत्मा का ईश्वर से विरक्ति हो।
सब कुछ कुशल मंगल ही होगा तब,
जब भक्ति में तेरे शक्ति हो।।
ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बहुत आसान है,
अपनी आत्मा को उनसे जोड़कर देखो।
हर मोह तुम्हें भरमाए जो,
उस माया को छोड़कर देखो।।
सिर्फ मन पवित्र और साफ रखें,
फिर ना किसी कठिन तप, ना साधना की जरूरत है।
जीवन में सुख समृद्धि के लिए,
बस ईश्वर से प्रार्थना की जरूरत है।।
जहाँ चाह वहाँ राह
कुछ बनने की, कुछ पाने की,
इच्छा सब में होती है।
शोहरत की लालसा से भरी,
अभिलाषाओं की ज्योति है।।
सुनहरे सपनों को पूरा करने,
कर्मठता कदम बढ़ाती है।
सफल हुआ वह, जिसने सोच लिया,
अब वह खुद ही खुद का साथी है।।
परिश्रम का हो मंज़र ऐसा कि,
किसी संकट से तू जर्जर ना हो।
आत्मविश्वास ऐसा हो खुद पर कि,
किसी और पर तू निर्भर ना हो।।
मेहनत करने वालों के लिए,
कड़ी धूप भी ठंडी पनाह है।
जो दृढ़ है संकल्प तुम्हारा फिर तो,
जहाॅं चाह है, वहॉं राह है।।
तुम आगे बढ़ कर तो देखो,
खड़ी जीत खोले बांह है।
जो दृढ है निश्चय तुम्हारा फिर तो,
जहाॅं चाह है, वहाॅं राह है।।
गुरु एवं गुरु पूर्णिमा
परिवार तो प्रारंभिक पाठशाला होती है,
मां बाप भाई बहन प्रथम गुरु।
शिक्षा का असली ज्ञान तो,
होता है अपने आशियाने से ही शुरू।।
फिर दाखिला होता है हमारा,
उच्च शिक्षा के लिए विद्यालय में।
एक पुजारी जैसे परम उर्जा की प्राप्ति हेतु,
नित जाता है देवालय में।।
फिर होता ईश्वर का सामना,
एक नए अद्भुत गुरु रूप में।
पुनः नवीन प्रतीति से प्रभावित होकर,
ओजस्वी हो जाते हम विद्या के धूप में।।
अनमोल अनुभव जुड़ जाते हैं,
गहन अध्ययन एवं संप्रीति से।
फिर वही विद्वता साक्षात्कार कराती है हमें,
हमारे उज्जवल भविष्य व उन्नति से।।
सफलता की राह सरल नहीं होती,
उसके लिए कर्म तो करना होगा।
सुखद लक्ष्य की प्राप्ति हेतु,
कठिन श्रम तो करना होगा।।
कैसे प्रेम व सम्मान है जीवन संबल,
वास्तविकता का पाठ पढ़ाते हैं।
करके हमारा मार्गदर्शन हमें,
गलत सही से अवगत कराते हैं।।
संस्कारों की परीपूर्ति के लिए,
आत्मा ने लिया नया जन्म है।
शीश झुका कर करो सब वंदन,
गुरु ही महेश्वर गुरु ही परब्रह्म है।।
जो अमल करते गुरुजन के आदेशों का,
वही यथार्थ पथ प्रदर्शक है।
जिनके अनुसरण से जीवन यात्रा सुगम हो जाए,
वह प्रथम अन्वेषक शिक्षक है।।
बाकी सब कुछ झूठ है मिथ्या है,
भौतिक सुख तो बस एक भ्रम है।
जो जीवन का है सच्चा पाठ पढ़ाता,
वही गुरु साक्षात परब्रह्म है।।
उनकी तेज से तेजस्वी बनकर,
शरण लो ज्ञान रूपी चंद्र स्वर्णिमा में।
गुरुओं के सम्मान का है यह पावन अवसर,
उत्सव मनाओ गुरु पूर्णिमा में।।
स्वतंत्रता दिवस
दो सौ साल बाद आखिरकार,
आकांक्षाओं की कलियां खिली थी।
15 अगस्त 1947 में भारत को,
अंग्रेजी शासन से आजादी मिली थी।।
अपने व्यवहार से दासत्व को मिटाकर,
निर्भयता के संकल्प को शामिल किया था।
अपना सब कुछ न्योछावर करके वीर सेनानियों ने,
स्वतंत्रता को हासिल किया था।।
जब लोकतंत्र के आधार पर पंडित जवाहरलाल नेहरू को,
प्रथम प्रधानमंत्री बनाया था।
गौरव का वह मंजर सोचो जब पहली बार,
लाल किले पर तिरंगा लहराया था।।
शहीदों के सम्मान में अनगिनत प्रदर्शन,
उनकी स्मृतियों को अलंकृत किया जाता है।
इतना ही नहीं प्रतिवर्ष नव भारत का ध्वज फहराकर,
सांस्कृतिक कार्यक्रम व परेड आयोजित किया जाता है।।
आज संपूर्ण देश में इस दिन उत्सव मनता है,
साहित्यकारों संग समारोह व काव्यांजलि की जाती है।
वीर शहीदों के याद में उन्हें,
बढ़-चढ़कर श्रद्धांजलि दी जाती है।।
भारत यशस्वी था और रहेगा,
भारत को आत्मनिर्भर बनाए रखना है।
होकर देश प्रेम की भावना से अभिभूत,
देश का गौरव सम्मान बनाए रखना है।।
भारत मां को करके नमन,
आजादी का यह पर्व मनाना है।
वैधानिक रूप से इसका मूल्य समझकर,
हम सब को स्वतंत्रता दिवस मनाना है।।
कविता संग्रह: ममता रानी सिन्हा
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Author:

आराधना प्रियदर्शनी
बेंगलुरु