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पोंगल पर निबंध | Essay on Pongal
भारत एक ऐसा देश है जहां हर वर्ग, जाति, धर्म व राज्य के लोग विभिन्न प्रकार के त्यौहार मनाते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक त्यौहार है पोंगल का त्यौहार. जो कि तमिलनाडु के बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व में से एक है। यह पर्व मकर संक्रांति के आसपास मनाया जाता है। यह पर्व लगभग 4 दिन मनाया जाता है इस पर्व पर सभी सरकारी दफ्तरों मे छुट्टी होती है।
यह पर्व भारत के साथ-साथ अन्य देश जैसे श्रीलंका, अमेरिका, कनाडा, मलेशिया जगहों पर रहने वाले तमिल लोगो के द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है।
जिस प्रकार पूरी दुनिया में नए साल पर बुराई और नफरत को खत्म करके नए जीवन की शुरुआत की कल्पना की जाती है उसी प्रकार पोंगल पर भी हर वर्ष तमिलनाडु के रहने वाले कुरीतियों को छोड़कर नए जीवन की प्रतिज्ञा करते हैं। इसे पोही कहते हैं, पोही का अर्थ है- ‘जाने वाली’ यानी बुराइयों और बुरी चीजों को त्याग कर अच्छी चीजों को अपने जीवन में लाना। पोही के अगले दिन ही धूमधाम से पोंगल का पर्व मनाया जाता है। लोग नए वस्त्र पहनते हैं और घर को सजाते है, घर के लिए नए सामान खरीदते हैं व नए बर्तनों में खाना व खीर बनाई जाती है।
कृषकों के लिए पोंगल का महत्व
पोंगल का त्योहार कृषकों के लिए बहुत महत्व रखता है तमिलनाडु के कृषक इसे बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। वह इंद्रदेव से अच्छी वर्षा और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं।
तमिलनाडु में चावल की फसल सबसे अधिक होती है। जब खेत चावल की फसलों से लहलहा उठता है तो फसलों की कटाई के बाद, उसी चावल की खीर पोंगल के दिन बनाई जाती है और भगवान को भोग लगाया जाता है। इसी प्रसाद को पोंगल का नाम दिया गया है।
पोंगल का त्यौहार 4 दिन तक मनाया जाता है
पहले दिन- भोगी पोंगल
इस दिन लोग चावल से अनेक प्रकार का व्यंजन तैयार करते हैं और इंद्रदेव से अच्छी वर्षा व अच्छे धान की फसल की प्रार्थना करते हैं इस दिन लोग अपने मित्रों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं और पोंगल की बधाइयां देते हैं।
दूसरे दिन- सूर्य देवता की पूजा
इस दिन सभी सूर्य देवता की पूजा करते हैं जिसे सूर्य पोंगल भी कहा जाता है। अच्छी फसल उगाने के लिए सूर्य देवता बहुत ही महत्वपूर्ण है इसलिए किसान लोग सूर्य की पूजा करते हैं और उनको भोग लगाते हैं।
तीसरा दिन- मतु पोंगल
इस दिन सभी किसान गाय की पूजा करते हैं। खेतों में गायें, फसल उगाने के लिए बहुत ही सहायक होती है, इसलिए गाय को इस दिन में सजाया जाता है उनको अच्छा भोजन दिया जाता है।
चौथे दिन- कन्या पूजन
इस दिन सभी लोग मिल बांट कर खाना बनाते हैं एक – दूसरे से मिलते हैं और पोंगल त्योहार की बधाइयां देते हैं और इसके साथ ही चौथा दिन कन्या पूजन के रूप में काली मंदिर में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है इसके साथ ही पोंगल का पर्व चौथे दिन जाकर समाप्त होता है।
पोंगल मनाने के पीछे की पौराणिक कथा (Why Pongal is celebrated)
पोंगल मनाने के पीछे दो कथा है।
पहली कथा के अनुसार एक बार शिव जी ने अपने बैल को पृथ्वी पर जाकर मनुष्यों को एक संदेश देने का आदेश दिया उन्होंने बैल से कहा कि वह पृथ्वी पर जाकर लोगों से कहे कि उन्हें रोज तेल से स्नान करना होगा और महीने में एक बार खाना खाना होगा.
बैल ने पृथ्वी पर जाकर इसका उल्टा संदेश दे दिया कि उन्हें एक बार नहाना और रोज खाना होगा। इस कारण शिवजी ने बैल को श्राप दे दिया की उसे पृथ्वी पर जाकर अब लोगों की खेती में सहायता करनी होगी तभी से बैल का प्रयोग खेती में होने लगा।
एक और कथा के अनुसार जब इंद्रदेव देवताओं के राजा बन गए थे तो उन्हें खुद पर बहुत अभिमान हो गया था इसलिए भगवान कृष्ण ने उन्हें सबक सिखाने की सोचा।
भगवान कृष्ण ने लोगों से कहा कि वह इंद्रदेव की पूजा न करें, इस पर भगवान इंद्र बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने तीन दिन तक लगातार बारिश और तूफान लाए, जिससे पूरी द्वारका तहस-नहस हो गई थी। उस समय भगवान श्री कृष्ण ने सबकी सुरक्षा के लिए अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया था। इसके बाद इंद्रदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने विश्वकर्मा से द्वारका को दोबारा से बसाने के लिए कहा था।
निष्कर्ष
पोंगल के त्योहार पर घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है व लाइट और फूलों से घरों को सजाया जाता है। लोग नए और अच्छे कपड़े पहनते हैं अच्छे व्यंजन बनाकर खाते हैं और अपने पड़ोसियों रिश्तेदारों को बधाइयां देते हैं।
पोंगल का त्योहार तमिलनाडु के मुख्य त्योहारों में से एक है. जिसका पूरे वर्ष लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। भले ही भारत में अलग-अलग धर्म, राज्य व जाति के लोग अपने परिवार के साथ रहते हो और अपने अपने जाति, धर्म और सम्प्रदाय के अनुसार अलग-अलग त्यौहार मनाते हो लेकिन समस्त त्योहारों का मूल मंत्र, त्योहारों का एक ही उद्देश्य होता है- लोगों के जीवन में खुशियां लाना, आपस में मिलजुल कर एकता के साथ रहना और बुराई से दूर रहना।
Author:
आयशा जाफ़री, प्रयागराज