HINDI KAVITA: विनती

विनती

हे हमारे पूर्वजों, पित्तरों
मैं कुछ कहना चाहता हू्ँ,


परंतु आप लोगों के
क्रोध से डरता हू्ँ।


पर आज कह ही डालूँगा
काहे का डर


वैसे भी अब डरकर
क्या होगा?


जब डरना था
तब डरा नहीं,


आप लोगों के दिखाये मार्ग का
कभी अनुसरण किया नहीं।


तभी तो आज रोता हूँ
जो कल मैंने किया था


वही सब आज
खुद पाता हूँ।


बहुत भूलें/गल्तियां की मैनें
आज उन पल शर्मिंदा हू्ँ,


जाने क्या पाप किये
फिर भी अभी जिंदा हूँ।


हे मेरे बाप दादाओं
मुझ पर तरस खाओ,


हम सबको माफ करो
हमारे अंतर्मन में आओ,


हमारे किये हुए श्राद्ध तर्पण को
अब स्वीकार करो,


अपने इस वंश बेल की भूल का
न कोई मलाल करो।


मैं एकदम बदल गया हूँ,
सोने सा तपकर निखर गया हूँ,


विश्वास कीजिए अब कभी
आपका दिल नहीं दुखाऊँगा,


आप सबके चरणों में
सदा शीष झुकाऊँगा।


अस मेरी विनती स्वीकार करो
वापस आकर हमारे साथ वास करो।

Read Also:
Hindi Kavita: हिंदी पर अभिमान है
Hindi Kavita: अन्न दाता का धरा पर मान होना चाहिए

अगर आप की कोई कृति है जो हमसे साझा करना चाहते हो तो कृपया नीचे कमेंट सेक्शन पर जा कर बताये अथवा contact@helphindime.in पर मेल करें.

1 Star2 Stars3 Stars4 Stars5 Stars (1 votes, average: 5.00 out of 5)
Loading...

About Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002