मर्ज
कुछ तो लिहाज कर , गरीबी का ऐ मर्ज …. 
कच्चे घरों में , हकीमों का आना नहीं होता….१ 
ऊचें महलों में जाओ ,भूॅख मिट जायेगी तुम्हारी… 
गरीब की थाली में तो , उसके लिये ही दाना नही होता…२ 
सफेद कोट पहनकर , तुम अपना काला सच छिपाते हो… 
बिना पैसों, गरीब को तुम्हें बचाना नहीं होता…३ 
यहाॅ कागज के टुकड़ों से , जिन्दगी तौली जाती है… 
झूॅठ कहते हो कि मौत का , ठिकाना नहीं होता…४ 
मुफलिसी मजबूर करती है , खुदखुशी के लिए साहब.. 
कोई गरीब मौत का , दीवाना नहीं होता….५ 
तुम अमीर हो , मुआवजे में कागज के टुकड़े दे जाओगे… 
पर उससे घर के सूरज का , वापस आना नहीं होता…६ 
तेरी एक दस्तक से , उस घर में ताउम्र मायूसी रहती है ऐ मर्ज… 
तेरे जाने के बाद भी , कभी खुशी का तराना नही होता….७ 
पत्थरों को पूॅजते -पूॅजते , लोग भी पत्थर हो गये है… 
कोई बताओ कि जन्नत में , इंसानियत के सिवा कुछ दिखाना नहीं होता….८
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About Author:

मेरा नाम अनुराग यादव है। मैं उन्नाव, उत्तर प्रदेश से हूॅं। हिंदी भाषा में अत्यंन्त रुचि है। हिंदी के व्याकरण एवं कविता की बारीकियों से अनभिज्ञ हूॅं। फिर भी कविता लिखने का प्रयास करता हूं। त्रुटियों के लिये क्षमाप्रार्थी हूॅं एवं आपके आशीर्वाद और मार्गदर्शन का आकांक्षी हूॅं। 🙏🏻😊

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