Motivational Story | नन्ही चिड़िया
जंगल में सबकी प्यारी नन्ही चिड़िया
पहाड़ की तलहटी में एक छोटा-सा जंगल था। उस जंगल के बीचोंबीच एक विशाल जलाशय था। उस जलाशय के आसपास घने पेड़ों पर तरह-तरह के पक्षी घोंसले बना कर रहते थे। उन्हीं घोंसलों में एक चिड़िया परिवार भी था। उसमें एक नन्ही-सी सुनहरी चिड़िया थी। नन्ही चिड़िया सबकी प्यारी चिड़िया थी, क्योंकि भगवान ने इस चिड़िया को मधुर कंठ और तेज बुद्धि दी थी।
उसके ये गुण सबका मन मोह लेते थे। जब वह मधुर स्वर में गीत गाती थी या फिर बात करती थी तो सुनने वाला क्रोध या चिंता में होते हुए भी शांत और शीतल होकर मुस्कराने लगता था। उसकी बुद्धि की भी सब प्रशंसा करते थे,क्योंकि वह जो भी भविष्य वाणी करती थी वह सच हो जाती थी।सबको नेक सलाह देती रहती थी और उसकी सलाह सबके लिए लाभदायक सिद्ध होती थी। इसीलिए सारे पक्षी उसको बहुत प्यार करते थे। या यूं कहिये कि वह सब पक्षियों की प्यारी चिड़िया थी।
जंगल में तेज बारिश के साथ आंधी-तूफ़ान
एक बार गर्मियों में तेज बारिश के साथ भयंकर आंधी-तूफान आया और बेचारी नन्ही चिड़िया तूफ़ान और बारिश में फंस गयी। वह आंधी-तूफ़ान में रास्ता भटक गयी और जंगल के बाहर एक गांव की तरफ आ पहुंची। जब बारिश और आंधी-तूफ़ान थमा तो उसने खुद को एक घर के आंगन में पाया। वह पंख फड़फड़ाते हुए आंगन में रखे भूसे के ढेर पर बैठ गयी।
किसान-पुत्र अपनी पत्नी से
नन्ही चिड़िया जिस घर के आंगन में आकर बैठी थी वह घर किसी किसान का था। जब वह वहां आकर बैठी तो किसान पुत्र अपनी पत्नी से क्रोधवश बहुत ही कड़वे वचन बोल रहा था और वह उसके कटु वचन खामोशी से सुने जा रही थी। किसान ने अपने बेटे को कड़वे बोल बोलने से मना किया तो वह उसको भी गुस्से में बुरा-भला बकने लगा। बेचारा बूढ़ा बाप अपमानित होकर चुप ही हो गया। नन्ही चिड़िया को किसान पुत्र पर बहुत गुस्सा आया।
नन्ही चिड़िया किसान पुत्र से
नन्ही चिड़िया किसान पुत्र को सीख देने की सोच कर अपने मीठे स्वर में गीत गाने लगी-
“जब भी बोल मीठा बोल…कड़वा बोल कभी मत बोलकड़वा बोलेगा तो पछताएगा …हां… हां…पछताएगा।क्रोध और कटुवचन सबके दुख का कारण बनतेहै समय… दे छोड़ इन्हें… वर्ना कठोर सज़ा पाएगा।।”
बूढ़ा किसान नन्ही चिड़िया से
नन्ही चिड़िया का गीत सुनकर बूढ़ा किसान कहने लगा कि- चिड़िया रानी तुम सच कह रही हो। क्रोध और कड़वे बोल बोलना सबको दुख देता है और बोलने वाला अंत में बहुत पछताता है। इतना ही नहीं घोर सज़ा भी पाता है। पर मेरे इस मूर्ख बेटे में इतनी समझ कहां कि अपनी इस बुराई को त्याग दे।
मगर किसान पुत्र पर चिड़िया के मधुर स्वर का कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। उलटे उसे चिड़िया पर बहुत गुस्सा आया। साथ ही अपने पिता को चिड़िया की बड़ाई करते देखकर वह और अधिक जलभुन गया। उसने क्रोध में भरकर एक पत्थर उठाया और चिड़िया पर दे मारा। किस्मत से चिड़िया बाल-बाल बच गयी और उसने वहां से उड़ जाने में ही अपनी भलाई समझी।
किसान पुत्र की गरीब आदमी से भेंट
नन्ही चिड़िया के वहां से उड़ जाने के बाद किसान पुत्र अपने खेतों की ओर चला गया। जब वह अपने खरबूजों के खेत की तरफ गया तो उसे वहां एक गरीब आदमी मिला। उस आदमी ने किसान पुत्र से बड़े ही प्रेम के साथ कहा- ” किसान भाई, मैं यहां का राजा हूं और आज प्रजा का हालचाल जाने के लिए निकला था। इधर तुम्हारे खेत की तरफ आया तो देखा कि खेत में बहुत अच्छे और पके-पके खरबूजे लगे हैं। मेरा खरबूजा खाने का बड़ा ही मन है। तुम मेरे लिए कोई अच्छा-सा खरबूजा लेकर आओ।”
उस गरीब आदमी को देखकर किसान पुत्र को यकीन नहीं हुआ कि राजा ऐसे भेष में भी हो सकता है। इसीलिए उसने उसको बहरूपिया समझ लिया और उसकी इतनी-सी बात पर ही ताव में आ गया। फिर बिना कुछ सोचे-समझे ही उसका अपमान करते हुए बोला-” अगर राजा तेरे जैसा गरीब होता है तो उसे कुएं में डूब मरना चाहिए। थू ऐसे राजा पर! और तुम गरीब भिखारी कहीं के मुझे आदेश देते हो कि मैं तुम्हारे लिए खरबूजा लाऊं! तुम खरबूजे की जगह गोबर क्यों नहीं खा लेते! ”
राजा किसान पुत्र से
किसान पुत्र के कटु वचन सुनकर राजा को बहुत बुरा लगा। उन्होंने कहा-“क्यों भाई , मैंने ऐसी कौन-सी गाली दे दी थी तुम्हें कि तुम क्रोध में लाल होकर मेरा अपमान करने लगे। मैंने एक खरबूजा ही तो मांगा था और मैं तुम्हारा सच में राजा हूं इसलिए तुम्हें एक खरबूजा लाने का आदेश दिया था। क्या तुम्हें इतना भी ज्ञान नहीं कि राजा से कैसे पेश आना चाहिए और संसार में किसी को भी कड़वे बोल नहीं बोलने चाहिए। तुम्हें तो सबक सिखाना ही पड़ेगा।”
किसान पुत्र को पचास कोड़ों का सबक
राजा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि तभी वहां राजा के कुछ सैनिक आ पहुंचे।उन्हें देखते ही किसान पुत्र समझ गया कि आज तो उसने सचमुच राजा को ही अपमानित कर दिया है। इसी कारण वह डर गया और राजा के पैरों में गिरकर माफ़ी मांगने लगा। मगर राजा ने उसे माफ़ नहीं किया।
सैनिक किसान पुत्र को गिरफ्तार करके राजमहल में ले गए और राजा के आदेश से लोगों की भीड़ में खड़ा करके उसके नंगे बदन पर पच्चास कोड़े बरसाए गए ताकि वह भविष्य में कभी किसी को अपने कड़वे बोलों से आहत करने से पहले हज़ार बार सोचे।
जब किसान पुत्र कोड़ों की मार सह रहा था तब उसे रह -रहकर उस नन्ही चिड़िया के वही बोल याद आ रहे थे जो उसने उसको समझाने के लिए एक गीत के रूप में बोले थे। साथ ही वह उस नन्ही-सी चिड़िया की बात पर ध्यान न देकर भी बहुत पछता रहा था।
सीख: हमें सबसे मधुर या मीठे बोल बोलने चाहिए, कटु या कड़वे बोल कभी किसी से भी नहीं बोलने चाहिए।
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लेखक: कृष्ण कुमार दिलजद