HINDI KAVITA: इत्तेफाक

Last updated on: November 30th, 2020

इत्तेफाक

ये महज इत्तेफाक नहीं हो सकता
गाँवो से शहरों की ओर
पलायन बढ़ता ही जा रहा है,
जन जन अपनी ही मिट्टी से
कटता जा रहा है।

गाँवों की सभ्यता का भी
नाश हो रहा है,
गुलजार रहने वाले हमारे गाँव
तन्हाइयों में रहने लगे हैं,
अपने ही लोग
अपनों से दूर हो रहे हैं।

खेती का बुरा दौर आ गया
मिट्टी की सोंधी महक को
बेगानेपन का जैसे अहसास हो रहा है।
अब आप इसे कुछ भी कहें
परंतु ये इत्तेफाक नहीं है,
लालच और भ्रम का
मानव शिकार हो रहा है।

प्रकृति की खूबसूरत गोद छोड़
कंक्रीट के जंगलों में
जाकर बस रहा है,
आधुनिकता और दिखावेपन की
भेंट चढ़ रहा है।

आने वाले खतरों को
भाँप नहीं पा रहा है,
भविष्य के लिए खुद ही
मौत के कुँए बना रहा है,
मौत से पहले ही खुद
अपनी अर्थी सजा रहा है
आने वाले पीढियों के लिए
तिल तिलकर जीने मरने का
बड़ी शिद्दत से इंतजाम कर रहा है।

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Author:

सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002