शिक्षक (गुरु)
मैं बंजर सी कोई ज़मीं खाली,
जो बोए ज्ञान का बीज मुझमें तू वो माली,
मैं अज्ञानता में पडा कोई नादानी,
जो लाए किनारे तक मुझे तू वो महाज्ञानी,,
मैं स्वार्थी तेरे धन(ज्ञान) का (विश्वास),
निस्वार्थ लुटाए जो अपना धन मुझपे,तू वो उपकारी,
मैं अंधेरों से घिरा कोई आज,
रोशन करे जो मेरा कल तू वो प्रकाश,,
मैं भटका हुआ सा कोई पथ,
जो सही दिशा दे मुझको तू वो पथप्रदर्शक,,
कभी प्यार से कभी फटकार से मुझे सिखाया,
तपा के कुंदुन को जिसने सोना बनाया तू वो सुनार,,
मेरे सपनों को मिली जिससे पहचान,
उड़ सकूं जिसमें मैं तू वो आसमान,,
क्या क्या करूं मैं अपना तुझपे अर्पण,
संवारा जिसने मुझे तू वो दर्पण।
आपकि गरिमा का क्या करू मै बखान,
आपके गौरव का क्या करू मै गुणगान,
मेरे हर एक हुनर का है जो कद्रदान,
रहूं सदा जिसका कर्ज़दार मै
रहूं सदा जिसका मै कर्जदार मै
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Author:
चन्द्र प्रकाश रेगर (चन्दु भाई), नैनपुरिया
पो., नमाना नाथद्वारा, राजसमदं
This is great work! Congrats and keep it up!