Table of Contents
बेटी बचाओं पर निबंध | Essay on Save Daughter or Save Girl Child in Hindi
आज इस लेख (Article) में आप पढ़ने जा रहे हैं Essay on Save Daughter or Save Girl Child in Hindi अर्थात बेटी बचाओं पर निबन्ध। आशा है आप इस लेख को पूरा पढ़ेंगे तथा यह जान सकेंगे कि आखिर हमारे समाज में बेटियों को बचाना क्यों जरूरी है।
प्रस्तावना
‘बोए जाते हैं बेटे पर उग जाती हैं बेटियां, खाद पानी बेटों को पर लहलहाती हैं बेटियां, स्कूल जाते हैं बेटे पर पढ़ जाती हैं बेटियां, रुलाते हैं जब खूब बेटे, तब हंसाती हैं बेटियां’ नंदकिशोर हटवाल की कविता की यह चंद पंक्तियाँ हमें आज भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति से रूबरू कराती है जिसमें बेटियों को हमेशा बेटों की तुलना में कम आंका जाता है। बेटों की चाह की जाती है और बेटियों को धुत्कारा जाता है।
प्राचीन भारत में तो बेटियों की स्थिति और भी ज्यादा दयनीय थी जब उन्हें घर की चारदीवारी से बाहर तक निकलने नहीं दिया जाता था। लेकिन उस दौर में भी बेटियों ने 1947 के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी।
आज देश के विकास के साथ-साथ समाज का भी विकास हुआ है। लेकिन यह विकास सिर्फ ऊपरी तौर पर है, क्योंकि अभी भी कुछ जड़ मानसिकता वाले लोग ऐसे हैं जो बेटियों की तुलना बेटों से करते हैं। समाज की मानसिकता बेटियों को लेकर इतनी खूंखार है कि एक बेटी अपनी माता के गर्भ के बाहर ही नहीं बल्कि अंदर भी सुरक्षित नहीं है। गर्भ के अंदर बेटियों की भ्रूण हत्या कर दी जाती है वही गर्भ के बाहर उनके साथ बलात्कार और शोषण।
बेटियों के लिए घृणात्मक रवैया रखने वाले यह लोग भूल जाते हैं कि वह उसी भारतीय समाज का हिस्सा है, जहां बेटियों को देवियों की तरह पूजा जाता है। हर घर में देवी लक्ष्मी, सरस्वती, काली की प्रतिमाएं लगाई जाती है उनका पूजन किया जाता है और इसी समाज में बेटियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है। यही वजह है कि आज देश में बेटियों के लिंग अनुपात में कमी आई है।
आज बेटियां प्रत्येक क्षेत्र में अपने परिवार तथा अपने देश का नाम रोशन कर रही है। कोई भी एक ऐसा क्षेत्र नहीं बचा जिसमें बेटियों ने खुद को बेटो से बेहतर साबित ना किया हो। घर से लेकर बॉर्डर तक बेटियों ने अपना शत-प्रतिशत दिया है। कल्पना चावला, साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा और प्रियंका चोपड़ा जैसी कई बेटियां हैं जिन्होंने देश का नाम पूरे विश्व भर में ऊंचा किया।
लेकिन अब भी कुछ जड़ मानसिकता वाले लोग इस बात को समझने को तैयार ही नहीं है। वह बेटी और बेटों के बीच भेदभावपूर्ण रवैया अपनाते हैं। बेटियों को हीन दृष्टि से देखते हैं तथा वह उनके अधिकारों को उनसे छीन लेते हैं। यह लोग बेटी को जीने के अधिकार से भी वंचित कर देते हैं और जन्म से पहले उनकी हत्या करते हैं। साल 2001 में की गई जनगणना के जो आंकड़े निकल कर सामने आये उसमें 0-6 वर्ष के बच्चों में लिंगानुपात 1000 लड़कों में लड़कियों की संख्या 927 थी। 2011 में जब जनगणना की गई तब 1000 लड़कों में लड़कियों की संख्या 918 हो गई जो कि बेहद चिंता का विषय है।
लड़कियां एक माता, पत्नी, बेटी और बहन के रूप में सामाजिक ढांचे को संभालती है। वह अपने घरेलू जिम्मेदारियों को निभाने के साथ ही पेशेवर जिम्मेदारियों को भी बहुत ही अच्छे से निभाना जानती है। अब तो बेटियां सेना पर जाकर दुश्मनों से दो-दो हाथ कर रही हैं। ऐसे में जीवन के किसी भी मोर्चे पर बेटियां बेटों की तुलना में कम नहीं है।
कन्या भ्रूण हत्या के कुछ कारण
लोगों की दकियानूसी सोच के अलावा भी कई ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से स्त्री भ्रूण हत्या जैसे घृणात्मक कार्य को अंजाम दिया जाता है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित है:-
1. महिलाओं को कमतर समझना
कई लोग ऐसे हैं जो मानते हैं कि स्त्रियां पुरुषों के मुकाबले कमजोर होती है। कई लोग बेटियों को अभिशाप भी मानते हैं। इसी छोटी सोच की वजह से उनकी क्रूरता पूर्वक हत्या कर दी जाती है।
2. अशिक्षा
पढ़ लिखकर ही लोगों में ज्ञान का विकास होता है। लेकिन भारत जैसे देश में चरम गरीबी की वजह से अशिक्षा विद्यमान है और यही सामाजिक बुराइयों का कारण भी है।
3. गरीबी
देश में गरीबी भी कन्या भ्रूण हत्या का एक कारण है क्योंकि गरीबी की वजह से लोगों को लगता है कि लड़कियां उन पर और भी ज्यादा आर्थिक विपत्तियां बढ़ा देंगी। वहीं कुछ लोग इसकी जगह बेटों को तवज्जो इसलिए देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि बेटा आगे जाकर बड़ा होकर, कमाकर परिवार का पालन पोषण करेगा।
4. दहेज प्रथा
दहेज एक कुप्रथा है इस प्रथा में ना जाने कितनी बेटियों और महिलाओं की जिंदगी तबाह कर दी है। शादी के समय दूल्हे के परिवार वाले पैसे तथा कीमती सामान मांगते हैं यही लोग दहेज के लिए लड़कियों को प्रताड़ित करते हैं। इसी कारण कई ऐसे परिवार वाले हैं जो दहेज देने का सोच कर ही बेटियों की हत्या कर देते हैं हालांकि आपको बता दे भारत में दहेज को कानून द्वारा निषिद्ध कर दिया गया है।
बेटियों को बचाने के लिए प्रयास
बेटियों की रक्षा के लिए प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर कोई ना कोई कदम जरूर उठा सकता है, नीचे कुछ ऐसे तरीके बताए जा रहे हैं जो बेटियों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं:-
1. जागरूक करना
जागरूकता का अभाव ही कु-प्रथाओं की जड़ है। लोगों में जागरूकता की कमी की वजह से लड़के और लड़कियों में भेदभाव किया जाता है। हर परिवार को इस बारे में ज्ञान देना आवश्यक है कि बेटों की तरह ही बेटियां भी काम के हर मोर्चे पर अपनी भूमिका निभा सकती है।
2. शिक्षित करना
एक शिक्षित समाज ही सभ्य समाज की ओर बढ़ता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित करना जरूरी है जिससे वह यह सोच विकसित करे कि बेटियां समाज में अंधकारमय नहीं बल्कि समाज को रोशन करती हैं।
3. कानूनी प्रावधान
कानून में दहेज प्रथा तथा भ्रूण हत्या एक पाप है लेकिन समय के साथ-साथ बेटियों की रक्षा के लिए और भी ज्यादा कानूनों को प्रकाश में लाना जरूरी है।
बेटियों को बचाने के लिए उठाए गए कुछ कदम:-
- साल 2005 में हरियाणा एवं साल 2008में दिल्ली सरकार द्वारा लाडली योजना की शुरुआत की गई। इसका मुख्य उद्देश्य था कि बेटियों को समान शिक्षा मिले जिससे उनकी स्थिति में सुधार हो सके। इसके साथ ही कन्या भ्रूण हत्या पर लगाम लग सके।
- साल 2008 में महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा धन लक्ष्मी योजना की शुरुआत की गई थी। इसकी मदद से बच्चियों के जन्म पंजीकरण, टीकाकरण के बाद उनके माता-पिता को नकद हस्तांतरण प्रदान किया जाता था।
- साल 2006-2007 में किशोरी लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए किशोरी शक्ति योजना लांच की गई थी जिसके अंतर्गत 11 से 18 वर्ष की लड़कियों को शारीरिक और मानसिक तौर पर मजबूत करने तथा उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया जाता था। लेकिन साल 2018 में इस योजना को मोदी सरकार द्वारा बंद कर दिया गया।
- किशोरी शक्ति योजना को बंद करने के बाद स्कीम फ़ॉर एडोलसेंट गर्ल को लांच किया गया।
- बेटियों की सुरक्षा के लिए 22 जनवरी साल 2015 में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा बालिका दिवस के अवसर पर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का अभियान शुरू किया गया।
- 22 जनवरी 2015 में ही सुकन्या समृद्धि योजना की शुरुआत की गई थी जिसके अंतर्गत बेटी के लिए बचत खाता खोले जाने का प्रावधान है। खाते की न्यूनतम राशि ₹250 है और अधिकतम राशि 1.5 लाख रुपए है इसके अंतर्गत 7.6 प्रतिशत का ब्याज मिलता है।
- सरकार ने बेटियों को बचाने के लिए महिलाओं के गर्भ जांच पर रोक लगाई है तथा ऐसा करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कठोर प्रावधान बनाए गए हैं।
उपसंहार
कहा जाता है कि स्त्री और पुरुष एक ही गाड़ी के दो पहिए की तरह होते हैं। एक ना हो तो गाड़ी लड़खड़ा जाती है। इसी तरह समाज को भी आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि महिलाओं की रक्षा की जाए बेटियों को बोझ की तरह नहीं बल्कि उन्हें ताकत की तरह देखे। गत वर्षों में समाज की विचारधारा में परिवर्तन आया है लेकिन अभी भी बेटियों की स्थिति खराब है। बेटियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए जरूरी है कि सभी लोग एकजुट हो तथा इस समस्या का समाधान करें। बेटियों का हक है कि उन्हें बेटों के समान ही शिक्षा और जीवन जीने का अवसर मिले।
तो आज आपने पढ़ा बेटी बचाओं पर निबंध | Essay on Save Daughter or Save Girl Child in Hindi, आपको हमारा लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं।
आप अपने सुझावों और प्रश्न कमेंट सेक्शन में जाकर पूछ सकते हैं। लेख को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमारा मनोबल बढ़ाते रहें। HelpHindiMe को सब्सक्राइब करना न भूले।
Author:
भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।