हे जगत जननी
हे जगत जननी,अम्बे,जगदम्बे माँ
मुझ पर कृपा करो,
मैं अबोध,अज्ञानी, पापी
मेरी भी नैय्या पार करो।
पूजा, पाठ,भोग,आरती न जानूं मैं
बस कौतुहलवश शीश झुका लेता हू्ँ,
नीति अनीति, छल प्रपंच से अंजान
तेरा दर्शन भर कर लेता हू्ँ।
श्रद्धा के दो पुष्प कभी कभार
तेरे दर पर रख देता हू्ँ,
मैं किसी के कष्ट का कारण न बनूँ
ये कोशिश करता हू्ँ,
दीन दुखियों का सहायक बन सकूँ
कोशिश हजार करता हू्ँ।
हे माँ!मेरी पुकार सुन
लूटपाट, भ्रष्टाचार, अनाचार, अत्याचार
बहुत बढ़ रहा है,
अब इस पर प्रहार करो,
बहन बेटियों की इज्ज़त से
जो खिलवाड़ कर रहे,
उन पर अपने त्रिशूल का प्रहार करो,
मुझे कुछ नहीं चाहिए माँ
बस विनती मेरी इतनी सी है
इसको स्वीकार करो माँ,
जन जन का उद्धार करो
सबका बेड़ा पार करो माँ।
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About Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002