बेटा
सृष्टि के पथ पर 
बेटी जितनी जरूरी है 
बेटा भी उतना ही जरूरी है, 
क्योंकि सामाजिक संतुलन भी तो 
उतना ही जरूरी है।
फिर बेटा न होगा तो 
बेटियों का रक्षाबंधन 
भाई दूज कैसे होगा? 
बहन की शादी में 
लावा कौन परछेगा?
बहन की डोली को कंधा देने की
रस्म कौन निभायेगा,
माँ बाप के बाद
बेटी को मायके
कौन बुलायेगा?
बेटा नहीं होगा तो
बहनों को भाई से लड़ने का
सुख कहां मिल पायेगा?
भाई का पक्ष लेने का
बहन को अहसास कहां हो पायेगा,
मेरे भाई जैसा कोई नहीं
यह भाव कहां से आयेगा?
बेटा ही नहीं होगा
तो सृष्टि का विस्तार
कहाँ हो पायेगा?
फिर सामाजिक सरोकारों का
महत्व क्या रह जायेगा?
माना कि बेटियों के साथ
भेदभाव भी होता है,
लेकिन इसमें क्या
सिर्फ़ लड़कों का ही दोष होता है?
समाज है तो
विडम्बनाएं भी होगी,
पर बेटों के बिना भी तो
गाड़ी आगे नहीं बढ़ेगी।
इसलिए बेटियाँ जरूरी हैं तो
बेटा भी उतना ही जरूरी है,
क्योंकि सामाजिक संतुलन की भी
अपनी मजबूरी है।
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About Author:

✍सुधीर श्रीवास्तव
शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल
बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002

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