SHORT STORY: अर्धांगिनी

अर्धांगिनी

रोशन लाल की हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही थी।क्योंकि उनकी दोनों किडनी बेकार हो चुकी थी। डॉक्टरों के अनुसार अब बिना किडनी ट्रांसप्लांट के कोई रास्ता नहीं है । क्योंकि रोशन लाल एक मध्यमवर्गीय परिवार से था ,जिस की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी।


वैसे भी लोग अपनों के लिए ऐसी जहमत नहीं उठाते फिर रोशन लाल के लिए इतना बड़ा कदम कौन उठाता?

ऐसे में रश्मि ने बड़ा फैसला किया और जैसे-तैसे भाइयों की बदौलत पैसे का इंतजाम किया और डॉक्टर को अपने फैसले से अवगत करा दिया ।


लेकिन जब उसने रोशन लाल को यह सब अवगत कराया तो वह परेशान हो गया।आखिर क्यों अपनी जान देने पर तुली हो, जरूरी तो नहीं कि तुम एक किडनी दे दो और मैं ठीक ही हो जाऊं ।
मैं तो मर ही रहा हूँ मगर तुम भी….।


रश्मि ने उसे समझाया- हौसला रखो और सब कुछ भगवान पर छोड़ दो।जीना मरना ऊपर वाले की व्यवस्था है। कर्म करना हमारा काम है।ईश्वर ने दो किडनी शायद इसीलिए दी है कि वह किसी की जान बचा सके ।फिर आप तो मेरा सुहाग हो।अपने जीते जी मैं भला आपको मौत के मुंह में जाते हुए कैसे देख सकती हूं ?


आखिर मैं आपकी पत्नी हूँ। शायद इसीलिए पत्नी को अर्धांगिनी कहा गया है। इसलिए आप शांत रहिए,हिम्मत रखिए। सब ठीक हो जाएगा, भगवान के घर देर है अंधेर नहीं ।भगवान सबका भला करता है, हमारा भी करेगा।


वैसे भी हमें आपकी जरूरत है,बच्चों को आपकी जरूरत है।इसलिए जो हो रहा है होने दीजिए।
रश्मि की जिद के आगे रोशन लाल निरूत्तर हो गये।उनकी आंखें भर आयीं।

Read Also:
नारी मन की पीड़ा
समाज में नारी का अस्तित्व
नारियाँ अबला या सबला

अगर आप की कोई कृति है जो हमसे साझा करना चाहते हो तो कृपया नीचे कमेंट सेक्शन पर जा कर बताये अथवा contact@helphindime.in पर मेल करें.

यह कविता आपको कैसी लगी ? नीचे 👇 रेटिंग देकर हमें बताइये।

1 Star2 Stars3 Stars4 Stars5 Stars (1 votes, average: 5.00 out of 5)
Loading...

कृपया फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और whatsApp पर शेयर करना न भूले 🙏 शेयर बटन नीचे दिए गए हैं । इस कविता से सम्बंधित अपने सवाल और सुझाव आप नीचे कमेंट में लिख कर हमे बता सकते हैं।

About Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002