Table of Contents
Biography of Gajanan Madhav Muktibodh In Hindi | गजानन माधव मुक्तिबोध का जीवन परिचय
प्रसिद्ध कवि, लेखक, समीक्षक और अध्यापक गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ किसी भी पहचान के मोहताज नहीं हैं, इस पोस्ट में हम प्रसिद्ध कवि गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ का जन्म, परिवार, शिक्षा, साहित्यिक जीवन, अध्यापन कार्य, काव्यगत विशेषताएँ, भाषा शैली इत्यादि की जानकारी देंगे।
नाम | गजानन माधव मुक्तिबोध |
अन्य नाम | मुक्तिबोध |
जन्म | 13 नवम्बर 1917 |
जन्म स्थान | श्योपुर(ग्वालियर), मध्यप्रदेश में। |
पिता का नाम | माधवराव |
माता का नाम | पार्वती बाई |
पत्नी | श्रीमती शांता मुक्तिबोध |
कर्म–क्षेत्र | लेखक, कवि, समीक्षक और अध्यापक |
प्रमुख रचनाएँ | कविता संग्रह– भूरी भूरी खाक धूल, चाँद का मुँह टेढ़ा है कहानी संग्रह– काठ का सपना, विपात्र और सतह से उठता आदमी आलोचना– एक साहित्यिक की डायरी, कामायनी: एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्मसंघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र और समीक्षा की समस्याएँ रचनावली– मुक्तिबोध रचनावली (6 खंडों में) |
प्रसिद्धि | प्रगतिशील कवि |
शैक्षिक योग्यता | एम. ए. |
नागरिकता | भारतीय |
मृत्यु | 11 सितंबर 1964 में |
गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म
गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवम्बर 1917 को श्योपुर(ग्वालियर), मध्यप्रदेश में हुआ था। इनका पालन पोषण बहुत ही स्नेह, प्रेम और ध्यान से किया गया क्योंकि वह अपने माता-पिता की तीसरी संतान थे और इनसे पहले की दो संतानों की दुर्भाग्यवश मृत्यु हो चुकी थी इसलिए इनके घर में इन्हें बहुत ज़्यादा प्रेम मिलता था।
गजानन माधव मुक्तिबोध को घर में बाबू साहेब के नाम से पुकारते थे। घर में सभी लोग इनकी बहुत ज़्यादा इज्ज़त करते थे और इनकी हर ज़रूरत और इच्छाओं को पूरा किया जाता था। शाम के समय उन्हें बाबागाड़ी में घुमाने के लिए लेकर जाया जाता था। घर में इतना किसी को प्यार नहीं मिलता था जितना मुक्तिबोध को मिलता था। परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर खुशी में घर में पूजा-अनुष्ठान किया जाता था। ज़्यादा स्नेह और लाड प्यार देने के कारण गजानन माधव मुक्तिबोध ज़िद्दी हो गए थे।
गजानन माधव मुक्तिबोध का परिवार
गजानन माधव मुक्तिबोध का परिवार उनसे बहुत ज़्यादा प्रेम करता था। गजानन माधव मुक्तिबोध की माता पार्वती बाई और पिता माधवराव थे। इनके पिता पुलिस विभाव में इंस्पेक्टर पद पर थे। इनके पिता माधवराव ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और न्याय का साथ देने वाले व्यक्ति थे। इनके पिता काफी अच्छे कवि थे और इनके पिता को फारसी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था। इनके पिता को धर्म और दर्शन का भी अच्छा ज्ञान और रुचि भी। गजानन माधव मुक्तिबोध की माता ईसागढ़ के संपन्न किसान परिवार से ताल्लुक रखती थीं।
इनकी माता केवल छठी कक्षा तक पढ़ी थीं। इनकी माता भावुक और स्वाभिमानी स्वभाव की स्त्री थीं। मुक्तिबोध की शादी इनके माता पिता ने अपनी मर्ज़ी और इनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर कर दी थी। गजानन माधव मुक्तिबोध की अपनी धर्मपत्नी के साथ वैचारिक अनुकूलता नहीं थी, दोनों के विचारों में एकरूपता न होने की वजह से उनके बीच तनाव रहता था। उनकी पत्नी समृद्धि, संपन्नता और सुविधापूर्ण जीवन यापन करना चाहती थी लेकिन गजानन माधव मुक्तिबोध कवि व्यक्तित्व के थे। मुक्तिबोध को बचपन से ही बहुत स्नेह और प्रेम दिया गया लेकिन उनका आगे का जीवन दुख, परेशानियों, अभाव और संघर्ष से बीता।
गजानन माधव मुक्तिबोध की शिक्षा
मुक्तिबोध के पिता इंस्पेक्टर पद पर थे और इनका तबादला आए दिन होता रहता था इसलिए गजानन माधव मुक्तिबोध की शिक्षा में बाधाएँ आती रहती थी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन से की। 1938 में इन्होंने इंदौर के होल्कर से बी. ए. की शिक्षा प्राप्त की। 1954 में उन्होंने एम. ए. की डिग्री प्राप्त की।
गजानन माधव मुक्तिबोध का साहित्यिक जीवन और अध्यापन कार्य
गजानन माधव मुक्तिबोध का साहित्य के प्रति रुझान था इसलिए वह स्कूली जीवन से ही काव्य रचना करने लगे थे। वह काफी अध्ययनशील व्यक्तित्व के इंसान थे और नए क्षेत्रों का अध्ययन करना पसंद करते थे। इनकी पहली कविता तारसप्तक थी जिसमें इन्होंने मनुष्य की अस्मिता और आत्मसंघर्ष का चित्रण किया है। वह तार सप्तक के पहले तीन खंडों में योगदान देने वाले कवियों में से एक है, जो अजनेय द्वारा संपादित पथ-प्रदर्शक काव्य संकलनों की एक श्रृंखला थी।
यह कविता प्रखर राजनैतिक चेतना से भी समृद्ध है। इनकी प्रारंभिक रचनाएँ माखनलाल ने “कर्मवीर” में संपादित की है। सन् 1942 में इन्होंने उज्जैन में ‘मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ’ की स्थापना की। इसके पश्चात उन्होंने सन् 1945 में ‘हंस’ पत्रिका के संपादकीय विभाग में कार्य किया।
उन्होंने अपने जीवन में कई स्थानों पर अध्यापन कार्य भी किया। उज्जैन के मॉर्डन स्कूल में अध्यापक के पद पर आसीन रहे। सन 1958 में उन्हें प्राध्यापक पद पर राजनाँद गाँव के दिग्विजय कॉलेज में नियुक्ति मिली। वह बहुत अध्ययनशील थे। राजनाँद गाँव उनका अध्यापन क्षेत्र ही नहीं बल्कि अध्ययन क्षेत्र भी था। यहाँ रहकर उन्होंने कई चीज़ों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया। मुक्तिबोध जी ने अंग्रेजी, फ्रेंच सीखने के अतिरिक्त रूसी उपन्यासों, जासूसी उपन्यासों, वैज्ञानिक उपन्यासों और अलग–अलग देशों के इतिहास का भी पाठन किया।
गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रमुख रचनाएँ
कविता संग्रह | भूरी भूरी खाक धूल, चाँद का मुँह टेढ़ा है |
कहानी संग्रह | काठ का सपना, विपात्र और सतह से उठता आदमी |
आलोचना | एक साहित्यिक की डायरी, कामायनी: एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्मसंघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र और समीक्षा की समस्याएँ |
रचनावली | मुक्तिबोध रचनावली (6 खंडों में) |
गजानन माधव मुक्तिबोध को कवि के रुप में बहुत सफलता मिली लेकिन इन्होंने आलोचना, कहानी एवं लेखन कार्य में भी सफलता हासिल की है।
गजानन माधव मुक्तिबोध की मृत्यु के पहले श्रीकांत वर्मा द्वारा मुक्तिबोध की ‘एक साहित्यिक की डायरी’ प्रकाशित की। मुक्तिबोध की मृत्यु के दो महीने पश्चात इसका दूसरा संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित किया गया। 1964 में मुक्तिबोध द्वारा रचित पहली पुस्तक ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा किया गया।
इनके द्वारा रचित “भूरी भूरी खाक धूल” उनकी शेष कविताओं का संग्रह है। ‘मुक्तिबोध रचनावली’ के रूप में प्रकाशित उनकी संग्रहित रचनाएँ नेमीचंद जैन द्वारा संपादित की गईं। मुक्तिबोध ने अपना नाम आलोचना के क्षेत्र में भी बनाया है। इन्होंने भारत में भक्ति आंदोलन के विघटन पर उच्च जाति के प्रभाव पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। मुक्तिबोध ने अपने जीवन में ऊँची जाति के वर्चस्व के खिलाफ नीची जाति द्वारा किए गए विद्रोह को देखा है। साहित्यिक आलोचना के क्षेत्र में उन्होंने जयशंकर प्रसाद की कामायनी शीर्षक पर आलोचनात्मक रचना की है, जिसका शीर्षक कामायनी: एक पुनर्विचार है।
मुक्तिबोध का योगदान कविता विषयक चिंतन और आलोचना पद्धति का विकास करने और समृद्ध करने में भी है। गजानन माधव मुक्तिबोध ने चिंतक परक ग्रंथो की भी रचना की:– नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, एक साहित्यिक की डायरी और नई कविता का आत्मसंघर्ष। उन्होंने दो पुस्तकें भारत का इतिहास और संस्कृति इतिहास रचित की है। उन्होंने कई कहानी संग्रह रचित किए जैसे:– विपात्रा उपन्यास, काठ का सपना और सतह से उठता आदमी। उन्होंने वसुधा और नया खून में संपादन सहयोग भी दिया है।
गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित प्रमुख कहानियाँ
- काठ का सपना
- अंधेरे में
- क्लॉड ईथरली
- जंक्शन
- पक्षी और दीमक
- ब्रह्मराक्षस का शिष्य
- प्रश्न
- लेखन
- विपात्र
- सौन्दर्य के उपासक
गजानन माधव मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताएँ
- पूँजीवादी व्यवस्था का विरोध
इनकी काव्य रचनाओं में पूंजीवादी व्यवस्था का विरोध झलकता है। शुरूआत में मुक्तिबोध मार्क्सवाद के समर्थन में थे। मुक्तिबोध का मानना हैं कि उनका जीवन पूंजीवाद व्यवस्था की देन है लेकिन पूंजीवाद व्यवस्था के शासक झूठी चमक–दमक और शान शौकत की ज़िंदगी जी रहे हैं। मुक्तिबोध इस पूँजीवादी व्यवस्था के खिलाफ थे और इसे नष्ट करना चाहते थे। मुक्तिबोध पूँजीवाद के स्थान पर समाजवाद की स्थापना करना चाहते थे।
- व्यंग्यात्मकता
मुक्तिबोध की काव्य रचनाओं में व्यंग्यात्मकता पाई जाती है। यह अपनी काव्य रचनाओं में तीखे और चुभने वाले व्यंग्यों का प्रयोग करते हैं। वह अपनी काव्य रचनाओं में सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ करारे व्यंग्य करते हैं।
- व्यक्तिगता और सामाजिकता का उद्घाटन
मुक्तिबोध की ज्यादातर कविताओं में उन्होंने छायावादी शिल्प का प्रयोग किया है लेकिन उनकी कविताओं में वह व्यक्तिगता से सामाजिकता की ओर प्रस्थान करते हैं। उन्होंने अपने खुद के दुखों को अन्य लोगों के दुखों से जोड़ने की कोशिश की है। उनके पद्यों में यत्र-तत्र की निराशा, अवसाद, कुंठा और वेदना का चित्रण भी किया है। कवि के अनुसार, आज की व्यवस्था के कारण मानव दब चुका है और निराश है। मुक्तिबोध कहते हैं:–
“दुख तुम्हें भी है
दुख मुझे भी है,
हम एक ढहे हुए मकान के नीचे दबे हैं
चींख निकालना भी मुश्किल है”
गजानन माधव मुक्तिबोध की भाषा शैली
- गजानन माधव मुक्तिबोध के काव्य का कलापक्ष बहुत समृद्ध था। मुक्तिबोध अपनी कविता में बिंबात्मकता का अधिक प्रयोग करते हैं। इसके कारण उनकी कविता कई स्थानों पर जटिल हो जाती है।
- मुक्तिबोध अपनी रचनाओं में कल्पना चित्र और फैंटसियों का उपयोग करते हैं ताकि वह अपनी रचनाओं को प्रभावशाली बना सके।
- गजानन माधव मुक्तिबोध ने अपनी काव्य रचनाओं में अलंकारों का भी प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है जैसे–उपमा, अनुप्रास, रूपक, मानवीकरण।
- कवि शमशेर सिंह ने मुक्तिबोध की काव्य रचना के बारे में लिखा है कि “अदभुत संकेतों भरी, जिज्ञासाओं से अस्थिर, कभी दूर से शोर मचाती, कभी कानों में चुपचाप राज की बातें कह चलती है”।
- इन्होंने अपनी काव्य भाषा के लिए साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया है। गजानन माधव मुक्तिबोध ने अपनी भाषा में संस्कृत के तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग किया है वही कुछ अंग्रेजी, उर्दू व फ़ारसी शब्दों को भी प्रयुक्त किया है। इनकी कविताएँ इनके द्वारा प्रयोग किए गए प्रतीकों के लिए आम लोगों के बीच मशहूर है।
गजानन माधव मुक्तिबोध की मृत्यु
गजानन माधव मुक्तिबोध की अंतिम रचना वर्ष 1962 में ‘भारतीय इतिहास और संस्कृति’ प्रकाशित हुई। इसके प्रकाशित होने के पश्चात मध्यप्रदेश सरकार मुक्तिबोध से चौकन्नी हो गई और उनकी इस किताब पर प्रतिबंध लगा दिया गया, इस घटना ने उन्हें ऐसी चोट पहुँचाई जिससे उन्हें गहरा दुख और हृदय को गहरी चोट पहुँची।
17 फरवरी 1964 को पक्षाघात(Paralysis) ने इन्हें धर दबोचा और उपचार के लिए हमीदिया अस्पताल, भोपाल में एडमिट किया गया। इनकी तबियत में कोई सुधार नहीं आ रहा था और इनकी हालत और ज़्यादा खराब होती जा रही थी। तबीयत और ज़्यादा खराब होने पर इन्हें दिल्ली के ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट में एडमिट करवाया गया लेकिन तबियत में कोई सुधार नही आया। 8 माह तक ज़िंदगी व मौत के बीच संघर्ष करने के पश्चात गजानन माधव मुक्तिबोध का 11 सितंबर 1964 को रात्रि में देहावसान हो गया।
मुंशी प्रेमचंद का प्रारंभिक जीवन
तो ऊपर दिए गए लेख में आपने पढ़ा गजानन माधव मुक्तिबोध का जीवन परिचय (Gajanan Madhav Muktibodh Biography In Hindi), उम्मीद है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा।
आपको हमारा लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं, अपने सुझाव या प्रश्न भी कमेंट सेक्शन में जा कर पूछ सकते हैं। ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए HelpHindiMe को Subscribe करना न भूले।
Author:
भावना, मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में ग्रैजुएशन कर रही हूँ, मुझे लिखना पसंद है।