Table of Contents
चाणक्य की जीवनी | Chanakya Biography in Hindi
चाणक्य को इंडियन मैकियावेली कहा जाता है इसके पीछे की वजह है उनके महान विचार और चतुर दिमाग। चाणक्य न सिर्फ एक महान दार्शनिक, अर्थशास्त्री और राजनेता थे बल्कि एक बहुत अच्छे शिक्षक भी थे। वह एक गरीब ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए लेकिन कभी भी उन्होंने धन और मोह माया का लोभ नहीं किया। अपनी विद्वता और विचारों के जरिए उन्होंने विशाल साम्राज्य की स्थापना की। आइए जानते हैं चाणक्य के जीवन के बारे में-
नाम | चाणक्य |
अन्य नाम | कौटिल्य, विष्णुगुप्त |
जन्मतिथि | 375 ई. |
मृत्यु तिथि | 283 ई. |
मृत्यु स्थान | पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) |
मृत्यु के समय आयु | 75 वर्ष |
पिता का नाम | ऋषि कनक |
माता का नाम | चनेश्वरी |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
शैक्षणिक योग्यता | अर्थशास्त्र, राजनीतिक, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र |
चाणक्य का प्रारंभिक जीवन (Chanakya’s Early Life)
चाणक्य जिन्हें कौटिल्य, विष्णुगुप्त भी कहा जाता है, का जन्म 375 ईसा पूर्व माना जाता है हालांकि उनके जन्म को लेकर काफी मतभेद हैं। वे तक्षशिला के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए। कुछ लोग मानते हैं कि चाणक्य का जन्म कुटिल वंश में हुआ था यही वजह है कि उन्हें कौटिल्य के नाम से जाना जाता है। लेकिन कुछ विद्वान इस दावे को नकारते हुए कहते हैं कि चाणक्य के उग्र स्वभाव की वजह से उन्हें कौटिल्य के नाम से जाना जाता है। वही मुद्राराक्षस के रचयिता का कहना है कि उनके पिता चमक कहलाते थे और उन्हीं के नाम के आधार पर उनका नाम चाणक्य पड़ा।
इसके साथ ही उनके जन्म स्थल को लेकर भी काफी विवाद है कुछ विद्वानों का कहना है कि उनका जन्म तक्षशिला में हुआ जो कि वर्तमान में पाकिस्तान का रावलपिंडी जिला है। वही कुछ का कहना है कि वह नेपाल के तराई में पैदा हुए जबकि कुछ का कहना है कि वे मैसूर राज्य के श्रवणबेलगोला में पैदा हुए।
चाणक्य के परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी उनका बचपन काफी दिक्कतों की वजह से गुजरा। कई राते तो वह बिना खाए ही काट दिया करते थे। वे बचपन से ही ज़िद्दी तथा गुस्सैल स्वभाव के थे।
लेकिन कभी उन्होंने धन, शोहरत का लोभ नहीं किया। वे हमेशा से साधारण जीवन पर ही विश्वास करते थे। कहा जाता है कि महामंत्री का पद संभालते हुए भी उन्होंने कभी लोभ नहीं किया अपने जीवन के उतार-चढ़ाव से जूझते हुए वे एक महान विद्वान के रूप में सबके सामने आए।
चाणक्य की शिक्षा (Chanakya’s Education)
चाणक्य ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नालंदा विश्वविद्यालय से पूरी की। वे बचपन से ही होनहार तथा पढ़ने में बेहद माहिर थे। कुछ ग्रंथों में इस बात का उल्लेख किया गया है कि चाणक्य ने तक्षशिला से शिक्षा हासिल की है। बता दे, तक्षशिला उत्तर पश्चिमी प्राचीन भारत में स्थित एक शिक्षण संस्था था। चाणक्य को राजनीति अर्थशास्त्र, युद्ध रणनीति, ज्योतिष जैसे कई विषयों में गहन जानकारी थी। यह माना जाता है कि उन्हें ग्रीक व फारसी वेद और साहित्य का ज्ञान था।
चाणक्य के जीवन दिशा में परिवर्तन (Changes in Chanakya’s Life)
चाणक्य शिक्षा हासिल करने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय में पठन-पाठन करवाने लगे। एक शिक्षक के रूप में वे अपना जीवन यापन कर रहे थे लेकिन कुछ घटनाओं की वजह से उनके जीवन में परिवर्तन हुआ। यह दो घटनाएं निम्नलिखित हैं:-
- भारत में सिकंदर का आक्रमण
- मगध शासकों द्वारा चाणक्य का अपमान
चाणक्य प्राध्यापक के रूप में तक्षशिला में पढ़ा रहे थे उस दौरान भारत में सिकंदर ने आक्रमण किया। चाणक्य सभी राजाओं के पास गए तथा भारत की संस्कृति की रक्षा का आग्रह किया। लेकिन कोई भी सिकंदर से लड़ने आगे नहीं आया। इसके बाद चाणक्य मगध के तत्कालीन सम्राट धनानंद के पास गए और सिकंदर को रोकने की सहायता मांगी। लेकिन धनानंद ने प्रस्ताव ठुकराते हुए चाणक्य को अपमानित करते हुए कहा कि- ‘पंडित हो अपनी चोटी का ही ध्यान रखो। युद्ध करना राजा का काम है। तुम पंडित हो सिर्फ पंडिताई करो।‘
इस अपमान के बाद से ही चाणक्य ने यह प्रण लिया कि वे नंद साम्राज्य का नाश करेंगे। उन्होंने अपनी चोटी खोल यह प्रतिज्ञा किया और कहा कि जब तक वे अपने प्रतिज्ञा में कामयाब नहीं हो जाते तब तक अपनी छोटी नहीं बांधेंगे।
चाणक्य और चंद्रगुप्त की जोड़ी (Chanakya & Chandragupta)
चंद्रगुप्त के जीवन में चाणक्य की अहम भूमिका है क्योंकि चाणक्य द्वारा ली गई प्रतिज्ञा को सफल बनाने में चंद्रगुप्त एक ज़रिया थे। चाणक्य की नजर चंद्रगुप्त पर उस समय पड़ी जब चंद्रगुप्त की आयु 8 से 9 वर्ष की होगी। उन्होंने चंद्रगुप्त के राजत्व प्रतिभा को पहचान लिया और तुरंत 1000 मुद्रा देकर उसके माता-पिता से चंद्रगुप्त को खरीद लिया।
चाणक्य ने बालक चंद्रगुप्त को अपने साथ में लाने के बाद उसे कई विषयों पर शिक्षा दिलाई, चंद्रगुप्त को चाणक्य ने अपना शिष्य बनाया और उन्हीं के शिक्षा की वजह से चंद्रगुप्त आगे जाकर यशस्वी शासक बने और इतिहास के पन्नों पर हमेशा-हमेशा के लिए अमर हुए।
चाणक्य का अर्थशास्त्र (Chanakya’s Arthashastra)
चाणक्य के अर्थशास्त्र में 15 अधिकरण 180 प्रकरण और 150 अध्याय तथा 6000 श्लोक शामिल है। इसमें उनके राजनीतिक अर्थशास्त्र, रसायनशास्त्र, भू-गर्भ विद्या, इंजीनियरिंग-विद्या जैसे कई विषय शामिल है। साल 1905 में तंजौर निवासी एक ब्राह्मण द्वारा चाणक्य के अर्थशास्त्र की हस्तलिखित प्रति को मैसूर के एक प्राचीन पुस्तकालय में भेंट किया गया।
नन्द साम्राज्य के पतन में चाणक्य की भूमिका (Chanakya’s role in the fall of the Nanda Empire)
नंद वंश के राजा धनानंद द्वारा चाणक्य को अपमानित किया गया जिसके बाद से ही चाणक्य ने चंद्रगुप्त को लेकर नंद वंश का विनाश करने की ठान ली इस वजह से चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य दोनों ने मिलकर कई अन्य शक्तिशाली शासकों से गठबंधन बनाया। उन्होंने कई युद्ध नीतियां बनाई और आखिरकार नंद वंश का पतन कर जीत हासिल की। जब नंदन राज्य का पतन हुआ तब चंद्रगुप्त मौर्य के साथ मौर्य साम्राज्य की स्थापना की गई। चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में सलाहकार के रूप में काम करने लगे।
चाणक्य के बुद्धिमता के परिणामस्वरुप ही मौर्य साम्राज्य का विस्तार होता गया यह धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गया। आगे जाकर चाणक्य ने भारतीय राजनीतिक ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ लिखा। इसमें उन्होंने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक कई विषयों की जानकारी दी। इसमें उन्होंने युद्धकाल, महामारी से राज्य का प्रबंधन कैसे किया जाए इस बारे में भी जानकारी दी।
जैन ग्रंथों के अनुसार मौर्य वंश के चंद्रगुप्त को दुश्मनों से बचाने के लिए चाणक्य ने शुरुआत से ही उनके खाने में जहर की छोटी खुराक मिलानी शुरू कर दी थी लेकिन इस बारे में चंद्रगुप्त मौर्य को ही स्वयं कोई जानकारी नहीं थी। एक दिन वह अपनी गर्भवती पत्नी दुर्धरा के साथ खाने पर बैठे और इस विषैले भोजन की वजह से रानी की मृत्यु हो गई। हालांकि चाणक्य ने अपनी बुद्धिमता से उनके बच्चे को बचा लिया। ज़हर की वजह से बच्चे के शरीर मे नीले धब्बे बन गए इस वजह से बच्चे का नाम बिंदुसार रखा गया जो कि आगे जाकर मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना।
चाणक्य की मृत्यु (Chanakya’s Death)
माना जाता है चाणक्य की मौत 283 ईसा पूर्व हुई है। हालांकि उनके मौत को लेकर रहस्य बरकरार है अभी तक इस बात का पता नहीं चला है कि उनके मौत के पीछे का कारण क्या था। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब वे जंगल में थे तभी उन्होंने अपना खाना-पीना त्याग दिया था जिस वजह से उनकी मृत्यु हुई। जबकि एक अन्य पौराणिक कथा का कहना है कि चंद्रगुप्त मौर्य के बेटे बिंदुसार के शासनकाल के दौरान ही एक राजनीतिक षड्यंत्र किया गया जिस वजह से चाणक्य की मृत्यु हुई।
चाणक्य को सम्मान (Honor to Chanakya)
चाणक्य के सम्मान में नई दिल्ली के एक एनक्लेव का नाम चाणक्यपुरी रखा गया है इसके अलावा कई अनेक जगह और संस्थान ऐसे भी हैं जिनका नाम चाणक्य के नाम पर रखा गया है। चाणक्य के नाम से टेलीविजन में कई तरह के धारावाहिक और किताबें भी आ चुकी है।
चाणक्य से जुड़े कुछ रोचक तथ्य (Some interesting facts related to Chanakya in Hindi)
- कुछ विद्वानों का कहना है कि चाणक्य काफी क्रोधी तथा स्वाभिमानी किस्म के व्यक्ति थे।
- चाणक्य का ज्ञान, उनकी दूरदर्शिता के बारे में भारत के कई शास्त्रों, ग्रन्थों और काव्य में उल्लेख किया गया है।
- पाश्चात्य राजनीतिक चिंतकों द्वारा राज्य के आवश्यक तत्व बताए गए हैं जिनमें जनसंख्या, भूमि, सरकार व संप्रभुता शामिल है लेकिन चाणक्य ने इसके इतर राज्य के 7 तत्वों का विवेचन किया है जिसमें स्वामी(राजा), अमात्य (मंत्री), जनपद (भूमि, प्रजा या जनसंख्या), दुर्ग (किला), कोष (राजकोष), दंड (बल,डंडा या सेना), सुहृद (मित्र) आदि शामिल है।
- चाणक्य, चंद्रगुप्त के भोजन में अक्सर सामान्य सा जहर मिलाया करते थे इसके पीछे कारण यह था कि यदि चंद्रगुप्त को दुश्मन जहर दे दे तो वह बच सके। इस बारे में चन्द्रगुप्त नहीं जानते थे और ऐसे ही 1 दिन चंद्रगुप्त अपनी गर्भवती पत्नी के साथ भोजन कर रहे थे जहर वाले भोजन के कारण रानी की मृत्यु हो जाती है हालांकि चाणक्य उनके बच्चे को बचा लेते हैं।
- कुछ विद्वानों का कहना है कि चाणक्य ने महिलाओं की सेना बनाई जिसका नाम रखा था ‘विश्वकण्य’ जिन्हें विषकन्या भी कहा जाता है रखा। दरअसल इन लड़कियों को बहुत मात्रा में जहर खिलाया जाता था जिससे यह घातक बन जाती थीं और इनकी चुंबन से ही किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी। इन महिलाओं का प्रयोग युद्ध के दौरान किया जाता था।
- चाणक्य की पुस्तक, चाणक्य नीति को चाणक्य नीति शास्त्र कहते हैं जो कि एफोरिज्म पर आधारित है।
- विद्वानों का कहना है कि एक बार चंद्रगुप्त के बेटे बिंदुसार ने चाणक्य को अपनी मां की हत्या के चलते साम्राज्य से निष्कासित कर दिया लेकिन बाद में उन्होंने चाणक्य को राज्य में वापस बुलाया परंतु चाणक्य ने वापस आने से मना कर दिया।
Author:
भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।