समाज में नारी शक्ति का अस्तित्व
भारत की नारी के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन
पहला रूप बेटी का
भारत की नारी जब जन्म पाती है तो जग में बेमिसाल हो जाती है, बेटी बहन पत्नी माँ कहलाती है तो मोतिंयों की माल हो जाती है, नारी में पहला रूप बेटी का आती धरकर स्वरुप बेटी का, बेटी देवी का चित्त होती है पूज्यनीय और पवित्र होती है, माँ बाप जिसके पैर धोते है विदा करते है बिलख रोते है, काम जग में महान करते है वो जो कन्या का दान करते है, कभी वो रूप दुर्गा लक्ष्मी का कभी वो काली बनकर आयी है,
पुलिस सेना डीएम और अफसर भी देश की बेटी ये कहलायी है, हो अपना देश या प्रदेश कोई हर जगह परचम ये फेहरायी है, बड़ी होकर के ये समाजों के संस्कारों को भी अपनायी है, कर बराबरी भी देश के बेटों से कमाकर घर भी ये चलाई है, काली जब खिलके सुमन बनती है किसी दूल्हे की दुल्हन बनती है, पिया के रंग वो रंग जाती है हजारो सपने वो बुनती जाती है, मायके से बेटी ससुराल जाती है तो रो रो बेहाल हो जाती है, भारत की नारी जब जन्म पाती है तो जग में बेमिसाल हो जाती है
दूजा रूप बहना का
नारी में दूजा रूप बहना का भाई के हाथों का एक गहना सा, भाई के शीश पे आँचल धरती प्रेम की रोली से टीका करती, भाई धनवान हो चाहे जितना वो चाहती तो चाहती इतना, बांधने राखी जब भी आउंगी ले के तेरी बलाएं जाउंगी, नहीं चाहिये सम्पत्ति का हिस्सा बना रहे भाई बहन का रिश्ता, तेरा वर्चस्व जग में आला हो बहन की लाज का रखवाला हो,
बाँधेगी राखी कर में लुभावनी भाई मेरा मनभावनी आएगा लेके सावनी, कलाई में राखी जब बंध जाती है तो आन का सवाल हो जाती है, भारत की नारी जब जन्म पाती है तो जग में बेमिसाल हो जाती है
तीजा रूप पत्नी का
नारी में रूप पत्नी का तीजा करती जीवन भर पति की पूजा, उसके परिवार को संभालती है खुद भी तरती पति को तारती है, पिया के रंग वो रंग जाती है संग संग सुख दुख जीती है, दहेज़ के खातिर उसे जलाते है आये दिन घर से उसे भगाते है, जुल्म कर कितने ही सताते है जा तू है परायी उसे जताते है, न जाने कितने जुल्म सहती है मगर माँ बाप से कुछ न कहती है,
डोली चढ़ बनके सुहागन आती है पिया घर अर्थी से फिर जाती है, हो आज है सुहागिन कल थी कुआरियाँ इस देश की नारियां गेहती है जिम्मेदारियां, अपने पिया के रंग रंग जाती है तो मोतिंयों की माल हो जाती है, भारत की नारी जब जन्म पाती है तो जग में बेमिसाल हो जाती है
चौथा रूप माता का
नारी में चौथा रूप माता का जग में जो सबसे सुन्दर नाता सा, काली जब खिलके सुमन बनती है बेटी बेटों की वो माँ बनती है, असहनीय पीड़ा से तड़प कर के लाल एक माता बनके जनती है, कहीं पे छाँव कहीं धूप है ये नारी का सबसे कठिन रूप है ये, गर्भ में नौ महीने रखती है न जाने कितने दुःख ये सहती है, खुद तो सोती है जमीं के ऊपर सुलाती लाल को अपने ऊपर, ममता की छाँव में संभालती है कितने कारन कर लाल पालती है, बड़े होकर फिर तुम इतराते हो अनमोल रिश्ता ये भूल जाते हो, कष्ट सहकर पाला जिसने तुमको,
तुम उस एक माँ को पाल न पाते हो, करते हो आज अपमान तुम जिनका ऋण चुका न पाओगे तुम कभी उनका, करो सम्मान तुम हर नारी का ममता की मूरत सी बलिहारी का, गर जो सेवा इनकी कर पाओगे साक्षात ईश्वर तुम पा जाओगे, करती है प्यार तुमको लुटाती दुलार भी ममता सारे संसार की बोलो जय उस माँ की, गोदी में अपने जब लाल पाती है तो ममता निहाल हो जाती है, भारत की नारी जब जन्म पाती है तो जग में बेमिसाल हो जाती है, बेटी बहन पत्नी माँ कहलाती है तो मोतिंयों की माल हो जाती.
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सोनल उमाकांत बादल , कुछ इस तरह अभिसंचित करो अपने व्यक्तित्व की अदा, सुनकर तुम्हारी कविताएं कोई भी हो जाये तुमपर फ़िदा 🙏🏻💐😊