Best Motivational Stories in Hindi

Last updated on: November 17th, 2021

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प्रेरणादायक कहानियाँ | Best Motivational Stories in Hindi

ज़िन्दगी में यूं तो बहुत गम हैं और ढेरों परेशानियां भी। हर इंसान की जिंदगी का कोई-न-कोई मकसद जरूर होता है। हर किसी का अपनी मंजिल को पाने का अपना-अपना तरीका भी है। यूं तो हमें अपना मुकाम खुद बनाना होता है, लेकिन जब कभी मंजिल पथ पर चलते हुए आपके कदम लड़खड़ने लगते हैं तो एक अच्छे दोस्त की जरुरत हमेशा ही मह्सूस होती है। यह दोस्त कुछ अच्छी मोटिवशनल कहानियां भी हो सकती हैं। ये मोटिवेशनल कहानियां आपमें नई ऊर्जा का संचार करती हैं।

नीचे दी गई मोटिवशनल स्टोरी उम्मीद है कि आपमें एक नई ऊर्जा का संचार जरूर करेगी।

जीना नहीं तुमसे जुदा
मेहनत का सुख सबसे बड़ा
असलियत में ही जीवन का असली सुख
बुढ़िया का दयालु बेटा
मन की ताकत
नन्ही चिड़िया के सच्चे बोल
आलस का रोग
चालाकी चालाक से
मानसी की वो ईमानदारी भरी जिद और सफलता की मिठास
धुंधली नजरें और आईएएस बनने का वो सपना

जीना नहीं तुमसे जुदा

(एक छोटी-सी मगर सच्ची प्रेम कहानी)

केशव को इस छोटे-से सागर तटीय कस्बे में आकर बसे लगभग पांच साल हो गए थे। पांच साल पहले वह इस कस्बे में अकेला आया था। पहले वह दिल्ली के निकट हरियाणा के किसी गांव में रहता था।

किरण उसके यहां आने के छह महीने बाद उसके पासआई थी। पर केशव आज तक इसी अचरज में है कि आखिर किरण यहां अकेली आई कैसे ? किसने किरण को उसका पता दिया ? वह तो सबसे छिपकर यहां रहने आया था और उसने अपने घर वालों तक को अपने बारे में कुछ नहीं बताया था। 

जो किरण आज उसकी पत्नी बनकर साथ रह रही है उसी की नजरों से दूर होने लिए तो वह घर से हजारों मील दूर यहां इस अनजान शहर में चला आया था और इसलिए चला आया था कि वह उसे और उसके प्यार को भूल कर किसी और से शादी कर ले। उसके बिना खुशी- खुशी अपना जीवन जी ले।

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मगर यहां तो सब उलटा ही हुआ, वह किसी और की होने के बजाय उसके पास चली आई और चली भी ऐसे आई कि मानो उसका पूरा अता-पता जानती हो। जब वह उसके पास आई थी तो सीधे उसकी बांहों में घुसकर सीने से चिपक गयी थी।

उसके सीने से चिपक कर कहा था कि -“अब हमें कोई जुदा नहीं कर सकता, केशव। हम दोनों शादी करके यहां सबसे दूर आराम से रह सकते हैं। मेरे  मां-बाप और घर-परिवार सबने मुझे आज़ाद कर दिया। तुम्हारे लिए आज़ाद कर दिया मुझे। अब मेरी किसी को परवाह नहीं और तुम्हारे सिवा कोई नहीं मेरा।” 

केशव को अपने जीवन में एकाएक आए इस परिवर्तन पर भरोसा तो नहीं था मगर किरण की चाहत और उसके प्यार की खातिर उसने इसे कुदरत का करिश्मा  समझकर मंजूर कर लिया। उससे शादी कर ली और खुशी-खुशी उसके साथ जीवन बिताने लगा।

वर्ना तो उसे आज भी याद है कि जब किरण के परिवार वालों को किरण और उसके प्यार के बारे में पता चला था तो उन्होंने कैसा बवाल मचाया था। वे ऊंची जाति के  जमींदार लोग थे और केशव एक गरीब खेत मजदूर का बेटा।इसीलिए उन्होंने उसके परिवार को जैसे जी में आया खूब सताया और खूब रुलाया। किरण के भाइयों ने तो उसे पीट-पीटकर अधमरा ही कर दिया था। सबसे ज्यादा दुख वाली बात तो यह थी कि इस दौरान किरण ने उसकी खबर तक नहीं ली थी।

जैसे-जैसे मामले ने तूल पकड़ा केशव और उसके परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। जात-बिरादरी और भाईचारे किसी ने भी साथ नहीं दिया।केशव और किरण का प्यार मान-सम्मान और जातीय भेदभाव का मुद्दा बनता चला गया।

फिर एक दिन केशव को किसी लड़की के हाथों एक संदेश मिला कि जितना जल्दी हो सके गांव छोड़ दो। अगर किरण को जिंदा चाहते हो तो गांव छोड़ दो। अपने मां-बाप व घर परिवार को सलामत देखना चाहते हो तो गांव छोड़ दो। समझ लो कि किरण तुम्हारे बिना जी सकती है और तुम उसकी खुशी के लिए गांव छोड़ दो। गांव से चले जाओ और कभी लौटकर मत आना।

यह संदेश मिलते ही केशव ने उसी रात ट्रेन पकड़ ली और यहां इस कस्बे में चला आया। ट्रेन में बैठने से पहले वह खूब बिलख-बिलख कर रोया था। उसने किरण को चीख़-चीख़ कर पुकारते हुए कहा था कि-“किरण,मैं तुमसे दूर जा तो रहा हूं पर जिंदा नहीं रह पाऊंगा। मैं तुम्हारे बग़ैर जी नहीं सकता… याद रखना… कभी नहीं जी सकता ।”

आज केशव के पास अपना घर है और किरण का साथ है। सागर तट पर फास्टफूड की अच्छी दुकान है।
किसी चीज की कमी नहीं है। मगर फिर भी थोड़ा गम इस बात का है कि एक तो पांच साल से किरण के साथ रहते हुए भी कोई संतान नहीं है और दूसरा वह चाहकर भी अपने घर वालों से कभी संपर्क साधने की नहीं सोच पाता। उनसे संपर्क करने की वह इसलिए नहीं सोच पाता क्योंकि उसे डर है कि कहीं किरण को न खो दे। कहीं उनके कारण फिर से गांव में कोई बवाल न खड़ा हो जाए।

किरण का प्यार और उसकी चाहत ही उसके लिए  सबकुछ  है। उसके प्यार में वह रोज वही नयी ताजगी और  बेकरारी महसूस करता है जो शुरू-शुरू में किया करता था।  इस कारण उसे कभी लगता ही नहीं कि उन्होंने शादी कर ली है और साथ रहते हुए पांच साल हो गए हैं।

साथ ही उसे किरण के सिवा किसी और के बारे में सोचने की फुर्सत भी नहीं मिलती। मन में सवाल तो कई उठते हैं कि आखिर किरण के मां-बाप मान कैसे गए और उन्होंने किरण को उसके लिए छोड़ कैसे दिया ? या किरण उसके पास आई कैसे, उसे यहां लेकर आया कौन? मगर किरण के प्यार और चाहत के आगे उसे कुछ नहीं सूझता। वह इसे भगवान की मर्जी या करिश्मा समझकर सब भूल जाता है।

एक दिन केशव जब अपनी दुकान पर था तो अचानक उसकी नज़र अपने रोहित पर पड़ी। रोहित उसके गांव से था और उसका पुराना दोस्त था।इसी कारण केशव को उसकी अनदेखी करना उचित न लगा। उसने रोहित को अपनी दुकान में बुलाकर खूब खातिरदारी की। रोहित भी केशव से मिलकर बहुत खुश हुआ। पर उसने किरण के बारे में जो सच बताया उसे सुनकर केशव सन्न रह गया।

रोहित ने केशव को बताया कि उसके गांव छोड़ने के अगले दिन ही किरण कोमा में चली गयी थी और कुछ ही दिनों में उसकी हालत ऐसी हो गयी थी कि सबको उस पर तरस आने लगा था। उसके मां-बाप और भाइयों ने तुम्हें बहुत ढूंढा ताकि वे किरण को तुमसे मिला दें और वह जिंदा बच जाए। सबके मन बदल गए थे। जो प्यार के दुश्मन थे वो प्यार के हितैषी बन चले थे।

सब भगवान से यही प्रार्थना कर रहे थे कि तुम कहीं से मिल जाओ और किरण के प्राण बच जाएं। कुछ लोग तो यहां तक कहने लगे थे कि अगर किरण मर गयी और तुमसे न मिल पायी तो यह पूरे गांव के लिए अभिशाप साबित होगा। सच्चे प्रेमियों पर यह जुल्म पूरे गांव पर कहर बनके टूटेगा।

सबने तुम्हें ढूंढा और तुम्हारे मां-बाप से भी तुम्हारा पता पूछा मगर कुछ हासिल न हुआ। लाख कोशिश करके भी कहीं से भी तुम्हारा पता न मिला और फिर वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था। तुम्हारी जुदाई में  तुम्हारी किरण ने सुध तो पहले ही त्याग दी थी फिर एक रोज प्राण भी त्याग दिए। उस दिन सबकी आंखों में आंसू थे जिस दिन किरण को चित्ता की अग्नि ने जलाकर भस्म किया था। 

रोहित से यह सुनकर केशव को बहुत कुछ समझ में आ गया। मगर फिर भी उसे रोहित की बात पर पूरा  भरोसा न हुआ क्योंकि किरण तो उसके पास थी। बिलकुल ठीक-ठाक और जिंदा अवस्था में। फिर वह उसके मरने की बात पर यकीन कैसे करता ! उसने फिर भी रोहित की बात की सच्चाई को परखने के लिए गांव जाने का निर्णय किया।

अगले ही दिन उसने किरण को बिना कुछ बताए गांव जाने के लिए ट्रेन पकड़ ली। गांव पहुंचकर पता चला कि रोहित ने जो भी उसको बताया था वो सब सच था।उसे देखकर सबने यही कहा कि अगर उस समय तुम मिल जाते तो शायद किरण की जान बच जाती! पर अब कुछ नहीं हो सकता?

लेकिन उसके बाद जब केशव ने उनको यह बताया कि किरण तो पिछले पांच साल से उसके साथ ही रह रही है और उन्होंने शादी भी कर ली है तो सबने दांतों तले उंगली दबा ली। किसी ने यकीन नहीं किया। सबने यही कहा कि या तो तुम झूठे हो या फिर प्यार की नाकामी ने तुम्हें पागल बना दिया है।

पर अब केशव के सामने सब स्पष्ट हो चुका था और वह समझ चुका था कि उसके साथ रहने वाली किरण नहीं बल्कि उसकी आत्मा है। यह सब जानने के बाद उसमें इतनी हिम्मत नहीं बची कि वह खड़ा रह सके।वह सिर पकड़ कर जमीन पर बैठ गया और रो-रोकर किरण को पुकारने लगा- ” किरण…कि…किर…किरण कहां हो तुम? मुझसे भूल हुई। मुझे माफ कर दो। मुझे तुम्हें वहां अकेले छोड़कर यहां नहीं आना चाहिए था।
मैं वापस तुम्हारे पास आ रहा हूं।” 

केशव ने यह कहते हुए जैसे ही उठने की कोशिश की तभी किरण की आत्मा वहां प्रकट हो गयी। केशव ने जैसे ही उसे देखा तुरंत उठकर दौड़ा और उससे लिपट गया। फिर कुछ ही क्षण बाद किरण की आत्मा अदृश्य हो गयी और केशव का निर्जीव शरीर धड़ाम से जमीन पर जा गिरा। सच्चे और अनूठे प्यार का यह मार्मिक अंत देखकर सब गांव वालों की आंखों से आंसू फूट पड़े।

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लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद

 

मेहनत का सुख सबसे बड़ा

हिमालय के जंगलों में एक तोता और मैना रहते थे। एक दिन दोनों आपस में बातें करते-करते बहस पर उतर आए। दोनों मनुष्य जीवन में आने वाले सुख-दुख को लेकर बहस करने लगे।

तोता-  मैं तो कहता हूं कि जीवन में धन का सुख बड़ा होता है। धनवान व्यक्ति धन से सब सुख खरीद सकता है। अच्छा खाता-पीता है और स्वस्थ रहता है। सारा जीवन आराम में बीतता है।

मैना- मैं तो मेहनत का सुख सबसे बड़ा सुख मानती हूं। क्योंकि  मैंने देखा है कि मेहनती आदमी जितना शांत और सुखी जीवन जीता है वैसा जीवन तो कोई  धनवान जी ही नहीं सकता।

तोता -क्या तुम इसका कोई सबूत या उदाहरण  दे सकती हो?

मैना- हां, मैं तुम्हें इसका सबूत दे सकती हूं पर इसके लिए तुम्हें  मेरे  साथ  मैदानों में  चलना पड़ेगा।

तोता- हां मैं चलूंगा।

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मैना तोते के साथ उड़ते हुए जंगल से बहुत दूर एक गांव में आ पहुंची। गांव में एक आलीशान बंगला था। दोनों  उस बंगले की एक खिड़की पर आकर बैठ गए। वहां तोते ने देखा कि बंगले का मालिक बहुत बड़ा सेठ है। नौकर-चाकर और सब तरह के ठाट-बाट हैं  पर फिर भी सेठ सुखी नहीं है।मोटापे और अन्य बहुत सारे रोगों से घिरा हुआ है। 

सेठ – किस काम का धन और किस काम का आराम ?  शरीर रोगों का घर बन गया है। रो-रोकर जीवन बीत रहा है। मुझसे अच्छा तो वो गरीब मजदूर है जो मेहनत की रूखी-सूखी खाकर निरोग जीवन जीता है। यहां खाने को तो पकवान हैं पर भूख बिलकुल भी नहीं है।
दवाइयां ही खाकर जीना पड़ता है।

सेठ की हालत देखकर और उसकी सारी बातें सुनकर तोता सोचने लगता है कि शायद मैना सच कहती है कि धन का सुख सबसे बड़ा सुख नहीं है। मेहनत का सुख ही सबसे बड़ा सुख है। पर जब तक अपनी आंखों से न देख लूं, कैसे मान लूं? यही सोचकर तोता मैने से कहता है कि धन वाला उदाहरण तो तुमने दिखा दिया अब मेहनत वाला भी दिखा दो।

मैना- चलो ,मेरे साथ उड़ चलो। मैं तुम्हें एक दूसरे गांव  लेकर चलती हूं।

अब मैना उसे साथ लेकर एक दूसरे गांव की ओर उड़ चली जाती है । दूसरे गांव में पहुंचते-पहुंचते दोनों लगभग  शाम हो जाती है । मैना तोते को एक खेत में ले जाती है। वहां तोता देखता है कि एक मजदूर फावड़े से खेत की खुदाई कर रहा है। शरीर पसीने से तर- बतर है मगर फिर भी लगा हुआ है। सूरज ढलने तक वह मजदूर बिना रूके पूरे खेत को खोद डालता है। फिर सिर पर बंधा  गमच्छा खोलकर पसीना पोंछता है और फावड़ा कंधे पर रखकर घर की तरफ चल पड़ता है। तोता और मैना भी उसके साथ-साथ उड़ते जाते हैं।

कुछ देर बाद जब वह मजदूर अपने घर पहुंचता है तो उसकी पत्नी मुस्कराते हुए उसका स्वागत करती है।

पत्नी-आ गए जी , सारा काम  निपट गया क्या?

मजदूर- हां, काम तो सारा निपटा दिया , मगर भूख बहुत लगी है।खाने में क्या बनाया है? 

पत्नी- सब्जी तो कुछ थी नहीं इसलिए सूखी रोटियां ही बनाई हैं  प्याज के साथ खा लो।

मजदूर- ठीक है, जल्दी से ले आओ।

यह कहकर मजदूर  हाथ-मुंह धोकर एक चारपाई पर जाकर बैठ जाता है। उसकी पत्नी एक थाली में कुछ रोटियां और एक मोटा प्याज रखकर उसे पकड़ा जाती है। मजदूर बड़े ही मज़े में रोटियां खाता है।

मजदूर- वाह! खाना  खाकर आत्मा तृप्त हो गयी।अब तो बस शरीर को आराम चाहिए इसलिए सो जाता हूं ।

मजदूर खाना खाने के बाद वहीं उस बिना  बिस्तर वाली चारपाई पर लेटकर गहरी नींद सो जाता है।
तोता यह देखता है तो काफ़ी देर तक सोचता रहता है और फिर मैना से कहता है।

तोता- मैना ,तुम सच कहती हो।इस संसार में सबसे बड़ा सुख मेहनत का सुख है, क्योंकि मेहनत करने से शरीर नीरोग रहता है। सही से भूख लगती है और आदमी सही से खा-पीकर सो जाता है। उसे ज्यादा  ठाट-बाट की जरूरत ही नहीं होती।

मैना- अगर  सब इस बात को समझ जाएं तो सेहतमंद और सुखी रहें। पर यहां तो सब धन के पीछे पड़े हैं। सब आराम चाहते हैं। मेहनत तो कोई करना ही नहीं  चाहता।

तोता- इसीलिए तो निरोगी काया को तरसते हैं और रोग भोगते हैं।

मैना- तुम ठीक कहते हो… पर क्या अब अपने जंगल की ओर वापस उड़ चलें ?

तोता- हां,हां चलो…उड़ चलें।

उसके बाद दोनों अपने जंगल की ओर वापस उड़  जाते हैं।

कहानी से प्राप्त सीख: असली सुख केवल मेहनत से ही मिलता है ,धन से मिला सुख कभी असली सुख नहीं होता।

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लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद

असलियत में ही जीवन का असली सुख

● गोपाल नाम का सब्जीवाला 

 गोपाल नाम का  सब्जीवाला हमेशा अपने बेटे को यही समझाता था कि -“बेटा, अपनी हैसियत में रह कर जीना सीखो। दिखावे में कुछ नहीं रखा। एक गरीब  सब्जियां बेचकर अपने परिवार का पेट पालने वाले के लड़के हो सो उसी के लड़के बनकर रहो। किसी धनी व्यापारी या जमींदार के लडकों जैसा दिखावा करके कुछ फायदा न होगा। अंत में पछताना या दुःख उठाना पड़ेगा।” 

मगर उसका बेटा अनुराग था कि अपने पिता की हर बात को कानों पर से टाल देता था।उसकी दी सीख को मानकर कभी भी चलने की कोशिश नहीं करता था। धनी बाप का बेटा होने का दिखावा करने के लिए बाप की कड़ी मेहनत की कमाई को कपड़े-जूते तथा अन्य चीजों पर अंधा होकर उड़ा देता था। साथ ही अपने कालेज के दोस्तों में अपनी अमीरी का रौब जमाने के लिए भी खूब रुपया-पैसा खर्च करता था। इस तरह गोपाल जो भी कमाता था सब बराबर हो जाता था। उसके पास एक पैसा भी ऐसा नहीं बचता था कि आड़े दिनों में काम आ जाए।

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● काॅलेज की पढ़ाई छोड़ अनुराग का घर लौट आना

कुछ दिन अनुराग शहर में रहकर काॅलेज की पढ़ाई-लिखाई करता रहा और जैसे जी में आता पिता की मेहनत की कमाई को बर्बाद करता रहा। लेकिन समयबदलते देर नहीं लगती। एक दिन गोपाल की तबियत एकाएक ऐसी बिगड़ी कि उसने बिस्तर पकड़ लिया।उसकी लंबी बीमारी के कारण सब चौपट होता चला गया। सब्जियां बेचने का काम बंद पड़ गयाऔर घर में आमदनी के नाम पर कुछ भी नहीं बचा। बेटे अनुराग की फिजूल खर्ची के कारण पिता बचत के रूप में भी कोई पैसा जमा नहीं कर पाया था इसीलिए कर्ज लेने की नौबत तक आ गई।

गोपाल के लिए जब कर्ज मिल पाना भी मुश्किल हो गया तो उसने बेटे अनुराग को फोन करके कहा कि-” बेटा, तुम्हें अब आगे मैं बिलकुल भी न पढ़ा पाऊंगा। मेरी बीमारी के कारण मेरा काम-धंधा खत्म हो चुका है और मैं कर्ज के नीचे दब चुका हूं। इसलिए तुरंत अपने घर लौट आओ और आकर घर का काम-काज संभाल लो।”

पिता की बातें सुनकर अनुराग को जबरदस्त धक्का लगा और वह बिना किसी यार-दोस्त को अपने बारे में बताए ही रात की ट्रेन पकड़ कर शहर से अपने गांव चला आया।

● अनुराग सब्जियां बेचने को मजबूर 

अनुराग जब काॅलेज की पढ़ाई छोड़ कर घर लौटा तो उसने अपने पिता को बहुत बुरी हालत में पाया। पिता गंभीर रूप से बीमार था और उसे देखकर लगता था कि बस कुछ ही दिनों में मर जाएगा। उधर चिंता के कारण मां भी सूखकर कांटा हो गयी थी। माता-पिता दोनों की यह हालत देखकर अनुराग बहुत दुखी हुआ।
मां ने आंसू बहाते हुए अनुराग से कहा-” बेटा,तुमने कभी पैसा बचाने की नहीं सोची और न ही अपने पिता के पास इतना पैसा छोड़ा कि वह पैसा बचा पाते।

सब दिखावे की अमीरी में उड़ा दिया। अब दिखावा छोड़ कर वास्तविक जीवन जीने की आदत डालो , नहीं तो हम भूख से मर जाएंगे और तुम्हारे पापा बीमारी से। जिन लोगों से कर्ज लिया है वो भी इस घर से बाहर निकाल देंगे तो हम कहां जाएंगे? हम सड़क पर आ जाएंगे, बेटा।”

मां की बात सुनकर अनुराग कुछ ज्यादा नहीं बोल पाया। उसने मां की आंखों से आंसू पोंछते हुए बस इतना ही बोला-“मां, तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा। अब पापा की सब्जियां बेचने का काम मैं करूंगा।”

● दिखावा छोड़कर असलियत का जीवन 

अनुराग ने कभी सोचा भी नहीं था कि जीवन एकदम से ऐसे भी बदल जाता है व आदमी अपनी असलियत में  ही जीए तो ही अच्छा होता है। इसीलिए जब उसे अपनी झूठी अमीरी का चोला त्याग कर असलियत की जमीन पर पैर रखना पड़ा तो उसे बहुत तकलीफ हुई। उसने सब्जियां बेचने का काम करना चाहा तो उसके पास पैसे नहीं थे।

पिता ने पैसे उधार मांगने के लिए एक साहूकार के पास भेजा तो उसने पैसे देने से मना कर दिया। उलटे उस पर एक ताना भी कसा कि-” पढ़ा-लिखा, साहब जैसे कपड़े पहनने वाला तुम्हारे जैसा लड़का सब्जियां बेच पाएगा क्या ? तुम्हें  पैसे दिए तो तुम उन्हें फजूल में  ही खर्च करोगे।”

साहूकार की बातों ने तो अनुराग को अंदर तक हिला कर रख दिया। आज उसे एहसास हुआ कि अगर वह अपनी असलियत में जीता तो इस तरह के बोल और अपमान कभी न सहना पड़ता। साथ ही वह मेहनत से जीने और खाने-कमाने का हुनर भी सीख जाता। पैसे को दिखावे में खर्च करने के बजाय उसे बचाकर अपना बेहतर भविष्य बनाने पर खर्च कर सकता था।

अनुराग की अपनी इस गलती के कारण बहुत दुख उठाने पड़े और लोगों से काफी बेइज्जत भी होना पड़ा मगर उसने हार नहीं मानी। उसने अपनी भूल को सुधारने और अपनी असलियत पर रहकर जीवन को बेहतर बनाने का दृढ़ निश्चय किया। जीवन में हुई भूल और उसके कारण मिले दर्द व अपमान ने उसे एक संघर्षशील इंसान बना दिया। उसने अपना महंगा मोबाइल फोन बेचकर अपने दम पर सब्जियां बेचने काम शुरू कर लिया और फिर दिन-रात मेहनत करने लगा।

● अनुराग के जीवन में सुख और कामयाबी 

अनुराग के स्वभाव में आए बदलाव और उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति व मेहनत ने वो रंग दिखाया कि कुछ ही दिनों में उसके पापा की बीमारी ठीक हो गयी और उनकी बीमारी के कारण जो कर्ज चढ़ गया था वो सबभी उतर गया। पापा भी सब्जियों के कारोबार में  अनुराग का हाथ बंटाने लगे।

अब अनुराग ने अपनी पढ़ाई-लिखाई पर दोबारा ध्यान देना शुरू किया और पापा के साथ मिलकर काम-धंधा करते हुए मेहनत से पढ़ने लगा। दिन-रात इतनी मेहनत से पढ़ाई की किकुछ ही सालों में आईएएस की परीक्षा पास करके भारत सरकार में उच्च प्रशासनिक अधिकारी के पद  पर नियुक्ति पाई।

कहानी से प्राप्त सीख: अगर हम अपनी असलियत में जीते हैं  तभी हमें जीवन में असली सुख और कामयाबी मिलते हैं।

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लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद

बुढ़िया का दयालु बेटा

○ कदमपुर गांव के दो गरीब परिवार 

बहुत पुरानी बात है जब राजा-महाराजाओं का जमाना था। कदमपुर नाम के गांव में एक गरीब बुढ़िया अपने बारह साल के बेटे के साथ रहती थी। उसके बेटे का नाम दीनू था और वही उस बुढ़िया का इकलौता सहारा था। बुढ़िया अपना और अपने बेटे का पेट पालने के लिए मिट्टी के खिलौने बनाकर उन्हें गली-गली में घूमकर बेचा करती थी। उन खिलौनों को बेचकर जो बनता था उसी में मां- बेटे का गुजारा चलता था।

उसी गांव में एक गरीब शिकारी भी रहता था। उस शिकारी के परिवार में उसके अलावा उसकी पत्नी और एक दस साल की बेटी शामिल थे। शिकारी रोज जंगल में शिकार करने जाता था और जो भी शिकार  मिलता था उसी के सहारे अपना व अपने परिवार का जीवनयापन करता था। इन दोनों परिवारों की हालत ऐसी थी कि कभी-कभार भूखा भी रहना पड़ जाता था।

○ शिकारी के परिवार पर भुखमरी की नौबत

एक बार शिकारी को कई दिनों तक जंगल से कोई भी शिकार नहीं मिला। वह शिकार की खोज में रोज जंगल में जाता और खाली हाथ लौट आता। शिकार न मिल पाने के कारण उसके परिवार के भूखे मरने की नौबत आ गई। वह खुद, उसकी पत्नी और और उसकी बेटी तीनों का भूख के कारण बुरी स्थिति में पहुंच गए। तीन दिनों तक तीनों के पेट में अन्न का एक दाना भी न गया।

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बेटी की स्थिति और भी खराब थी जिसे देखकर  शिकारी और उसकी पत्नी बहुत अधिक चिंतित हो गए। मगर फिर भी शिकारी ने धैर्य नहीं  खोया और वह चौथे दिन भी शिकार के लिए जंगल में निकल गया।

○ दीनू की शिकारी से मुलाकात

उस दिन भी शिकारी को कोई ऐसा शिकार नहीं मिला जिससे उसके परिवार के सभी सदस्यों को भरपेट भोजन मिल सके। हां, उसे शिकार के नाम पर एक हिरण का नवजात शिशु मिल गया। शिकारी ने न चाहते हुए भी उसे उठा लिया और फिर अपने घर की तरफ चल पड़ा। शिकारी चलते-चलते सोच रहा था कि शिकार है तो नन्हा-सा बच्चा जिसे मारकर खाना किसी महापाप से कम न होगा मगर अपने परिवार को मरने से बचाने के लिए यह महापाप तो करना ही पड़ेगा।

शिकारी यह सोचते हुए अपने घर की ओर चला जा रहा था कि तभी उसे रास्ते में उस बुढ़िया का बेटा दीनू मिल गया। दीनू शिकारी के पास  हिरण का नन्हा-सा बच्चा देखकर उससे पूछने लगा -” अरे ओ शिकारी चाचा, इतने छोटे से हिरन के बच्चे को क्यों पकड़ करले आए ? इसे तो इसकी मां के पास रहने देते ? अब इतने निर्दय हो गए हो क्या कि नन्हे दूध पीते बच्चों को भी मार डालोगे ? “

○ शिकारी की आंखों में आंसू  

दीनू की बात सुनकर शिकारी की आंखों में आंसू आ गए और वह बोला-“दीनू बेटा , इतने छोटे बच्चे का शिकार करना तो मैं  भी नहीं चाहता, पर क्या करूं मजबूरी है। तीन-चार दिनों से जंगल में कोई शिकार ही नहीं  मिला और इसी कारण मैं और मेरा परिवार भूख के कारण मरने की कगार पर पहुंच गए हैं। दस घरों में जाकर अनाज मांगा मगर किसी ने एक दाना भी नहीं दिया। आज भाग्य से यह हिरण का बच्चा मिल गया , शायद यही हमारे प्राण बचा ले !

यही  सोचकर इसे उठा लाया हूं । जानता हूं कि यह मेरे भूखे परिवार के लिए एक-दो निवाले से ज्यादा कुछ नहीं है, पर फिर भी इसे खाकर आज की रात तो मरने से तो बच ही जाएंगे। कल क्या होगा भगवान जाने !”

○ दीनू की शिकारी से विनती  

दीनू दयालु बालक था और इसी कारण उसे हिरण के बच्चे पर बहुत दया आई। अपनी इसी दया भावना से प्रेरित होकर उसने मन-ही-मन हिरण के बच्चे को शिकारी से मुक्त कराने का निश्चय किया। 
वह शिकारी से विनती करते हुए बोला- “देखो शिकारी चाचा,मैं तुम्हारी मजबूरी को समझता हूं। मैं चाहता हूं कि न तो तुम  भूखे रहो और न ही यह हिरण का बच्चा ही तुम्हारे हाथों मरे।

हम भी तुम्हारी तरह गरीब हैं  इसलिए हमारे  पास भी खाने का कुछ ज्यादा सामान नहीं है। घर में बस इतना आटा है कि तुम्हारा परिवार आज रात पेटभर खाकर चैन से सो सकेगा। मैं वह आटा आपको दे देता हूं और आप मुझे  यह हिरण का बच्चा दे दीजिए। मैं कल सुबह होते ही इसे जंगल ले जाऊंगा और इसकी मां को ढूंढ कर उसके हवाले कर दूंगा।

शिकारी ने दीनू की बात मान ली। उसने हिरण का बच्चा दीनू को दे दिया और दीनू ने घर में जितना भी आटा रखा था सारा उसको लाकर दे दिया। इस तरह उस रात शिकारी के परिवार को भरपेट भोजन मिल गया।

○ दीनू पर बूढ़ी मां की डांट

जब दीनू की मां को पता चला कि उसके बेटे ने एक हिरण के बच्चे को बचाने के लिए घर में रखा सारा आटा शिकारी को दे दिया है और आज उन दोनों को भूखे पेट सोना पड़ेगा तो उसे दीनू पर बहुत गुस्सा आया। उसने दीनू को बहुत डांटा मगर फिर जब  हिरणी के नन्हें बच्चे को देखा तो उसका सारा गुस्सा गायब हो गया और उसकी जगह मन में करुणा व स्नेह का सागर उमड़ पड़ा। उसने दीनू को सीने से लगा लिया और आंखों में आंसू भरकर कहने लगी- 

“तूने इस हिरण की जान बचाकर बहुत बड़े पुण्य का काम किया है, बेटा। मुझे तुम पर गर्व है। इस नन्ही-सी जान को बचाने के लिए हमें एक रात क्या कई दिन-रात भी भूखा सोना पड़े तो कोई गम नहीं होगा।”

दीनू अपनी मां की ये बातें सुनकर बहुत खुश हुआ और मां से बोला-” मां, वो मंदिर का पुजारी कहता है कि जो भगवान के बनाए पशु-पक्षियों पर दया दिखाता है न, भगवान उस पर अवश्य दया दिखाता है। देखना कल तुम्हारे सारे खिलौने बिक जाएंगे और फिर हम दोनों को पेटभर खाना खाने को मिल जाएगा। बस आज की रात ही तो भूखा सोना है!”

○ दीनू को उसकी दयालुता का पुरस्कार 

अभी रात के खाने का समय भी नहीं हुआ था कि गली में राजा द्वारा की गई मुनादी के बोल सुनाई पड़े।   मुनादी के बोल इस प्रकार थे कि-“राज्य की महारानी के पास एक हिरनी है जिसका नवजात शिशु कहीं खो गया है या उसे कोई उठा ले गया है।जो व्यक्ति हिरणी को उसका बच्चा वापस लाकर देगा महारानी जी की तरफ से उसे सोने की सौ मुहरें इनाम में दी जाएंगी।” 

जैसे ही दीनू और उसकी मां ने यह मुनादी सुनी तो दोनों के चेहरे खिल उठे। दीनू ने तुरंत हिरण के बच्चे को उठाया और अपनी मां को साथ लेकर राजमहल जा पहुंचा। जैसे ही हिरणी ने उस बच्चे को देखा तुरंत आगे आकर उसे स्नेह से चाटने लगी। बच्चा भी भूख से व्याकुल था और इसीलिए हिरणी के स्तनों को ढूंढ कर दूध पीने में जुट गया ।

महारानी हिरणी से उसके बच्चे को मिला कर बहुत खुश हुईं। उसने दीनू और उसकी मां को पेटभर खाना खिलाया और फिर सोने की सौ मुहरें इनाम में देकर उन्हें राजमहल से खुशी-खुशी विदा किया।

○ शिकारी ने छोड़ा जीवों का शिकार करना

दीनू ने  सोने की सौ मुहरें लेकर अपनी ही गरीबी का इलाज नहीं किया बल्कि उसने शिकारी का जीवन भी  बदल दिया। उसने शिकारी को पचास सोने की मुहरें दीं ताकि वह जीवों का शिकार करना छोड़ कर कोई  और काम-धंधा करके अपने परिवार का पेट पालने लगे। शिकारी उस धन से कुछ खेत खरीद कर उनमें खेती करने लगा और उसने जीव हत्या करना सदा के लिए छोड़ दिया।

कहानी से प्राप्त सीख: जो ईश्वर के बनाए पशु-पक्षियों पर दया दिखाता है वह हमेशा ही ईश्वर के प्रेम व कृपा का पात्र बनता है।

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लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद

मन की ताकत 

○ राघव की मां का विश्वास 

राघव छठी कक्षा में पढ़ता था और पढ़ाई-लिखाई में काफी होशियार था। इसके अलावा उसमें और भी कुछ खास गुण थे जैसे कि सदा सच बोलना, किसी काम में हार न मानना, बार-बार प्रयास करना, माता-पिता का कहा मानना आदि। राघव को ये सभी गुण उसकी मां ने दिए थे।

उसकी मां उसे बहुत छोटी-सी उम्र से ही सिखाती आई थी कि मनुष्य की असली ताकत उसके शरीर में नहीं बल्कि उसके मन में बसती  है। इसीलिए अगर मनुष्य मन की ताकत का इस्तेमाल करना सीख ले तो जीवन के हर क्षेत्र में उसकी जीत  निश्चित हो जाए।

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राघव की मां का विश्वास था कि शरीर की सारी ताकत मन में होती है और जब मन अपनी ताकत दिखाता है तो शरीर की ताकत अद्भुत कमाल कर दिखाती है।

○ राघव की दौड़ प्रतियोगिता को लेकर चिंता 

हालांकि कि राघव ने कभी भी हार मानना नहीं सीखाथा और वह हमेशा जीत की सोच रखता था। मगर  फिर भी इस साल स्कूल में होने वाली दौड़ प्रतियोगिता में  अपनी जीत को लेकर वह थोड़ा चिंतित था,क्योंकि अच्छे से तैयारी जो नहीं कर पाया था। इसी कारण  उसने अपनी मां से कई बार कहा भी था कि इस बार मैं दौड़ प्रतियोगिता में हार जाऊंगा, क्योंकि मैं कुछ खास तैयारी नहीं कर पाया हूं।

पर जब भी उसने अपनी मां से यह बात कही उन्होंने हर बार यही समझाया कि मन में जीत का विश्वास एवं  संकल्प बना कर रखो। अगर ऐसा करोगे तो अवश्य जीत जाओगे। यदि हार के डर से मन की ताकत को खो दिया तो फिर जीत के करीब होते हुए भी हार जाओगे। अपनी मां कि इसी बात को सुनकर राघव अपने मन में जीत का कुछ हौसला बनाए हुए था।

○ राघव की करिश्माई जीत 

धीरे-धीरे दौड़ प्रतियोगिता का दिन भी आ पहुंचा और नियत समय पर दौड़ शुरू भी हो गई। जैसे ही दौड़ शुरू हुई राघव अपने पूरे जोश से दौड़ा और हवा से बातें करते हुए सबसे आगे निकल गया। मगर फिर बीच रास्ते में न जाने उसका पैर किस चीज़ से टकराया कि वह जमीन पर औंधे मुंह जा गिरा।जमीन पर गिरते ही राघव को लगा कि शायद वह अब उठ नहीं पाएगा और अब उसका हारना निश्चित है। मैदान में उपस्थित लोगों को भी यही लगा कि अब राघव उठकर दौड़  नहीं  पाएगा।

मगर फिर जैसे ही राघव को अपनी मां की वह बात याद आई कि मनुष्य की असली ताकत शरीर में नहीं बल्कि उसके मन में बसती है और वह जाग जाए तो मनुष्य कभी हार ही नहीं सकता। साथ ही उसे लगा कि उसकी मां उससे चीख-चीखकर कह रही है कि – “राघव उठ। हिम्मत मत हार, शरीर की ताकत छोड़  और मन की ताकत का इस्तेमाल कर, बेटा। उठ,जल्दी उठ और जीत कर दिखा।” 

जैसे ही राघव को यह एहसास हुआ उसके शरीर में बिजली-सी दौड़ गयी।वह तुरंत उछल कर उठा और फिर सबको दौड़ता ही दिखाई दिया। इस बार वह आंधी की तरह दौड़ा और देखते-ही-देखते फिर से सबसे आगे निकल गया और दौड़ में प्रथम स्थान पर  आ गया। उसका यह करिश्मा देखकर सबने दांतों तले उंगली दबा ली।

○ राघव जिन्न के कारण भयभीत

राघव दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम तो आ गया था मगर आया कैसे था यह बात सबके लिए आश्चर्य की घटना थी। देखने वाले तो इसे कोई दैवीय करिश्मा समझ रहे थे। मगर राघव इसे किसी आत्मा या जिन्न का काम  समझ रहा था जो एकाएक उसके शरीर में घुस गया था और उसे सबसे आगे उड़ा ले गया था। यही सोचकर  वह असमंजस में पड़ा हुआ था और साथ ही मन में डरा हुआ था कि कहीं सचमुच कोई जिन्न तो उसके शरीर में न घुस गया हो और अब भी मौजूद न हो।

इसी कारण राघव ने न तो अपने दोस्तों में ही कोई दिलचस्पी दिखाई तथा न ही अपनी जीत की कोई  खास खुशी मनाई। भारी मन से ट्रॉफी ली और अपने घर की ओर रवाना हो गया। 

○ राघव अपनी मां से 

जैसे ही राघव ट्रॉफी लेकर अपने घर पहुंचा तो उसकी मां उसकी ट्रॉफी देखकर फूली नहीं समाई। मगर राघव ने जरा भी खुशी प्रकट न की। उसने ट्रॉफी को अपनी पढ़ने की मेज़ पर रखा और मां से लिपट कर उन्हें सारी घटना के बारे में बताया तथा फिर पूछा- 

मां, क्या सचमुच मेरे शरीर में कोई जिन्न  घुस गया है? क्योंकि  जिस तरह हारते-हारते मैं एकाएक जीता हूं उसे देखकर तो यही लगता है कि किसी जिन्न ने मेरे शरीर में प्रवेश करके मुझे जिताया है। अगर  ऐसा नहीं होता तो मेरे भीतर इतनी ताकत  कहां से आती?

○  मां राघव से

राघव की भोली बातें सुनकर पहले तो मां खूब हंसी और राघव के जी भरकर लाड़ लड़ाए। फिर थोड़ा गंभीर होकर उसे समझाया-

देखो बेटा , न तो तुम्हारे साथ कोई करिश्मा हुआ है और न ही किसी आत्मा या जिन्न ने तुम्हारे शरीर में  प्रवेश करके तुम्हें जीत हासिल कराई है। ये जो जीत  तुम्हें मिली है ये तुम्हें  तुम्हारी मन की ताकत ने दिलाई है। क्योंकि जब तुम्हें  शरीर की शक्ति ने मायूस कर दिया और तुमने मन की ताकत के बारे में सोचा और साथ ही मेरी दी सीख को बार-बार याद किया तो सचमुच ही तुम्हारे मन की ताकत जाग गई। 

उसी ताकत के बल पर तुमने यह सब कर दिखाया। शरीर और मन दोनों की ताकत ने मिलकर तुम्हें जीत के लिए तूफानी बल दिया। तुम्हारे उसी बल को सबने करिश्मे के तौर पर और तुमने जिन्न के रूप में  देखा। इसलिए भूल जाओ कि तुम्हारी जीत किसी और की देन है। यह तुमने खुद हासिल की है, अतः अपनी जीत की खुशी मनाओ इस पर संदेह मत करो।

मां की बात सुनकर राघव के मन का सारा भ्रम जाता रहा और साथ ही उसने मन की ताकत का रहस्य भी समझ लिया।

कहानी से प्राप्त सीख: शरीर के हार मानने पर भी अगर मन जीतने की ठान ले तो जीतने से कोई रोक ही नहीं सकता।

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लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद