HINDI KAVITA: सीधी बात

सीधी बात

लड़ने झगड़ने की
फिर से बात बढ़ाने की
अब बात न करो तो अच्छा है।

वैसे भी बात बढ़ाकर क्या कर लोगे?
प्रभु श्रीराम के मंदिर को
क्या फिर हथिया लोगे?
तुम्हारे लिए भी यही अच्छा है
कानून ने वहीं किया जो सच्चा है
मुफ्त में जमीन पा गये
क्या ये गच्चा है?

अल्लाह को हाजिर नाजिर
मानकर बताओ
क्या ये तुम्हारे हक का है?
हमने तो खुशी से
ये भी स्वीकारा
फिर तुझे
क्यों खुजली हो रही है,

मुल्क का अमन चैन,भाई चारा
तेरी आँखों में गड़ रही है?
मुफ्त की सलाह दे रहा हूँ मान लो
हम अपन पसंद लोग हैं जान लो।

परंतु बहुत हो चुका तुम भी जान लो
हमारी ताकत को भी पहचान लो।
हमनें अब आलस्य त्याग दिया है
अपने को खुद से पहचान लिया है।

मुल्क और कानून से गद्दारी
बहुत भारी पड़ेगी,
तुम्हारी एक भी गलती
तुम्हारी कौम पर भी भारी पड़ेगी।
तुम्हारी हरकतों की सजा
तुम्हारे भाइयों की उठानी पड़ेगी

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About Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002