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विकास और सतत विकास के बीच अंतर
विकास का अर्थ होता है किसी दिशा में प्रगति करना। किसी देश के संदर्भ में विकास का मतलब है, उसके सभी नागरिकों को मूलभूत आवश्यकताओं जैसे रोटी, कपड़ा और मकान की उपलब्धता हो तथा वह देश पूरी तरह से आधुनिक तकनीकों और प्रौद्योगिकी से लैस हो। कई बार विकास को अर्थव्यवस्था के विकास के साथ भी जोड़कर देखा जाता है।
वहीं दूसरी ओर सतत विकास में कई धारणाओं जैसे गरीबी, मानवीयता, अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक आदि कई पहलुओं को शामिल किया जाता है। एक तरफ विकास सिर्फ इस बात पर ज़ोर देता है कि लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो। वही सतत विकास इस बात पर जोर देता है कि हमें अपनी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों का भी ख्याल रखना चाहिए।
विकास की खासियत यह होती है कि यह समय के साथ बढ़ता जाता है तो कभी घटता जाता है। लेकिन ज्यादा से ज्यादा विकास करने की इस होड़ की वजह से पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच रही है। जलवायु और मृदा प्रदूषण की समस्या विकराल होती जा रही है। इसी समस्या से निपटने पर सतत विकास जोर देता है। विकास और सतत विकास के मध्य कई अंतर विद्यमान है आइए जानते हैं यह दोनों एक दूसरे से कैसे अलग है।
विकास किसे कहते हैं?
किसी भी दिशा में प्रगति करना विकास कहलाता है। विकास को औद्योगिकरण, उन्नत तकनीकों, शहरीकरण की प्रक्रिया से जोड़कर देखा जाता है। किसी देश के विकास का मतलब है कि उस देश में गरीबों की जनसंख्या कम हो, बेरोजगारी का स्तर कम हो तथा वह देश अपनी जरूरतों को स्वयं के दम पर पूरा करने में सक्षम हो।
निरंतर उच्च तकनीकों के विकास पर बल दिया जा रहा है। जिससे लोगों का जीवन स्तर भी उच्च होता जा रहा है। तकनीक और प्रौद्योगिकी के इस दौर में कोई भी किसी से पीछे नहीं रहना चाहता।
प्रत्येक देश उन्नत तकनीकों से लैस होना चाहता है जिस वजह से वह प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने से नहीं कतराता। यही वजह है कि विकास के लिए पेड़ों को काटा जा रहा है, प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है तथा ग्रीन हाउस गैसों के उत्पादन की वजह से ओजोन लेयर में छेद तथा जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
सतत विकास क्या है?
सतत विकास को 1987 के ब्रंटलैंड आयोग की रिपोर्ट में वर्णित किया गया है। जिसमें बताया गया है कि, “एक ऐसा विकास जो भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा कर सकने की क्षमता से समझौता किए बगैर वर्तमान पीढ़ी की जरूरतों को पूरा करता हो” वह सतत विकास कहलाता है।
मौजूदा पीढ़ी को गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने के लिए जल, पर्यावरण, जीवाश्म ईंधन आदि समस्त चीजों की उपलब्धता हो रही है। लेकिन इनके अत्यधिक दोहन की वजह से यह अब खत्म होने की कगार पर पहुंच रहे हैं। सतत विकास कहता है कि यही सब चीज हमारी भविष्य की पीढ़ी को भी मिले इसीलिए इनका संरक्षण किया जाना चाहिए।
सतत विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो विकास को पीढ़ी दर पीढ़ी कायम रखना चाहता है। इसका लक्ष्य है भावी पीढ़ी को वही चीजें उपलब्ध कराना जो मौजूदा पीढ़ी को समृद्ध बनाने में सक्षम है। विकास करने की होड़ के चलते लोग जंगलों का सफाया कर रहे हैं तथा पर्यावरण को नष्ट करते जा रहे हैं। जिससे कई तरह की समस्याएं पैदा हो रहीं है। इन्हीं समस्याओं को दूर करने का प्रयास सतत विकास करता है।
सतत विकास पर्यावरण की गिरावट को कम करने के पीछे प्रयास करता है। लेकिन सतत विकास को सिर्फ पर्यावरण से जोड़कर देखना उचित नहीं है क्योंकि सतत विकास की अवधारणा काफी व्यापक है।
विकास और सतत विकास में अंतर (Difference between Development and Sustainable Development in Hindi)
- विकास इस बात पर जोर देता है कि हमें अपनी जरूरतों को पूरा करना चाहिए जबकि सतत विकास कहता है कि हमें अपनी जरूरतों को पूरा करने के साथ ही भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी संसाधनों का संरक्षण करना चाहिए।
- विकास में किसी विशिष्ट स्थान के विकास पर जोर दिया जाता है। वही सतत विकास पूरे विश्व के विकास में अपना योगदान देता है।
- एक तरफ विकास में ज्यादा से ज्यादा प्रगति के लिए संसाधनों का दोहन करने पर बल दिया जाता है, वही दूसरी ओर सतत विकास में संसाधनों के दोहन की जगह उनके संरक्षण पर बल दिया जाता है। जिससे भविष्य में आने वाली हमारी पीढ़ी इन संसाधनों का इस्तेमाल कर सके।
- विकास की समयावधि लंबे समय तक नहीं चलती जबकि सतत विकास लंबे समय तक सुचारू रूप से चल सकता है।
- विकास का लक्ष्य होता है मौजूदा पीढ़ी के जीवन के स्तर में बढ़ोतरी करना। जबकि सतत विकास का उद्देश्य होता है कि वह मौजूदा पीढ़ी के साथ ही भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के जीवन स्तर में बढ़ोतरी करें बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए ।
- विकास का यह उद्देश्य होता है कि वह अपनी वर्तमान पीढ़ी को गुणवत्ता से भरपूर जीवन दे सके। जबकि सतत विकास का यह उद्देश्य होता है कि वह वर्तमान पीढ़ी के साथ भावी पीढ़ी के जीवन की गुणवत्ता भी सुनिश्चित करें।
- विकास एक तरह का सुधार और मौजूदा परिस्थितियों की बेहतरी से संबंधित होता है। वही सतत विकास पर्यावरणीय होता है क्योंकि यह इस बात पर बल देता है कि विकास के लिए प्राकृतिक पर्यावरण को नष्ट नहीं करना चाहिए।
- विकास में कृषि की पैदावार को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने के लिए विभिन्न तरह के रसायनों, कीटनाशकों आदि के प्रयोग पर बल दिया जाता है इसमें मिट्टी की गुणवत्ता की ओर ध्यान नहीं दिया जाता जबकि सतत विकास में मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखते हुए उच्च पैदावार को बढ़ाने में बल दिया जाता है।
- विकास के लिए ज्यादा से ज्यादा जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग किया जा रहा है जबकि सतत विकास कहता है कि हमें जीवाश्म ईंधनों का सीमित इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि यह इंधन भविष्य में समाप्त हो जाएंगे।
- सतत विकास को जहां विकास की एक नई अवधारणा कहा जाता है वही विकास को एक पुरानी धारणा माना जाता है।
- विकास में संसाधनों के वैज्ञानिक प्रबंधन पर ध्यान नहीं दिया जाता। जबकि सतत विकास में संसाधनों के वैज्ञानिक प्रबंधन पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जाता है।
निष्कर्ष
विकास और सतत विकास के अंतर से हमने जाना कि विकास बस आज की जरूरतों और सुविधाओं को पूरा करने पर जोर देता है। वही सतत विकास सिर्फ आज की जरूरतों को ही नहीं बल्कि भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की जरूरतों की ओर भी ध्यान दिलाता है। सतत विकास एक ऐसी अवधारणा है जो भविष्य पर केंद्रित है जबकि विकास की अवधारणा वर्तमान पर केंद्रित है।
प्रकृति से हमें जितनी भी चीजें मिली है इन सब चीजों पर मनुष्य से लेकर पशु, पक्षियों सबका अधिकार है। यदि हम इनका अधिक दोहन करते हैं तो यह सभी प्राणी तथा भविष्य में आने वाली पीढ़ियां इनसे मरहूम हो जाएगी। इसीलिए सभी प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग करना चाहिए तथा जितना हो सके उनका कम से कम उपयोग किया जाना चाहिए।
तो ऊपर दिए गए लेख में आपने जाना विकास और सतत विकास के बीच अंतर | Difference between Development and Sustainable Development in Hindi, उम्मीद है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा।
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Author:
भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।