वो लाड़ली जनक की दुलारी
वो जो दुष्टों के सन्घार का कारण बनने वाली थी
वो जो धरा पर धर्म स्थापना को पधारी थी
वो लाड्ली जनक की दुलारी थी
मिटाने कश्तीं को संसार के
जन्मी वो चिन्गारी थी
श्री हरि की वो प्राण प्रिया
धरा से जन्मी बन फुलवारी थी
नहीं झुका अहंकार मे जो
उस दशानन के झुकने की बारी थी
भृष्ट हुई बुद्धि तब उसकी
जानकी की झलक बहुत ही न्यारी थी
हुआ था शंखनाद धर्म स्थापना को
मिटाने अधर्म को धरा से
स्वयं श्री हरि ने कमान संभाली थी
रुक गया था काल का पहिया भी
अधर्म के सन्घार संग
श्री रामचरित मानस
सृष्टि को मिलने वाली थी ।
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About Author:
मेरा नाम प्रतिभा बाजपेयी है. मैं कई वर्षों से कविता और कहानियाँ लिख रही हूँ, कविता पाठ मेरा Passion है । मैं बी•एड की छात्रा हूँ और सहित्य मे मेरी गहरी रुचि है।