Maharana Pratap

Last updated on: March 6th, 2021

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महाराणा प्रताप की जीवनी | Biography of Maharana Pratap

महाराणा प्रताप का प्रारंभिक जीवन (Bharat ke Veer Putra Maharana Pratap)

महाराणा प्रताप दृढ़ विश्वास एवं वीरता के एक ऐसे प्रतिमूर्ति थे, जिन्होंने अपने पराक्रम तथा शौर्य से इतिहास में एक उच्च स्थान प्राप्त किया है। इनका जन्म उदयपुर के मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत नामक राजवंश में हुआ था। इनका जन्म जेष्ठ शुक्ल तृतीया, रविवार विक्रम संवत 1597 अर्थात 9 मई 1540 ईस्वी में हुआ था।

महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराणा उदय सिंह एवं माता का नाम महारानी जयवंताबाई था। इनकी वीरता एवं दृढ़ प्रण की भावना ने इन्हें आज भी इतिहास में अमर कर रखा है। महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा थे जो आज राजस्थान के नाम से जाना जाता है।

महाराणा प्रताप की शारीरिक संरचना

महाराणा प्रताप के केवल छाती के कवच का वजन 72 किलो का था। महाराणा प्रताप 81 किलो वजन के भाला का इस्तेमाल करते थे। इसके अलावा वे सदैव अपने साथ दो तलवारें रखा करते थे।

अतः उनके कवच, भाला, ढाल एवं दो तलवारों का कुल वजन 208 किलो का था, जो उनके वीर पराक्रमी शारीरिक संरचना का वर्णन करते हैं।

पराक्रमी एवं वीरता के प्रतिमूर्ति के रूप में महाराणा प्रताप का परिचय

महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी युद्ध में अपने 20000 सैनिकों के साथ अकबर के 85000 सैनिकों के साथ लड़कर वीरता का परिचय दिया। परंतु प्रारंभ में अकबर द्वारा महाराणा प्रताप को समझाने के लिए 6 शांति दूत भेजे गए थे।

अकबर ने महाराणा प्रताप को युद्ध से बचने के लिए एक प्रस्ताव रखा कि वह युद्ध ना करें परंतु महाराणा प्रताप ने उस प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया कि वीर योद्धा कभी युद्ध क्षेत्र में पीठ दिखाकर नहीं भागते और उसका डटकर सामना करते हैं, चाहे इसके लिए अपनी जान क्यों न गवानी पड़े।

महाराणा प्रताप का वैवाहिक जीवन

महाराणा प्रताप का विवाहित जीवन अत्यंत रोमांचक माना जाता है। उन्होंने अपने जीवन में कुल 11 विवाह किए थे। उनकी पत्नियों के नाम महारानी अजब्धे पंवार, अमरबाई राठौड़, लखाबाई, शहमति बाई हाडा, अलमदेबाई चौहान, रत्नावती बाई परमार, जसोबाई चौहान, चंपाबाई जंथी, सोलनखिनीपुर बाई, फूलबाई राठौर एवं खीचर आशाबाई था।

उनकी 11 पत्नियों से कई पुत्र एवं पुत्रियों ने जन्म लिया। महारानी अजब्धे पंवार से अमर सिंह एवं भगवान दास, शहमति बाई हाडा से पुरा, अमरबाई राठौर से नत्था, रत्नावतीबाई परमार से माल, गज, क्लिंगु, लखाबाई से रायभाना, अलमदेबाई चौहान से जसवंत सिंह, जसोबाई चौहान से कल्याणदास, सोलनखिनीबाई से साशा और गोपाल, फूलबाई राठौर से चंदा और शिखा, खीचर आशाबाई से हत्थी और राम सिंह का जन्म हुआ था।



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महाराणा प्रताप की उपलब्धियां (History of Maharana Pratap)

महाराणा प्रताप एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने युद्ध के दौरान कई उपलब्धियां हासिल की। इसे निम्नलिखित बिंदुओं का सहारा लेकर देखा जा सकता है-

1. हल्दीघाटी का युद्ध: हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में मुगलों तथा मेवाड़ के बीच लड़ा गया था। महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की सेना का नेतृत्व करते हुए हल्दीघाटी युद्ध में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हकीम खां सूरी एकमात्र ऐसे मुस्लिम सरदार थे जिन्होंने महाराणा प्रताप की तरफ से इस युद्ध में भाग लिया।

इस युद्ध में मानसिंह और आसिफ खान द्वारा मुगल सेना का नेतृत्व कर युद्ध को आगे बढ़ाया गया। इसमें अकबर की एक विशाल सेना समाहित थी और मुट्ठी भर राजपूतों की सेना का टिक पाना असंभव था। परंतु इसके बावजूद राजपूतों अर्थात महाराणा प्रताप की सेना ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिए।

2. दिवेर- छापली का युद्ध: दिवेर- छापली का युद्ध एक ऐसा युद्ध था जिसमें महाराणा प्रताप ने अपने खोए हुए राज्यों को पुनः प्राप्त किया था। यह युद्ध 1582 ईस्वी में हुआ, जो एक लंबे संघर्ष के रूप में जाना जाता है। इस युद्ध के दौरान मेवाड़ के प्रधान भामाशाह ने मालवे पर चढ़ाई की।

उन्होंने वहां से 2.3 लाख रुपए तथा 20000 अशर्फी ओं के साथ दंड में धनराशि को इकट्ठा किया। महाराणा प्रताप ने कुंभलगढ़ और मदारिया पर अधिकार कर लिया था। इसी के पश्चात दिवेर- छापली का युद्ध भी प्रारंभ होने का संकेत दे रहा था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप भामाशाह, चुंडावत, पडिहार, सोलंकी आदि के साथ अपने पूरे सेना के साथ युद्ध में भाग लिया।

जब महाराणा प्रताप की फौज अचानक से दिवेर पहुंची तब देखा गया कि मुगल दल में पूर्ण रूप से हड़कंप का वातावरण छा गया था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की विजय हुई। यह युद्ध एक ऐसा युद्ध था जिसने महाराणा प्रताप के बलिदान, त्याग और दृढ़ विश्वास का परिचय दिया।

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महाराणा प्रताप की जयंती से संबंधित तथ्य

महाराणा प्रताप की जयंती (Maharana Pratap Jayanti) को लेकर दो तारीखों की चर्चा क्यों की जाती है?
महाराणा प्रताप हमारे देश के एक महान सपूत एवं वीर योद्धा थे। उन्होंने अपने स्वाभिमान और शौर्य के बल पर इतिहास के पन्नों में अपने नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित कर लिया है।

उनकी जयंती के विषय में यह प्रश्न उठता है कि कुछ सरकारी और गैर सरकारी वेबसाइट्स पर 9 मई 1540 ईस्वी को महाराणा प्रताप की जयंती का उल्लेख किया गया है परंतु वास्तव में देखा जाए तो 6 जून को उनकी जयंती मनाई जाती है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित है-

सिटी पैलेस” और उदयपुर में स्थित “हल्दीघाटी म्यूजियम” में महाराणा प्रताप जयंती के विषय में बताया गया है कि महाराणा प्रताप जयंती 6 जून को मनाया जाना उचित है।

जिस प्रकार कई हिंदू त्योहारों की तारीखें हर वर्ष बदलती रहती है, ठीक उसी प्रकार महाराणा प्रताप जयंती की तारीख भी अदला-बदली होती है। 6 जून को महाराणा प्रताप जयंती मनाने का कारण यह है कि हिंदू कैलेंडर अर्थात पंचांग के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ महीने में गुरु पुष्य नक्षत्र में तृतीया तिथि को हुई थी।

यह दिवस हिंदुओं में शुभ माना जाता है। अतः इसके अनुसार ज्येष्ठ महीने की तृतीया तिथि 6 जून को होने के कारण महाराणा प्रताप की जयंती 6 जून को ही मनाई जानी उचित है।

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महाराणा प्रताप की मृत्यु (Maharana Pratap Death)

महाराणा प्रताप ने अपनी अंतिम सांस तक मेवाड़ की रक्षा की और युद्ध करते समय शहीद हो गए। 19 जनवरी 1597 ईसवी को चावंड पर शिकार करने के दौरान 56 वर्ष की आयु में महाराणा प्रताप की मृत्यु (Maharana Pratap Death) हो गई। महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने तेज और प्रताप से भारतीय इतिहास में अपनी वीरता का शोर मचा रखा है और अपनी प्रसिद्धि चारों दिशाओं में फैलाई है।

उन्होंने मुगलों को परास्त कर इतिहास में एक ऐसा मुकाम हासिल किया है जो कई बार वीर योद्धाओं के द्वारा भी कर सकना असंभव सिद्ध होता है।

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Author:

आयशा जाफ़री, प्रयागराज