अंत समय की ओर
1- हमका उढ़ाये चदरिया राम नामी चदरिया,
प्राण तन से जब निकलन लागे उलट गईं दुई नैन पुतरिया,
अंदर से जब बाहर लाये छूट गईं सब महल अटरिया,
हमका उढ़ावें चदरिया राम नामी चदरिया।
2- छूट गये प्राण नहीं अब कुछ होना, मच गया घर में पीटना ओ रोना,
परिवारीजन सब टूट गये हैं, चाहें जुदा न कोई हमसे होना,
धरती पर सब लिटा रहे हैं पार्थिव देह मोरी बिछा बिछौना,
देखें अँसुअन भरि सबकी नजरिया, हमका उढ़ावें चदरिया राम नामी चदरिया।
3 – संगी पास साथ खड़े हैं बँधवावत हैं हमरी ठठरिया,
जा रही केवल मोरे संगे जीवन भर की कर्मन की गठरिया,
टूट गई सांसन की डोरी छूट गए सब नगर डगरिया,
हुए इकट्ठा सब प्रिय अपने सुन देहांत की हमरी खबरिया,
हमका उढ़ावें चदरिया राम नामी चदरिया।
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सोनल उमाकांत बादल , कुछ इस तरह अभिसंचित करो अपने व्यक्तित्व की अदा, सुनकर तुम्हारी कविताएं कोई भी हो जाये तुमपर फ़िदा 🙏🏻💐😊