कोरोना दादा
हे मेरे कोरोना दादा
बस बहुत हो चुका
अब आप चले ही जाओ।
बहुत सताया आपने
स्कूल जा नहीं पाते
यार दोस्तों से मिल नहीं पाते,
स्कूल में जो थोड़ी मस्ती करते
वो भी तुम सह नहीं पाते।
मम्मी पापा के साथ
कभी बाजार जाकर कुछ
मनपसंद खा पाते थे,
उस पर भी आपने
कर्फ्यू लगवा दिया।
अब तुम्हीं बताओ
छः छः घंटे आनलाइन पढ़ें तो,
सिर में दर्द
फिर टी.बी.देखो तो
मम्मी कभी डाँट कर
कभी धमककर
आँखों की दुहाई देकर
डाँटती समझाती
घर में खेलें भी तो क्या कितना?
बाहर तो आपने
अपना हव्वा फैला रखा है।
अब आप ही हमें समझाओ,
हम जीयें या मर जायें
घर में कैदी बनकर कैसे जीयें ?
अब आप चले ही जाओ
बेशर्म न बन जाओ,
हमारा खो रहा बचपन
हमें फिर से लौटाओ
हमारी विनती मान जाओ।
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लौटकर नहीं आओगी
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About Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002