मजबूरी
ये कैसी मजबूरी है
जीवनभर
जिस औलाद की खातिर
माँ बाप
अपना हर सुख त्याग देते हैं,
बुढ़ापे में वही औलाद
अपने सुख सुविधा की खातिर
माँ बाप को
अकेला छोड़ जाते हैं।
ये कैसी मजबूरी है कि
औलादें ये क्यों नहीं
समझना चाहते
कि समय रुकता नहीं,
बुढ़ापा आने से कोई
रोक सकता नहीं।
आज हमनें माँ बाप को
अकेला छोड़ रखा है,
कल हमें अकेला होने से
कोई रोक सकता नहीं।
इतिहास दोहराया ही जायेगा
मेरा बेटा भी मुझे
बुढ़ापे में निश्चित ही
अकेला कर जायेगा।
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About Author:
✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002