HINDI KAVITA: विजय पर्व

विजय पर्व

हम सब हर साल
रावण के पुतले जलाते हैं
विजय पर्व मनाते हैं,
शायद मुगालते में हम
खुद को ही भरमाते हैं।

वो त्रेतायुग था
जब राम ने रावण को मारा था,
तब रावण अकेला ही रावण था
इसीलिए राम से हारा था।
अब तो कलयुग है
रावणों की फौज
हर ओर खड़ी है।

अब तो ऐसा लगता है
कि जितना पुतला रावण का
जलता/मरता है,
हर एक से
रक्तबीज की तरह
सौ सौ रावण जन्म लेता है।

शायद इसीलिए रामजी भी
अवतार लें,न लें
इसी असमंजस के शिकार होंगे,
बहुरुपिए राम बने रावणों को
देखदेख हैरान/परेशान होंगे।

ये कैसा विजय पर्व है?
जो हम सब मनाते हैं,
रावण के पुतले को
बड़ी उत्साह से जलाते हैं।

अच्छा होता कि हम
रावण के पुतले की जगह
अपने मन के रावणत्व को जलाते,
तो शायद उस रावण की मृत्यु से
अच्छा विजयपर्व का
उत्साह/सूकून
महसूस कर पाते,
विजयपर्व का असली आनंद उठा पाते।

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About Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002