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Biography of Ishwar Chandra Vidyasagar in Hindi | ईश्वर चंद्र विद्यासागर की जीवनी
ईश्वर चंद्र विद्यासागर बंगाल में आजादी के लिए शुरू हुए पुनर्जागरण के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। लोग इन्हें उन्नीसवीं सदी के बंगाल के प्रतिष्ठित दार्शनिक के रुप में जानते है। देश में हुए समाज सुधार आंदोलन में भी विद्यासागर ने बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पेशे से इनको लेखक, शिक्षाविद, प्रकाशक, अनुवादक, मुद्रक आदि कई रूपों में देखा गया है। जब विद्यासागर केवल एक विद्यार्थी थे तब इन्हें संस्कृत भाषा का अच्छा ज्ञान व दर्शन में अगाध पाण्डित्य होने की वजह से कॉलेज द्वारा ‘विद्यासागर‘ की उपाधि दी गई थी। बचपन में इनका उपनाम ईश्वर चंद्र बंद्योपाध्याय था।
विद्यासागर ने बंगाली शिक्षा प्रणाली में क्रांति लाकर अभूतपूर्व सुधार किया। बंगाली भाषा के पढ़ने और लिखने के तरीके को सरल व परिष्कृत करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनके इस योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। पहले बांग्ला लिपि कठिन हुआ करती थी लेकिन इन्होने बांग्ला लिपि को सरल बनाने में मदद की। इस भाषा के विस्तार के लिए उन्होंने कई विद्यालयों की स्थापना कराई और बच्चों की शिक्षा के लिए रात में भी पाठशालाओं की व्यवस्था कराने का प्रयास किया। संस्कृत भाषा के लिए भी इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। विद्वानों द्वारा की गए एक सर्वेक्षण से यह पता चलता है कि वह आज तक के सबसे सर्वश्रेष्ठ बंगाली माने जाते हैं।
इसके अलावा विद्यासागर औरतों की शिक्षा के समर्थन में थे इसलिए उन्होंने बालिकाओं के लिए कई विद्यालयों की स्थापना करवाई। इस पोस्ट में हम ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म, शिक्षा, परिवार, करियर, शिक्षा में सुधार, समाज सुधारक के रुप में, मृत्यु आदि से संबंधित जानकारी देंगे।
नाम | ईश्वर चंद्र विद्यासागर |
पिता का नाम | ठाकुरदास बंद्योपाध्याय |
माता का नाम | भगवती देवी |
पत्नी का नाम | दीनमणि देवी |
शिक्षा | संस्कृत कॉलेज से कई विषयों में ज्ञान प्राप्त किया। |
पेशा | लेखक, शिक्षाविद, प्रकाशक, अनुवादक, समाज सुधारक आदि |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | बंगाली, संस्कृत, अंग्रेज़ी। |
मृत्यु | 29 जुलाई 1891 |
ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म, शिक्षा और परिवार
प्रतिष्ठित समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म 18 सितंबर 1820 में बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गाँव में हुआ था। वह एक बहुत गरीब ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे। बचपन से ही विद्यासागर एक समझदार बालक थे। विद्यासागर के पिता का नाम ठाकुरदास बंद्योपाध्याय और तथा माता का नाम भगवती देवी था। जब वह केवल 14 वर्ष के थे तब इनका विवाह दीनमणि देवी नाम की लड़की से कर दिया गया। विवाह के पश्चात् इनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम नारायण चंद्र रखा गया।
परिवार में गरीबी होने के कारण इनके पिता के पास विद्यासागर को देने के लिए केवल शिक्षा की सीख ही थी। जब विद्यासागर केवल 9 साल के थे तब इनके पिता और वह शुरूआत की शिक्षा प्राप्त करने के लिए कोलकत्ता तक पैदल चल संस्कृत कॉलेज में गए। आर्थिक परेशानियों के कारण शारीरिक अस्वस्थता होने के बावजूद भी विद्यासागर हमेशा कक्षा में अव्वल आए। विद्यासागर स्कूली शिक्षा के साथ घर आकर घर के कामों और खाना पकाने में मदद करते थे। तेल बचाने का प्रयास करके पढ़ाई के लिए वह स्ट्रीट लैंप में पढ़ते थे। संस्कृत कॉलेज में सन् 1829 से 1841 के बीच रहकर संस्कृत, रैतिक, साहित्य, वेदांता आदि का ज्ञान प्राप्त किया। अपने परिवार की आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए जोरासो के एक विद्यालय में शिक्षक के पद पर कार्य किया। सन् 1839 में उन्होंने संस्कृत भाषा की एक प्रतियोगिता में भाग लिया तत्पश्चात इन्हें विद्यासागर की उपाधि दी गई।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर के करियर से संबंधित जानकारी
जब वह केवल 21 वर्ष के थे तब वह फोर्ट विलियम कोर्ट में संस्कृत विभाग में एक हेड पंडित के रुप में प्रवेश लिया। विद्यासागर बहुत ही जल्दी ज्ञान प्राप्त करने वाले व्यक्ति थे और कुछ ही वर्षों बाद उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी भाषा में भी ज्ञान प्राप्त कर लिया। विद्यासागर ने सन् 1946 में फोर्ट विलियम कोर्ट से इस्तीफा दे दिया। फोर्ट विलियम कोर्ट छोड़ने के पश्चात उन्होंने संस्कृत कॉलेज के सहायक सचिव के पद पर कार्य करना शुरू किया लेकिन एक वर्ष बाद आपसी मतभेद होने के कारण यहाँ से इन्होंने इस्तीफा दे दिया। विद्यासागर ने यहाँ से इस्तीफ़ा देने के पश्चात् वापिस से फोर्ट विलियम कोर्ट में एक प्रधान लिपिक के रुप में काम किया।
संस्कृत कॉलेज द्वारा विद्यासागर को वापिस लाने के लिए बहुत प्रयास किए गए और बहुत प्रयास करने के बाद विद्यासागर आने के लिए राज़ी हुए लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि उन्हें सिस्टम में वापिस से सुधार करने की अनुमति दी जाए। विद्यासागर संस्कृत कॉलेज में एक प्रोफ़ेसर के रूप में आए। विद्यासागर शिक्षा सुधार के समर्थक थे इसलिए उन्होंने शिक्षा की देखरेख के लिए सुदूर गाँवों की यात्रा की।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर द्वारा किए गए शैक्षिक सुधार
विद्यासागर ने संस्कृत कॉलेज में ऐसे कई सुधार लाए जो सभी छात्रों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुए। संस्कृत कॉलेज में चली आ रही मध्यकालीन विद्वतापूर्ण व्यवस्था में कई बदलाव लाए और शिक्षा में अनेक सुधार किए। इस कॉलेज में आने के पश्चात विद्यासागर ने अंग्रेजी और बंगाली भाषा को भी विषय का दर्जा दिलवाया। विद्यासागर के पास केवल वैदिक शास्त्रों का ही नहीं बल्कि यूरोपीय इतिहास, विज्ञान और दर्शन आदि का ज्ञान था उन्होंने इस ज्ञान को अपने तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि छात्रों को भी इस ज्ञान को आगे बढ़ाने की सीख दी। उन्होंने सदियों से चलती आ रही भेदभाव की नीति पर प्रतिबंध लगाया और गैर ब्राह्मण छात्रों को भी इस कॉलेज में एडमिशन लेने की अनुमति दी। इन्होने दो पुस्तकों की रचना की जिनका नाम संस्कृत ब्याकरणेर उपक्रमणिकाऔर ब्याकरण कौमुदी था। इनके द्वारा रचित ब्याकरण कौमुदी में इन्होंने सरल बंगाली भाषा में संस्कृत की जटिल धारणाओं का विवेचन किया है। विद्यासागर ने ही प्रवेश शुल्क व ट्यूशन शुल्क जैसी अवधारणाओं को प्रचलन में लाया।
महिला शिक्षा सशक्तिकरण
ईश्वर चंद्र विद्यासागर महिलाओं की शिक्षा के सशक्त समर्थक थे। महिलाओं को समानता दिलाने के लिए उन्होंने शिक्षा को मुख्य आधार बनाया। महिलाओं पर सदियों से हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ़ विद्यासागर ने आवाज़ उठाई। इन्होंने लड़कियों को शिक्षा का हक दिलाने का पूरा प्रयास किया। इन्होंने पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार की जिससे लड़कियों को शिक्षित किया गया, इतना ही नहीं बल्कि उन्हें कई व्यवसायों के लिए आत्मनिर्भर बनाया गया। इन्होंने घर-घर जाकर घरों के मुखियाओं से निवेदन किया कि वह अपनी घर की बेटियों को स्कूल भेजे। विद्यासागर ने बंगाल में महिलाओं के लिए कुल 35 स्कूलों की स्थापना की जिनमें से वह 1300 महिलाओं का दाखिला कराने में सफल रहे।
सामाजिक सुधारक के रुप में
विद्यासागर अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले व्यक्ति थे। बचपन से ही उनकी माँ ने उन्हें महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के बारे में बताया। उन्होंने विद्यासागर को महिलाओं का सम्मान करना सिखाया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार विधवाओं को अपने पति की मृत्यु के पश्चात् सती प्रथा का पालन करना होता है। किस प्रकार वह दुखों को झेलते हुए जीवन यापन करती है। सदियों से महिलाओं के हक को मारा जा रहा है और उन्हें घरों में सम्मान का दर्ज़ा नहीं दिया है। विद्यासागर ने अपनी माँ से महिलाओं की स्थिति को जानने के बाद महिलाओं के हक के लिए लड़ने की ठानी। महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए उन्होंने शिक्षा को मुख्य आधार बनाया।विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और ब्राह्मण अधिकारियों के समक्ष यह साबित किया कि वैदिक शास्त्रों में विधवा पुनर्विवाह को मंजूरी है।
कुछ अन्य सुधारको के साथ मिलकर इन्होंने महिलाओं के लिए इस लड़ाई को जीता। विधवाओ के लिए लोकमत तैयार किया गया। विद्यासागर के ज़ोर देने के पश्चात् सन् 1856 में विधवा पुनर्विवाह कानून पारित किया गया। इसके कुछ समय बाद महिलाओं की स्थिति में सुधार आया और सती प्रथा जैसी प्रथाओं पर रोक लगी। विद्यासागर ने खुद इस प्रथा को तोड़ने के लिए अपने बेटे का विवाह एक विधवा लड़की से किया। विद्यासागर ने इस बात पर भी जोर दिया कि छोटे बच्चों का विवाह न किया जाए बल्कि उन्हें शिक्षा दी जाए और बाल विवाह पर रोक लगाई जाए।
ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मृत्यु
महान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मृत्यु 29 जुलाई 1891 में हो गई।
तो ऊपर दिए गए लेख में आपने पढ़ा ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जीवन परिचय (Biography of Ishwar Chandra Vidyasagar In Hindi), उम्मीद है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा।
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Author:
भावना, मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में ग्रैजुएशन कर रही हूँ, मुझे लिखना पसंद है।