🤷♀️ बेटी की पुकार
करुण पुकार संवेदना
ह्रदविदारक चीत्कार
कोई तो आकर मुझे बचालो
सुनकर इक “बेटी की पुकार”,
पूछो मेरी माँ के ह्रदय से जिसने थी
कितने नाजों बिटिया पाली
आँगन की बगिया की कली सा
सींचा था बाबुल ने बनकर माली
जो था रखवाला मेरी लाज का
भैया वो कर न सका रखवाली
आई जीवन में उसके अचानक
दुर्भाग्य की सी रात इक काली
निकली थी वो अपने घर से
बँधा था सिर अनजाने कफ़न से
बैठे थे कहीं पर ताक लगाए
करने को वीभत्स सा बलात्कार
इक मासूम सी बिटिया होगई
उन सभी हत्यारों की शिकार
कोई तो आकर के मुझे बचालो
सुनकर के इक “बेटी की पुकार”,
रोती बिलखती बेज़ुबान लाचार
पीड़ा से विनती करती बार – बार
लूटी अस्मत रौंदा था जिस्म को
किया दामन उसका था तार – तार
करते हो निष्ठुर बन कैसे तुम
किसी की बेटी का बलात्कार
किसने बढ़ाये हौसले तुम्हारे
और किसने दिया अधिकार
ऐसे घृणित अपराधी पर
होता है मुझे धिक्कार
ऐसी कुंठित मानसिकता का
नहीं बना कोई उपचार
शायद मौन इस समाज में
न पड़ी किसी को दरकार
इसीलिए तो शायद हत्यारे
बचते आए हैं हर बार
और फिर दोहराते हैं
न जाने कितनी ही बार
बार – बार बलात्कार
ऐसा घृणित समाज ये
नहीं मुझे तनिक स्वीकार
कोई तो आकर के मुझे बचालो
सुनकर के “इक बेटी की पुकार”!
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सोनल उमाकांत बादल , कुछ इस तरह अभिसंचित करो अपने व्यक्तित्व की अदा, सुनकर तुम्हारी कविताएं कोई भी हो जाये तुमपर फ़िदा 🙏🏻💐😊