हारा हुआ सिकंदर
मैं हारा हुआ सिकंदर हूॅं , मुझको जीवन का ज्ञान नहीं…
मेरे हृदय के सच्चे भावों का , जग में कोई सम्मान नहीं…
स्मृतियों की प्रतिछाया में , जीवन जीना आसान नहीं…
और होके पराजित हृदय से फिर, विजयी होना आसान नहीं…
हमसाये के संग में काॅंटो , पे भी चलना आसान है पर …
इकतरफा प्यार की पगडंडी पर , चलना यूं आसान नहीं…1
मैं हारा हुआ सिकंदर हूॅं , मुझको जीवन का ज्ञान नहीं…
मेरे हृदय के सच्चे भावों का , जग में कोई सम्मान नहीं…
नभ के मेघों से अश़्कों का , पृथ्वी पर गिरना काम नहीं…
ये विरह की व्याकुलता उसकी , ये भी उससे अनजान नहीं…
औ होकर प्रताड़ित जख्मों से , स्मृतियाॅं जो विस्मृत कर दे…
हाॅं भावों का मैं चालाक हूॅं , पर वह दुर्बल इंसान नहीं…2
मैं हारा हुआ सिकंदर हूॅं , मुझको जीवन का ज्ञान नहीं…
मेरे हृदय के सच्चे भावों का , जग में कोई सम्मान नहीं…
जीवन में अब नीरसता है , रस का कोई भी चिराग नहीं…
अब तो वियोग की कविता है , अनुराग का कोई राग नहीं…
फिर भी आशा की किरणे हैं , सूर्यास्त अभी तक हुआ नहीं…
नभ को पृथ्वी से प्रेम हुआ , इसको एहसास हुआ ही नहीं…3
मैं हारा हुआ सिकन्दर हूॅं , मुझको जीवन का ज्ञान नहीं…
मेरे हृदय के सच्चे भावों का , जग में कोई सम्मान नहीं…
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About Author:
मेरा नाम अनुराग यादव है। मैं उन्नाव, उत्तर प्रदेश से हूॅं। हिंदी भाषा में अत्यंन्त रुचि है। हिंदी के व्याकरण एवं कविता की बारीकियों से अनभिज्ञ हूॅं। फिर भी कविता लिखने का प्रयास करता हूं। त्रुटियों के लिये क्षमाप्रार्थी हूॅं एवं आपके आशीर्वाद और मार्गदर्शन का आकांक्षी हूॅं। 🙏🏻😊