निश्छल मन
मैं अबोध नादान हूँ
तभी तो खुशहाल हूँ,
छल,प्रपंच,ईर्ष्या, द्वेष से दूर
अपने में मस्त
महकती,चहकती हूँ।
बस आप सब से विनती है
मैं जैसी हूँ
वैसी ही रहने दीजिएगा,
मेरे मन में
अनीति, अपने पराये,भेदभाव
जाति,पंथ,नफरत का
जहर मत घोलिएगा।
मैं निश्छल मन लिए
यूँ सदा रहना चाहती हूँ,
आप सबको हँसते मुस्कराते
प्रेम,प्यार ,सदभाव से रहते
सदा देखना चाहती हूँ।
मेरा विश्वास है कि
आप सब मेरी भावना का
मान सम्मान रखेंगे,
बेटी हूँ तो क्या हुआ?
अपने हृदयों में थोड़ा सा ही सही
सुरक्षित स्थान रखेंगें।
अगर आप की कोई कृति है जो हमसे साझा करना चाहते हो तो कृपया नीचे कमेंट सेक्शन पर जा कर बताये अथवा [email protected] पर मेल करें.
यह कविता आपको कैसी लगी ? नीचे 👇 रेटिंग देकर हमें बताइये।
कृपया फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और whatsApp पर शेयर करना न भूले 🙏 शेयर बटन नीचे दिए गए हैं । इस कविता से सम्बंधित अपने सवाल और सुझाव आप नीचे कमेंट में लिख कर हमे बता सकते हैं।
Author:

✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002