प्रीत की रीत
प्रीत की रीत
कहाँ निभाते हो?
प्रीत के ना पर पीठ में
छुरा घोंपनें में भी
न शर्माते हो।
प्रीत से डर बहुत लगने लगा है,
प्रीत के नाम पर जान ले जाते हो।
प्रीत के नाम पर छल करते हो
और मुस्कराते हो।
प्रीत की रीत का
अब बंद करो खेल साहब
प्रीत के बिना ही आप
अच्छे लग रहे साहब।
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About Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002