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ध्वनि प्रदूषण पर निबंध | Sound pollution essay in Hindi
भूमिका
हमारे पर्यावरण में जल, वायु, मिट्टी के प्रदूषण के अलावा ध्वनि प्रदूषण भी पाया जाता है। दरअसल, ध्वनि प्रदूषण हमारे आसपास के वातावरण में अत्यधिक मात्रा में शोर की वजह से होता है। यह शोर कई तरह से पैदा होता हैं जैसे गाड़ियों का शोर, मशीनों का शोर, लाउड म्यूजिक तथा भवन निर्माण गतिविधियों से उत्पन्न शोर।
यही अवांछित शोर जो कि उच्च स्तर में वातावरण में फैली होती है यह मनुष्य के कानों के लिए काफी खतरनाक सिद्ध होती है। अन्य प्रदूषणों की तुलना में ध्वनि प्रदूषण को कम नहीं आंका जाना चाहिए क्योंकि यह मनुष्यों के साथ-साथ जीव-जंतुओं के लिए भी काफी हानिकारक होता है।
यह सिर्फ थल में रहने वाले प्राणियों के लिए ही नहीं बल्कि जल में रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए भी काफी खतरनाक होता है क्योंकि बड़े-बड़े समुद्रों में जहां जलीय जीव-जंतु मौजूद होते हैं, वहां भी पनडुब्बी और बड़े जहाजों की वजह से कई ज्यादा शोर उत्पन्न होता है। ऐसे में समय रहते इस ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाने की जरूरत है।
ध्वनि प्रदूषण किसे कहते हैं? (What is sound pollution?)
ध्वनि प्रदूषण को लेकर विद्वानों ने अपनी-अपनी परिभाषाएं दी हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:-
हटैल के अनुसार: शोर एक अवांछनीय ध्वनि है जो कि थकान बढ़ाती है और कुछ औद्योगिक परिस्थितियों में बहरेपन का कारण बनती है।
जे. टिफिन के अनुसार: शोर एक ऐसी ध्वनि है जो किसी व्यक्ति को अवांछनीय लगती है और उसकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है।
ऐसे में हम कह सकते हैं कि किसी वस्तु द्वारा उत्पन्न वह तीव्र आवाज जो हमारे कान की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती है तथा जिसे सहन करना मुश्किल हो जाता है, उसे ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है। ध्वनि को डेसिबल में मापा जाता है 40 से 45 डेसिबल की ध्वनि कर्णप्रिय मानी जाती है। जबकि 70 से 75 डेसिबल की ध्वनि को सहनीय माना जाता है।
80 डेसिबल से ज्यादा की ध्वनि से मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है यदि यही ध्वनि 130 से 140 डेसीबल तक पहुंच जाती है तो उससे मनुष्य बहरा भी हो सकता है।
ध्वनि प्रदूषण के कारण/स्त्रोत
ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है जनसंख्या में विस्फोट क्योंकि जैसे-जैसे मनुष्य की संख्या बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे उनके द्वारा अत्यधिक मात्रा में शोर उत्पन्न किया जा रहा है। ध्वनि प्रदूषण कई कारणों से उत्पन्न होता है जिनमें से कुछ निम्नलिखित है:-
प्राकृतिक: ध्वनि प्रदूषण प्राकृतिक कारणों से भी होता है। हालांकि प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण कम समय के लिए होता है और इसका मनुष्य पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता। प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण में बादलों की गड़गड़ाहट, बादलों का फटना, तेज बारिश, बिजली का गिरना, झरनों का बहना तथा पक्षियों की चहचहाहट आदि शामिल है।
मानव निर्मित: मानवीय ध्वनि प्रदूषण से तात्पर्य उस प्रदूषण से है जो कि मनुष्य द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं। जनसंख्या में वृद्धि, बढ़ता शहरीकरण तथा परिवहनों की संख्या में वृद्धि ने ध्वनि प्रदूषण की समस्या को विकराल कर दिया है। मानव की क्रियाओं से उत्पन्न शोर मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होते हैं इन्हें कई भागों में विभाजित किया जाता है जो कि निम्नलिखित है:-
- यातायात के साधनों से उत्पन्न शोर: अत्यधिक जनसंख्या की वजह से भारत में वाहनों की संख्या कहीं ज्यादा है। वर्ष 1950 में भारत में कुल वाहनों की संख्या लगभग 30 लाख मानी जाती है। साल 1991 में आई आर्थिक उदारीकरण के बाद से ही भारतीय परिवहन उद्योग ने लगातार वृद्धि की जिस वजह से भारतीय बाजार में कई प्रकार के वाहन उतरे। इससे मौजूदा समय में वाहनों की संख्या करोड़ों में हो चुकी है। आज अत्यधिक वाहनों की वजह से ना सिर्फ ध्वनि प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है बल्कि सड़क हादसे होना, वायु प्रदूषण जैसी गंभीर समस्याओं का भी हमें सामना करना पड़ता है।
- उद्योग-धंधों से उत्पन्न शोर: औद्यौगीकरण की वजह से आज जितने भी औद्योगिक क्षेत्र हैं उनसे अत्यधिक मात्रा में शोर उत्पन्न होता है। कारखानों में मशीनों की वजह से शोर उत्पन्न होता है। आज जितने भी औद्योगिक क्षेत्र हैं वहां ध्वनि प्रदूषण की समस्या बेहद गंभीर है।
- निर्माण कार्यों से उत्पन्न शोर: अलग-अलग तरह के निर्माण कार्य किए जाते हैं जैसे कि भवनों का निर्माण,वाहनों का निर्माण,सड़क निर्माण, पुलों का निर्माण इत्यादि। इनके निर्माण के लिए कई तरह की मशीनों की जरूरत पड़ती है, यह मशीनें अत्यधिक मात्रा में शोर उत्पन्न करती है जिससे ध्वनि प्रदूषण होता है।
- मनोरंजन के साधनों से उत्पन्न शोर: मनुष्य द्वारा अपना मनोरंजन करने के लिए कई प्रकार के साधनों का इस्तेमाल किया जाता है। जिनमें आतिशबाजी, टीवी, म्यूजिक सिस्टम, डीजे आदि शामिल है। इसके अलावा धार्मिक कार्यक्रमों, विवाह समारोह, पार्टी और मेलों इत्यादि में भी ध्वनि प्रदूषण पैदा होता है। इन सब के उपयोग की वजह से आज वातावरण में कई अवांछित ध्वनियां बढ़ती ही जा रही है।
ध्वनि प्रदूषण के कुप्रभाव
- ध्वनि प्रदूषण की वजह से मनुष्य को कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे कि नींद ना आना, सर दर्द, चिड़चिड़ापन आदि। इसके अलावा 24 घंटे कानों में ध्वनि के जाने से कई श्रवण संबंधी समस्याएं भी मनुष्य में देखने को मिलती है। ध्वनि प्रदूषण की वजह से कई लोगों की सुनने की क्षमता में कमी आ जाती है तो वहीं कई लोग हमेशा के लिए अपनी श्रवण शक्ति खो देते हैं। इन सामान्य प्रभावों के अलावा मनुष्य में ध्वनि प्रदूषण की वजह से कई मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी देखने को मिलते है, जिससे कई लोग न्यूरोटिक मेंटल डिसऑर्डर (Neurotic mental disorder) से ग्रसित हो जाते हैं।
- इसके अलावा ज्यादा शोर होने की वजह से मकानों की दीवारों में दरारें पड़ने की संभावना बढ़ जाती है।
- ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव सिर्फ मनुष्य पर ही नहीं बल्कि जीव-जंतुओं पर भी होता है। जीव- जंतु भी ध्वनि प्रदूषण के कुप्रभावों को झेलते हैं।
ध्वनि प्रदूषण से बचाव व इसके नियंत्रण के उपाय
- पौधों में क्षमता होती है कि वे ध्वनि की तीव्रता को 10 से 15 डीबी तक कम कर देते हैं इसीलिए जरूरी है कि सड़कों के किनारे पेड़ पौधे लगाए जाएं इससे ना सिर्फ ध्वनि प्रदूषण की समस्या में कमी आएगी बल्कि वायु प्रदूषण भी कम होगा।
- उद्योग धंधों के लिए जिन मशीनों का प्रयोग किया जाता है यदि उनकी नियमित मरम्मत की जाए तो इससे उन से उत्पन्न होने वाले शोर में कमी लाई जा सकती है।
- जिन उपकरणों से अधिक ध्वनि उत्पन्न होती है उन्हें ध्वनिरोधी कमरों में लगाना चाहिए वहीं मशीनों के आसपास कार्य करने वाले कर्मचारियों को ध्वनि अवशोषक तत्व एवं कर्ण बंधकों का इस्तेमाल करना चाहिए।
- ध्वनि प्रदूषण को लेकर लोगों में जागरूकता अभियान चलाना चाहिए क्योंकि ज्यादातर लोग जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण तथा स्थल प्रदूषण से तो वाकिफ़ होते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता है कि ध्वनि प्रदूषण की वजह से भी मनुष्य में कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो जाती है। यदि लोगों को इस बारे में बताया जाए तो वह इनका ध्यान रख ध्वनि प्रदूषण के रोकथाम में मदद कर सकते हैं।
ध्वनि प्रदूषण को लेकर कानूनी प्रावधान
- भारतीय संविधान की धारा 133 किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार देता है कि यदि उस व्यक्ति को आस पड़ोस में किसी भी चीज़ जैसे शोर की वजह से अपने दैनिक कार्यों में बाधा का सामना करना पड़ रहा है तो इसके लिए वह शिकायत दर्ज कर सकता है।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 और ध्वनि प्रदूषण (विनिमय और नियंत्रण) नियम 2000 में ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करना शामिल है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 290 में ध्वनि प्रदूषण जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार ध्वनि अप्रदूषण करने पर ₹200 का जुर्माना लगाया जा सकता है।
निष्कर्ष
ध्वनि प्रदूषण न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी के लोगों को जोखिम में डाल रहा हैं बल्कि भविष्य में आने वाली पीढियों का भी जीवन दाव पर लगा रहा है इसीलिए इसे जल्द से जल्द कम करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
अतः हम कह सकते हैं कि मनुष्य को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए ध्वनि प्रदूषण की मात्रा को कम करना होगा इसके लिए प्रत्येक मनुष्य अपने स्तर पर कदम आगे बढ़ा सकता है। पार्टियों और शादियों में उच्च स्तर पर गाने का उपयोग कम किया जाना चाहिए। इसके साथ ही बचपन से ही बच्चों को ध्वनि प्रदूषण को लेकर जागरूक करना चाहिए।
इसके लिए बच्चों के पाठ्यक्रम में ध्वनि प्रदूषण से संबंधित अध्याय जोड़ा जाना चाहिए। इसके अलावा लोगों को जागरूक करने के लिए विभिन्न तरह के सेमिनार, वेबीनार आयोजित किए जा सकते हैं।
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Author:
भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।
ध्वनि प्रदूषण पर बहुत बढ़िया निबंध।
Bahut badiya…..