Infant & Child Difference

Infant and Child difference in Hindi
शिशु और बच्चे में अंतर | Difference between Infant and Child in Hindi

शिशु और बच्चे में अंतर | Difference between Infant and Child in Hindi

जीवन कई अवस्थाओं से मिलकर बनती है। बच्चे के जन्म लेने से एक वयस्क बनने तक आपको कई अवस्थाओं को पार करना पड़ता है। इन अवस्थाओं को मेडिकल में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कुछ बच्चों को Neonate, Infant कहा जाता है कुछ को Child या Adolescent। लेकिन कई लोग इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि कौन-सी अवस्था के बच्चों को क्या कहा जाता है। आपकी इसी समस्या को हल करने के लिए आज हम आपको बताएंगे कि जीवन की अलग-अलग अवस्थाएं कौन-सी है। इसके साथ ही शिशु और बच्चे में क्या-क्या अंतर है।

शिशु और बच्चे में क्या अंतर है इसे जानने के लिए हमें अलग-अलग आयु वर्ग को जानना होगा जो कि निम्नलिखित हैं:-

Neonates (नवजात): जन्म लेने से 1 महीने की आयु तक के बच्चे।

Infant: इसमें 1 महीने से 2 साल तक की उम्र के बच्चे आते है। हालांकि इसे लेकर अलग-अलग मतभेद हैं। कुछ लोगों का मानना है कि 1 महीने से लेकर 1 साल तक के बच्चे इन्फेंट की श्रेणी में आते हैं।

Child: 2 साल के बाद की उम्र तक के बच्चों के लिए Child शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यानी कि 2 साल से लेकर 12 साल तक की उम्र के बच्चों को चाइल्ड कहा जाता है।

Adolescent: 12 साल से ऊपर की आयु के बच्चे के लिए Adolescent या किशोर शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ संस्थाओं का मानना है कि 12 से 16 साल के बच्चे इस श्रेणी में आते हैं जबकि कुछ का कहना है कि 12 से 18 साल के बच्चे इस श्रेणी में आते हैं।

Adult: जो किशोरावस्था की आयु को पार कर चुके होते हैं उन्हें व्यस्क कहा जाता है।

शिशु किसे कहते हैं? (What is Infant in Hindi?)

बच्चे जो पहले महीने से लेकर 2 वर्ष की आयु तक के होते हैं उन्हें शिशु कहा जाता है तथा इस अवस्था को शैशवावस्था के नाम से जाना जाता है। शैशवावस्था को स्टॉग (Stoong) ने परिभाषित किया है उनके अनुसार, ‘जीवन के पहले 2 साल बच्चे के भावी जीवन की नींव रखते हैं वैसे तो परिवर्तन किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन प्रारंभिक जीवन में जो प्रवृत्ति और प्रतिमान बनते हैं वे स्थायी बने रहते हैं।‘

1 महीने से लेकर 2 वर्ष तक की आयु को नाजुक आयु कहा जाता है क्योंकि इसी समय बच्चों में व्यक्तित्व की आधारशिला का विकास होता है। जिससे बच्चे का व्यक्तित्व आगे जाकर कैसा होगा इसका ढांचा तैयार होता है। इस उम्र में बच्चे ज्यादा समय अपने माता-पिता के साथ बिताते हैं इसलिए बच्चों का माता-पिता से जैसा संबंध होगा वैसा ही आगे जाकर उनका व्यक्तित्व बनेगा।

जब शिशु के व्यक्तित्व का निर्माण होता है तब उसे कई कारक प्रभावित करते हैं जिन्हें दो भागों में बांटा जाता है, एक है शारीरिक कारक और दूसरा है मनोवैज्ञानिक कारक। जो कि निम्नलिखित है:-

शारिरिक कारक

  • नकारात्मक वातावरण
  • उलझा हुआ जन्म
  • शिशु मृत्यु दर

मनोवैज्ञानिक कारक

  • प्रेरणा का अभाव
  • शिशु की विशिष्टता
  • विकासात्मक देरी

शिशु की मुख्य विशेषताएं

  • शिशु को इस आयु में अपने बड़ों से प्रेम, स्नेह और सहानुभूति की जरूरत होती है।
  • शिशु जब इस अवस्था में होता है तभी उसकी अभिगम प्रक्रिया बहुत तेज होती है। इस दौरान वह नई बातों को जल्दी सीख लेता है।
  • 1 महीने से लेकर 2 साल तक के शिशु में नकल करने की प्रवृत्ति देखी जा सकती है क्योंकि वह अपने माता-पिता भाई-बहन की तरह व्यवहार करने की कोशिश करते हैं।
  • शिशु इस अवधि में अलग-अलग शब्द और क्रियाओं को बार-बार दोहराता रहता है जैसे उसे बार-बार हंसने का मन होता है।
  • इस अवस्था के बच्चे अकेले खेलना पसंद करते हैं। वह अपने खिलौनों के साथ बातचीत किया करते हैं जैसी बातें उनके माता-पिता उनसे करते हैं।

बालक किसे कहते हैं? (What is Child in Hindi?)

शिशु की अवस्था के बाद की अवस्था को बालक अवस्था जिसे बाल्यावस्था के नाम से भी जाना जाता है, की शुरुआत होती है। जिन बच्चों की आयु 2 साल से ज्यादा होती है उन्हें Child (बालक) कहा जाता है। मुख्यतः 2 से 12 साल तक के बच्चों को इस श्रेणी में रखा जाता है। इस आयु में बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण होता है जिससे उनमे आदत, प्रतिभा, रुचि व इच्छा आदि पैदा होते हैं।

इसे भी दो श्रेणियों में विभाजित किया जाता है जिनमें से एक है यंग चाइल्ड और दूसरा है ओल्ड चाइल्ड। आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं:-

Young Child: वह बच्चे जिनकी आयु 2 से 6 साल तक होती है।

Old Child: वह बच्चे जिनकी आयु 6 से 12 साल तक की होती है।

बालक की तरह ही बाल्यावस्था को भी दो वर्गों में बांटा जाता है जिसमें एक होता है पूर्व बाल्यावस्था और दूसरा होता है पश्चात बाल्यावस्था जो कि निम्नलिखित है:-

  • पूर्व बाल्यावस्था

3 से 6 साल के बच्चों को पूर्व बाल्यावस्था की श्रेणी में रखा जाता है। इस अवस्था में बच्चों के शारीरिक विकास की गति धीमी होती है। हालांकि इस अवस्था में बालक कौशल सीखता है। इस अवधि में उनमें भाषा एवं बौद्ध (Language and perception) का विकास होता है।

  • पश्चात बाल्यावस्था

6 से 12 साल की अवस्था को पश्चात बाल्यावस्था के नाम से जाना जाता है। इस अवस्था में आकर बच्चे की शारीरिक वृद्धि समान गति से होने लगती है।

बालक की मुख्य विशेषताएं

  • इस अवधि में आकर बालक शारीरिक और मानसिक रूप से विकास करता है उसका मस्तिष्क परिपक्व होने लगता है।
  • एक बालक के मानसिक योग्यताओं में भी निरंतर वृद्धि होने लग जाती है, वह स्मरण करने की योग्यता का भी विकास कर लेता है।
  • इस अवधि में बच्चे जिज्ञासा करने लग जाता है वह हर चीज के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहता है।
  • बालक में सामाजिक गुणों का भी विकास होता है। वह सहयोग, सहनशील, आज्ञाकारिता जैसे गुणों को सीखता है।
  • इस दौरान बच्चे की रूचि में भी परिवर्तन होता है।

शिशु और बालक के बीच अंतर (Infant and Child difference in Hindi)

  1. 1 महीने से लेकर 2 साल तक के बच्चों को Infant या शिशु कहा जाता है। जबकि 2 साल से लेकर 12 साल तक के बच्चे बालक कहलाते हैं।
  2. शिशु अपनी बातों को रोकर बताते हैं जबकि बालक इस दौरान भाषा कौशल के जरिए अपनी बातों को समझाते हैं।
  3. 1 महीने से लेकर 2 साल के शिशु जिस अवस्था में होते हैं उसे शैशवावस्था (Infancy) के नाम से जाना जाता है। जबकि 2 से 12 साल के बच्चे जिस अवस्था में होते उसे बाल्यावस्था (Childhood) के नाम से जाना जाता है।
  4. शिशुओं में नकल करने की प्रवृत्ति देखी जाती है वह अपने माता-पिता, भाई- बहनों की नकल करते हैं। बाल्यावस्था में बच्चों में जिज्ञासा करने की प्रवृत्ति देखी जाती है जिस वजह से वह विभिन्न चीजों के बारे में जानकारी हासिल करने के इच्छुक होते हैं।
  5. शिशु इस दौरान चलना, बोलना सीखने की प्रक्रिया के प्रथम चरण में होते हैं। जबकि बाल्यावस्था में आकर इन सभी चीजों का विकास हो जाता है और शिशु चलने व बोलने में सक्षम हो जाते हैं।
  6. शिशु इस अवधि में अपने माता-पिता के साथ समय बिताते हैं जबकि बालक माता-पिता, दोस्तों परिजनों आदि के साथ संपर्क में आते हैं।
  7. शिशु बातों को समझने का प्रयास करते हैं जबकि बालक चीजों को समझने के साथ स्कूल जाना प्रारंभ कर देते हैं जहां समझने की प्रक्रिया में वृद्धि होती है।
  8. शैशवावस्था में बच्चों के व्यक्तित्व का ढांचा तैयार होता है जबकि बाल्यावस्था में आकर व्यक्तित्व का विकास होता है।
  9. शिशु अपने माता-पिता की रूचि के अनुरूप रुचियां स्थापित करते हैं वही वे बाल्यावस्था में आकर अपनी रुचि, प्रसन्ना, पसंद का विकास करते हैं।
  10. शैशवावस्था के बाद की अवधि बाल्यावस्था होती है जबकि बाल्यावस्था के बाद बच्चा किशोरावस्था में पहुंच जाता है।

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तो ऊपर दिए गए लेख में आपने जाना शिशु और बालक के बीच अंतर (Infant and Child difference in Hindi), उम्मीद है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा।

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Author:

Bharti

भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।