दहेज प्रथा
दहेज प्रथा का करो विनाश
इससे होता कितना नाश ।
नारी सब कुछ सहती हैं
आसूं पी कर रहती हैं।
दहेज के खातिर ब्याह रचाते
नहीं मिले तो खूब सताते।
जिंदा उस नारी को जलाते
पर उसको खुदखुशी बताते।
अपनी बहन, बेटी न आती ध्यान
जब करते उस नारी का अपमान ।
फिर भी सब कुछ सहती आती
घुट घुट कर वो मरती जाती ।
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Author:
रश्मि सिंह, दिल्ली