अब समय के चाल से हमको भी चलना चाहिए
अब समय के चाल से हमको भी चलना चाहिए
सामने वालो के तरहा खुद भी ढलना चाहिए
चाह उनके जितने की हम बिछे विसात पर
वो अगर हारे तो उनको भी बदलना चाहिए
दुस्वारियों के आंच पर हम मोम सा पिघल गए
ये वक्त की आवाज़ है उनको भी जलना चाहिए
है गुरुर उनको ताज का जो धूल समझा है हमें
अब आँधियों के जोर सा सर तक उछलना चाहिए
ठोकरें खा कर बहुत गिरते फीरे अंधेर में
अब चरागों को लिए “काजू” संभालना चाहिए
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काजू निषाद गोरखपुर राजधानी
THANK YOU SIR
Jai nishac raj Kya baat kahi hai guru aapne i am Agrry with you ..Jeet nishad