लेख: बेटी बचाओ

बेटी बचाओ

मान्यताओं और परम्पराओं के हमारे देश में हमें बेटी बचाओ जैसे अभियान चलाने पड़ रहे हैं। यह कैसी विडंबना है कि जिस देश में नारियों को पूजा जाता है वहीं आज भी शिक्षा के बढ़ते स्तर के बावजूद भी कन्या भ्रूण हत्या कम नहीं हो रही रही नहीं हो रही रही नहीं हो रही नहीं हो रही है।दु:ख इस बात का है कि ऐसी घटनाएं सभ्य समाज में भी हो रही हैं। पढ़े-लिखे लोग जिन से यह अपेक्षा की जाती है कि वह समाज से बुराइयों को दूर करने में मददगार होंगे, वही इस तरह की नीच हरकतें करने से बाज नहीं आ रहे हैं ।अफसोस इस बात का है कि आज जब महिलाएं हर क्षेत्र में तेजी से पांव जमा की जा रही हैं जा रही हैं की जा रही हैं जा रही हैं तब इस तरह की घिनौनी हरकतें किसी नासूर से कम नहीं महसूस होती।

आवश्यकता इस बात की है कि हम, समाज और समाज का हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को समझे और यह महसूस करें कि यह बेटियां नहीं होंगी तो बहुएं कहां से आएंगी ।एक बेटी के बेटी के अलावा बहन भी है माँं भी है और बहू भी।

क्या हमने कभी इस पर विचार भी किया की यदि हम बेटियों को इसी तरह गर्भ में ही मारकर सिर्फ़ बेटों की चाह रखेंगे तो बेटों के लिए बहुएं कहां से लाएंगे?

यदि इस पर प्रभावी अंकुश नहीं होगा तो हमारा समाज बिना बेटियों के नीरस हो जाएगा, प्यार दुलार ममता का अस्तित्व खत्म हो जाएगा,संवेदनशीलता खत्म हो जाएगी और ऐसी सामाजिक अराजकता बढ़ेगी जिसे रोक पाना जनमानस के लिए किसी भी स्थिति में मुश्किल ही नहीं असंभव होगा।

आइए हम सब मिलकर समाज में फैली इस कुरीति को दूर करें और स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए बेटियों की सुरक्षा का दायित्व अपने ऊपर लें और बेटियों को बचाएं,न कि उन्हें गर्भ में ही मार कर अपने को कलंकित करें।
समाज और राष्ट्र से जुड़ा हर व्यक्ति जब तक बेटी बचाने का संकल्प नहीं करेगा,तब तक बेटी बचाने का संकल्प भी अधूरा रहेगा और हम सिर्फ़ बेटों की चाह में इस समाज का ही अस्तित्व खत्म कर देंगे।

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सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
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