HINDI KAVITA: समाज में बलात्कार जैसे अपराध की बढ़ती घटनाओं का मार्मिक चित्रण

समाज में बलात्कार जैसे अपराध की बढ़ती घटनाओं का मार्मिक चित्रण

अरे क्यूँ इंसा हो के तुम इंसानियत शर्मसार करते हो,
किसी की बहन बेटी का आँचल क्यूँ तार तार करते हो,
वो देवी दुर्गा काली लक्छमी और माँ अन्नपूर्णा है,
तुम उस माँ बेटियों को अपनी गलियों में खींचते हो।

बनकर दानव नारी की देह लहू रंग लाल सींचते हो,
मिटाने को उसकी हस्ती क्यूँ अपने बाहु बल में भींचते हो,
छणिक भर के सुख की खातिर उसे मारते हो ख़ुद भी मरते हो,
बनकर अपराधी सा तुम क्यूँ यूँ बलत्कार करते हो।

बलात्कार हत्या जैसे जघन्य पाप करते हो,
क्यूँ अपने कर्मो का घड़ा पाप कुकर्मों से भरते हो,
क्या बन गए हो कोई राक्छस जो ईश्वर से भी न डरते हो,
तू कर सम्मान ओ बंदे न कर अपमान नारी का ।

देश की हर इक माँ, बहन, बेटी, पत्नी, ममता की मूर्त बलिहारी का,
कर तू पूजा इनकी समझ देवी बन जा तू पुजारी सा,
नहीं प्रायश्चित है कोई ऐसे पाप के भागीदारी का,
नहीं इलाज है कोई इस घृणित मानसिक बीमारी का।

किसी को मारदिया तूने मर गईं कुछ समाज के डर से,
कैसे नजरें मिलाओगे समाज की घृणा भरी नज़र से,
मिलेगा दण्ड तुझे भी कर्मों का उस ईश्वर के घर से,
भगाएंगे दुनिया वाले सभी तुझको अपने दर से।

कभी न कभी तो तेरे कर्मों का हिसाब होएगा,
न्याय के मंदिर में तेरे मुकदमे पर इंसाफ होएगा,
भरी दुनिया के बीचो बीच तू अपना स्वाभिमान खोएगा,
रुलाएगा जो किसी को खून के आंसू तू भी रोएगा।

तेरे अपराधी होने पर कोई न साथ होएगा,
इसीलिए समझाती हूँ के ले तू जन्म अवतारी सा,
झुका न सर तू अपने जन्म देने वाले बाप महतारी का,
न कर तू बलात्कार किसी माँ बहन बेटी बिचारि का।

तू ले शपथ करेगा सम्मान देश की हर इक नारी का,
दिखादे दुनिया को ये देश है मेरा भगवाधारी का,
हमारे देश की हालत है अब देखी नहीं जाती,
बड़ा अफ़सोस है दिल को के मैं कुछ कर नहीं पाती।

बड़े बेचैन हैं मेरे दिन बड़ी बेगैरत हैं रातें,
बंद करती हूँ जो आँखों को नींद भी अब नहीं आती।।


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सोनल उमाकांत बादल , कुछ इस तरह अभिसंचित करो अपने व्यक्तित्व की अदा, सुनकर तुम्हारी कविताएं कोई भी हो जाये तुमपर फ़िदा 🙏🏻💐😊