चंद्रायान-2

चंद्रायान-2 पर निबंध | Essay on Chandrayaan 2

चंद्रयान-2 एक भारतीय चंद्र मिशन है जो कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित किया गया दूसरा चन्द्र मिशन है, पहला मिशन चंद्रयान-1 (22 अक्टूबर, 2008) था।

चंद्रयान-1 की सफलता के बाद 12 नवंबर 2007 को ISRO और रूस की स्पेस एजेंसी Roscosmos (रूसी संघीय अंतरिक्ष अभिकरण) के द्वारा साथ में मिलकर चंद्रयान 2 के निर्माण का अनुबंध तय हुआ। ISRO ने ऑर्बिटर और रोवर बनाने की जिम्मेदारी ली और Roscosmos ने लैंडर बनाने की ज़िम्मेदारी ली।

पर बाद में Roscosmos समय पर लैंडर बनाने में असफल हो गया और चंद्रयान 2 मिशन से पीछे हट गया। जिस कारण बाद में भारत(ISRO) ने लैंडर बनाने का जिम्मा भी खुद लिया।

18 सितंबर 2008 को भारत सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी दे दी, और दोनो स्पेस एजेंसीयो द्वारा मिलकर चंद्रयान 2 का डिजाइन अगस्त 2009 में तैयार हो गया।

इस मिशन को 22 जुलाई 2019 को आंध्र प्रदेश के श्री हरिकोटा मे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से, जियोसिंक्रोनस सैटलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III (GSLV MK III) द्वारा लॉन्च किया गया था। चंद्रयान का वजन 3850 kg है।

इसमें ऑर्बिटर, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान चंद्र रोवर शामिल है जिन्हें भारत में ही निर्मित किया गया है। लैंडर को विक्रम नाम विक्रम साराभाई के नाम पर दिया गया है, जिन्हें इंडियन स्पेस प्रोग्राम का जनक माना जाता है।

चंद्रयान 2, चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से में रह कर और उस जगह की छानबीन करने के उद्देश्य से लांच किया गया। उसका उद्देश्य चंद्रमा के बारे में हमारी जानकारी को बढ़ाना है, जिससे पूरे विश्व को लाभ होगा। साथ ही चंद्रमा पर पानी की खोज करना व चंद्रमा की सत्ता संरचना में भिन्नता का अध्ययन करने के लिए यह मिशन तैयार किया गया है। इसके साथ ही इसरो के अनुसार दक्षिण चंद्र ध्रुव पर एक सतह है जो कि उत्तरी ध्रुव के तुलना में अधिक छाया दार है, जिस कारण इन इलाकों में पानी की उपस्थिति की संभावना है।

पहिएदार रोवर, चंद्रमा की सतह पर चलकर उसका विश्लेषण करने के उद्देश्य से तैयार किया गया था जो चन्द्रमा के बारे में जानकारी और नमूने पृथ्वी पर भेजता।

20 अगस्त 2019 को चंद्रयान चंद्रमा की कक्षा में पहुंच चुका था। 6 सितंबर 2019 को विक्रम और रोवर को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में उतारने का लक्ष्य तय किया गया था और चंद्र का एक दिन जो कि पृथ्वी के 2 सप्ताह के बराबर होता है, वैज्ञानिक प्रयोग करने के लिए तय किया गया था।

दुर्भाग्यवश लैंडर 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद अपने पथ से भटक गया जिसके कारण लैंडर से वैज्ञानिकों का संचार टूट गया।

इसरो ने इस दुर्घटना के बारे में जानकारी हासिल की जा रही थी। 8 सितंबर 2019 तक विक्रम के साथ वापस संचार जोड़ने के लिए दूसरों के द्वारा प्रयास किए गए थे।

बाद में इसरो की एक रिपोर्ट के अनुसार यह विश्लेषण हुआ की यह दुर्घटना एक सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी होने के कारण हुई थी।

इसरो के प्रमुख डॉ के. सिवन ने यह जानकारी दी कि विक्रम लैंडर से संचार दोबारा स्थापित करने का प्रयास किया गया लेकिन सफलता नहीं मिली। वैज्ञानिको के अनुसार इसकी सॉफ्ट लैंडिंग के बजाय हार्ड लैंडिंग हुई जिस कारण इससे दोबारा संपर्क कर पाना बहुत ही मुश्किल रहा।

हमारे वैज्ञानिको ने विक्रम लैंडर से दोबारा संपर्क करने की कोशिश की मगर तकनीकि दिक्कतों से संपर्क नहीं हो पाया लेकिन इसके बावजूद हमारा चंद्रयान -2 मिशन पूरी तरह फेल नहीं हुआ ।

हमारा ऑर्बिटर अभी भी चन्द्रमा की कक्षा के 100 KM ऊंचाई पर चक्कर लगा रहा है जो अभी बिल्कुल सुरक्षित है और अपेक्षित जानकारियाँ इसरो को भेज रहा है।

ऑर्बिटर क्या है?

ऑर्बिटर का निर्माण चंद्रमा की सतह का निरीक्षण करने के लिए हुआ है। इसके साथ यह लैंडर और विक्रम के बीच संकेत देने का भी काम करेगा। यह 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्रमा की परिक्रमा करेगा। इसमें बहुत ही अच्छे क्वालिटी का कैमरे का प्रयोग किया है जो कि अब तक चांद पर भेजे गए किसी भी यान में लगे कैमरे में सबसे अच्छा है, जोकि चंद्रमा की हाई रिज़ॉल्यूशन तस्वीर देगा।

लैंडर क्या है?

जैसा बताया जा चुका है कि लैंडर का नाम भारतीय अंतरिक्ष के जनक डॉ विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इसको चंद्रमा के 1 दिन के कार्य के लिए तैयार किया गया था जो कि पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होता है। विक्रम लैंडर का कुल वजन 1,471 किलोग्राम है। विक्रम लैंडर अपने प्रयोगों के द्वारा प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह तक पहुंचाएगा।

लैंडर के प्लॉट में चार महत्वपूर्ण साधनों का प्रयोग हुआ है। जिसमें पहला है- लूनर सेसमिक् एक्टिविटी सीस्मोमीटर जो की लैंडिंग एरिया के आसपास मूनक्विक्स के बारे में जानकारी प्राप्त करता।

दूसरा है चंद्रा सरफेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट थर्मल प्रोब कि चंद्रमा स्थल की थर्मल गुणों के बारे मे जानकारी हासिल करना है।

लूनर एक्लिप्स के प्लाज्मा के घनत्व और भिन्नता की जानकारी के लिए इसमें रांभा एलपी लंगमुईर प्रोब लगाया गया है।

इसमें नासा के द्वारा लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर भी लगाया गया है।

रोवर क्या है?

रोवर का काम है लेंडर के साथ संवाद करना यह पहियेदार है और चंद्रमा की मिट्टी पर चलेगा और उसके नमूने एकत्रित करके उनका रासायनिक विश्लेषण करके उसे ऑर्बिटर के पास भेज देगा, और ऑर्बिटर उसे पृथ्वी पर इसरो के पास भेज देगा। रोवर सोलर एनर्जी के द्वारा काम करेगा।

चंद्रयान को बनाने में लगभग 978 करोड़ रुपए लगे थे। मिशन के असफल होने पर इसरो के अध्यक्ष के सिवान काफी भावुक हो गए थे।

चंद्रमा से महज 2 किलोमीटर पर विक्रम लैंडर का संपर्क टूट जाने पर यह मिशन भले ही पूरी तरह सफल न हुआ हो लेकिन न सिर्फ समस्त भारतवासी बल्कि दुनिया के वैज्ञानिकों को भी भारत की इस उपलब्धि पर गर्व है। हम अपने वैज्ञानिकों की मेहनत और उनके जज्बे की सराहना करते हैं।

हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी इस ऐतिहासिक क्षण को देखने के लिए इसरो के बेंगलुरु स्थित मुख्यालय में मौजूद थे लेकिन दुर्भाग्यवश यह मिशन पूरी तरह सफल न हो सका। लेकिन हमारा ऑर्बिटर सफलतापूर्वक काम कर रहा है जिसका परिणाम भविष्य में देखने को मिलेगा।

Author:

आयशा जाफ़री, प्रयागराज