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History of Hunter Commission 1882 in Hindi | हंटर आयोग 1882 का इतिहास
भारत में समय के साथ शिक्षा प्रणाली का विकास होता आया है। शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए कई बार इसमें तबदीली भी की गई। अगर भारतीय शिक्षा प्रणाली के व्यापक इतिहास पर नजर दौड़ाएं, तो इसमें हंटर आयोग के महत्व को कोई नकार नहीं सकता।
दरअसल, हंटर आयोग पहला ऐसा आयोग था जिसने शिक्षा को लेकर निश्चित जांच की और सुझाव प्रस्तुत किए। इस आयोग को ‘भारतीय शिक्षा आयोग’ के नाम से भी जाना जाता है। आज के इस आर्टिकल में हम हंटर आयोग की स्थापना, इसके प्रमुख उद्देश्य, इसकी सिफारिशों के बारे में जानेंगे। तो चलिए जानते हैं हंटर आयोग 1882 के इतिहास के बारे में:-
हंटर आयोग का परिचय
विलियम हंटर की अध्यक्षता में 3 फरवरी 1882 को भारतीय शिक्षा आयोग का गठन किया गया। इस आयोग को ही हंटर कमीशन के नाम से जाना जाता है। जब इस आयोग का गठन किया गया, उस दौरान लॉर्ड रिपन भारत के गवर्नर थे।
आयोग में विदेशी सदस्यों के अलावा आठ भारतीय सदस्यों को भी सम्मिलित किया गया था। इन सदस्यों में आनंद मोहन बोस, भूदेव मुखर्जी, सैयद महमूद और के टी तेलंग प्रमुख थे। इस आयोग का प्रमुख लक्ष्य था, प्राथमिक शिक्षा के विकास में भागीदारी करना एवं शिक्षा गुणवत्ता सुधारने हेतु सुझाव प्रस्तुत करना।
इस आयोग ने शिक्षा प्रणाली की असफलताओं को खोजने का प्रयास किया, जिससे वे इन्हें दूर करने के लिए सुझाव प्रस्तुत कर सकें। हालांकि इस आयोग ने न सिर्फ प्राथमिक शिक्षा के लिए, बल्कि माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए भी कई सुझाव दिए। हंटर कमीशन ने अपने गठन के 1 साल बाद मार्च 1883 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
हंटर आयोग को लेकर यह बात काफी कम लोग जानते हैं कि 1920 में जब जालियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था, तब उसकी जांच के लिए हंटर आयोग को ही नियुक्त किया गया था। हालांकि उस दौरान भारत में गवर्नर, जनरल चेम्सफोर्ड थे। वहीं इस कमेटी का गठन भारत के तत्कालीन सचिव एडविन मोटेंगु द्वारा करवाया गया था।
हंटर आयोग की प्रमुख सिफारिशें
हंटर आयोग के गठन के बाद इसने शिक्षा को कई भागों में बांटा जिसमें प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च, विभिन्न वर्ग, जाति, जन समुदाय के लिए शिक्षा की श्रेणियां बनाई और इन्हीं श्रेणियों के आधार पर उन्होंने प्रत्येक स्तर की शिक्षा को सुधारने के लिए कुछ सिफारिशें प्रस्तुत की। आइए जानते हैं हंटर आयोग की प्रमुख सिफारिशों के बारे में।
प्राथमिक स्तर की शिक्षा
हंटर आयोग का मानना था कि प्राथमिक स्तर की शिक्षा का जुड़ाव किसी भी व्यक्ति के जीवन से होता है। ये छात्रों को आत्मनिर्भर बनाता है। शिक्षा के क्षेत्र में कुछ सुधार किए जाने जरूरी हैं। उन्होंने निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए:-
- हंटर आयोग का सुझाव था कि जो लोग प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, उन्हें ही निम्न पदों की नियुक्ति करने के लिए वरीयता दी जाए।
- प्राथमिक शिक्षा को देशी भाषाओं में दिया जाए।
- स्थानीय संस्थाएं, प्राथमिक शिक्षा का कार्यभार संभाले, साथ ही वे स्थानीय फंड का इस्तेमाल प्राथमिक शिक्षा पर करें।
- शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए अध्यापकों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाए। और इन प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना उन स्थानों पर की जाए, जहां प्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या कम हो।
- हंटर आयोग ने यह सुझाव प्रस्तुत किया कि प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का दायित्व जिला और नगर बोर्ड को प्रदान किया जाए, जिससे शिक्षण पाठ्यक्रम पर सरकार का हस्तक्षेप न के बराबर रहे।
- प्राथमिक स्तर की शिक्षा को महत्व दिया जाए और स्थानीय भाषा में शिक्षा देने की उचित व्यवस्था की जाए।
- हाई स्कूल में व्यावसायिक, व्यापारिक और साहित्यिक शिक्षा दिया जाए।
- पिछड़े वर्ग को जाति और अनुसूचित जनजातियों से आने वाले छात्रों के लिए विशिष्ट स्कूलों का प्रावधान किया जाना चाहिए।
- शिक्षा का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोग उठा सके इसीलिए इसे निशुल्क होना चाहिए।
माध्यमिक स्तर की शिक्षा
हंटर आयोग में प्राथमिक शिक्षा के अलावा माध्यमिक शिक्षा को लेकर भी राज्य एवं केंद्र सरकार को अपने सुझाव प्रस्तुत किए। हंटर आयोग ने माध्यमिक शिक्षा को लेकर तीन प्रमुख सुझाव दिए। वे निम्नलिखित हैं :-
- हंटर आयोग का यह सुझाव था कि राज्य और केंद्र सरकार को माध्यमिक शिक्षा के दायित्व से खुद को अलग कर लेना चाहिए और इसकी जिम्मेदारी निजी तथा भारतीय लोगों को देनी चाहिए।
- हंटर आयोग ने अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर जोर दिया।
- हंटर आयोग ने माध्यमिक शिक्षा को दो भागों में बांटने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने एक ओर इसे ए कोर्स के अंतर्गत, विज्ञान और साहित्य आता था जबकि बी कोर्स के अंतर्गत व्यवसायिक विषयों को रखने का सुझाव दिया गया।
उच्च स्तर की शिक्षा
- उच्च स्तर की शिक्षा के लिए सहायता अनुदान के अलावा अतिरिक्त राशि दी जानी चाहिए।
- विभिन्न कॉलेज और विश्वविद्यालय में अलग-अलग तरह के पाठ्यक्रमों को सम्मिलित किया जाए।
- इसके साथ ही कॉलेज और विश्वविद्यालयों को कॉलेज के ढांचे के निर्माण में लगने वाले, फर्नीचर, लाइब्रेरी जैसी कई सुविधाओं के लिए अनुदान दिए जाने चाहिए।
स्वदेशीय शिक्षा
- स्वदेशी शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए सरकारों को इस तरह के स्कूल और संस्थाओं का रखरखाव करना चाहिए। साथ ही इनके पाठ्यक्रमों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
- स्वदेशी शिक्षा के लिए कभी भी स्कूलों में प्रवेश हेतु किसी तरह की बात बताना रखी है।
- बच्चे जीवन के व्यावहारिक गुणों को सीख सके इसीलिए ऐसे विषयों के पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए।
- छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करनी चाहिए।
धार्मिक शिक्षा
हंटर आयोग ने शिक्षा के प्रत्येक पहलू की ओर ध्यान दिया। उन्होंने प्राथमिक, माध्यमिक, स्वदेशी स्तर की शिक्षाओं के अलावा धार्मिक शिक्षा को भी महत्व दिया है। आइए जानते हैं इसे लेकर उनकी प्रमुख सिफारिशें क्या थी।
- सार्वजनिक स्कूलों में धार्मिक शिक्षा न दी जाए, निजी विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा प्रदान की जा सकती है जिसमें सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
- धार्मिक शिक्षण के दौरान अध्यापन स्तर पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
- धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले स्कूलों को अनुदान राशि देते समय स्कूल के स्तर की जांच की जानी जरूरी है।
वर्गीय शिक्षा
हंटर आयोग ने विभिन्न वर्ग के लोगों के लिए भी शिक्षा की गुणवत्ता का आकलन किया और निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए।
- आयोग ने स्त्रियों की शिक्षा पर विशेष जोर दिया हालांकि। उनका कहना था कि स्त्रियों को दी जाने वाली शिक्षा व्यवहारिक होनी चाहिए और उनके पाठ्यक्रम भी ऐसे होना चाहिए जो उन्हें व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करे।
- सभी स्थानीय और प्रांतीय स्कूलों में फंड ठीक अनुपात में दिया जाना चाहिए।
- स्त्री शिक्षा का दायित्व स्थानीय बोर्डों को दिया गया। हालांकि, स्थानीय बोर्डों की अनुपस्थिति में सरकार इस दायित्व को संभाल सकती है।
- स्त्रियों को शिक्षा प्रदान करने के लिए स्त्री शिक्षकों, स्त्री निरीक्षक की नियुक्ति अनिवार्य थी।
- आयोग ने स्त्रियों को निशुल्क शिक्षा देने का प्रावधान रखा। साथ ही उनके लिए प्रत्येक छात्रावास और जो छात्राएं पर्दा करती हैं उनके लिए भी विशेष प्रबंध किए जाने की सिफारिश की गई।
मुस्लिम शिक्षा
आयोग का मानना था कि मुस्लिम शिक्षा को प्रचार की आवश्यकता थी क्योंकि समय के मुताबिक ये शिक्षा उन्हें नहीं मिल पा रही थी।
- मुस्लिम शिक्षा का सारा दायित्व निगम निकायों को सौंपा जाए और इसके लिए विशिष्ट फंड की व्यवस्था की जाए।
- मुस्लिम छात्रों की शिक्षा मुख्यतः उर्दू माध्यम में होनी चाहिए उसके साथियों ने अंग्रेजी का ज्ञान भी देना चाहिए।
- मुस्लिम स्कूलों में मुस्लिम अध्यापकों को प्रतिनिधित्व देना चाहिए।
हरिजन और पिछड़ी जातियों की शिक्षा
हरिजन और पिछड़ी जातियों की शिक्षा को लेकर निम्नलिखित सिफारिशें दी।
- आयोग का कहना था कि सभी स्थानीय बोर्ड और नगर पालिकाओं को सरकार यह निर्देश दे कि वह हरिजन तथा पिछड़ी जातियों के छात्रों को अपने स्कूलों में दाखिला लें।
- इन जातियों के बच्चों के लिए विशिष्ट स्कूल खोलने का प्रावधान किया जाए। साथ ही राजकीय स्कूलों में इन्हें विशिष्ट सुविधाएं दी जाए।
- अध्यापकों को भी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर, इन बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
आदिवासियों के लिए शिक्षा
पहाड़ी कबीलों में रहने वाले आदिवासियों के लिए आयोग ने ये सुझाव दिए।
- आदिवासी समुदाय की विशिष्ट संस्कृति, परंपराओं को ध्यान रखते हुए उनके लिए विशेष स्कूल खोलने का प्रावधान किया जाए।
- आदिवासी और पहाड़ी कबीलों में रहने वाले छात्रों को मुफ्त शिक्षा उपलब्ध करवाई जाए।
- निजी संस्थानों के मुकाबले, सरकार को आदिवासी छात्रों के विकास और शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
ऊपर बताई गई इन सिफारिशों में से अधिकतर सिफारिशों को स्वीकृत कर लिया गया था।
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Author:
भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।