Hindi Poetry Mai Nahi Thakunga | मैं नहीं थकूंगा
मानव जीवन मिला है
तो तमाम दुश्वारियां भी होंंगी,
मुश्किलें राह रोकेंगी
पथ में बाधाएं भी आयेंगे
पथ कठिन भी होगा और लंबा भी।
कभी अकेलापन भी होगा
तो कभी टूटकर बिखरने
तो कभी थककर हार का भय भी
कभी उम्मीदें दम तोड़ती
डराती निराश भी करेंगी।
परंतु मुझे आगे ही बढ़ना है
न डरना, न पीछे हटना है
बस आगे ही आगे बढ़ना है,
क्योंकि मैं थकूंगा नहीं
मुझे तो बस मंजिल पाना है
अधर में फंसना नहीं है,
इसलिए थकना नहीं है
और मुझे विश्वास है
मैं थकूंगा नहीं, कभी भी नहीं।
बीत गया यह वर्ष
आखिर तमाम आशंकाओं
दुविधाओं के बीच
यह वर्ष भी बीत गया,
कोरोना का खौफ ढंग से
मिटा भी नहीं कि
ओमिक्रान के दहशत का
उपहार देता ही गया।
बहुत सी खट्टी मीठी यादें ही नहीं
कुछ बहुत अच्छी तो कुछ
बहुत तीखी, कलेजा चीरती
खौफनाक और हिला देने वाली
घटनाएं, दुर्घटनाओं को
स्मृति शेष भी बना गया।
यह सही है कि यह वर्ष भी
आखिर बीत ही गया,
पर जाते जाते भी
सीडीएस विपिन रावत को पत्नी संग
बारह अन्य जाँबाजों को भी लील गया
हम सबके कलेजे को चीर गया।
फिर भी चलो आखिरकार
यह वर्ष भी बीत गया
अब तो इतिहास हो गया।
नव वर्ष की चुनौतियां और तैयारियां
नववर्ष के साथ नयी नयी
चुनौतियां भी कम नहीं है,
ओमीक्रान पहले से ही डरा रही है,
राजनीति का पराभव
किसी खतरे से कम नहीं है,
नेताओं के बिगड़ते बोल
देश की मानसिकता दूषित कर रहे हैं,
स्वार्थ में अंधे नेता
देश के लिए जोंक से कम नहीं हैं।
अराजकता और आतंकवाद फैलाने के
खतरे बरकरार हैं,
देश को अस्थिर और कमजोर ही नहीं
षड्यंत्र कर देश को हर स्तर पर
नीचा दिखाने का प्रयास करते रहने वाले
देश में कथित रहनुमा भी कम नहीं हैं।
नारियों का भय आज भी बरकरार है
हर बात पर सरकार पर
आरोप लगाने वालों की भरमार है।
संसद विधानसभाएं अखाड़ा सी
अब लगने लगी हैं,
जनता के धन पर बेशर्मी से नृत्य की
जैसे रीति बन गयी है।
बेरोजगारी डरा रही है,
बढ़ती जनसंख्या भारी पड़ रही
जनसंख्या नियंत्रण चुनौती है,
जनसंख्या नियंत्रण बिल
अभी टेढ़ी खीर लगती है।
अल्पसंख्यक बहुसंख्यक का खेल
खतरनाक हो रहा है,
लगता है जैसे हमारे लोकतंत्र को
हर दिन डरा है,
समस्याएं स्वास्थ्य, शिक्षा की भी
अभी कम नहीं हैं,
हमारी सरकारें प्रयास भी
कम नहीं कर रही हैं।
संवैधानिक संस्थाओं पर हमले
हमारी व्यवस्था को मुँह चिढ़ा रहे हैं,
तैयारियों पर चुनौतियां भारी पड़ रही हैं।
देश की अर्थव्यवस्था को
मुँह चिढ़ा रही हैं।
हम भी कम नहीं हैं
सुविधाएं सरकार से सब चाहते हैं
साथ ही सरकार की राह में
रोड़े अटकाने में पीछे कहाँ हैं?
चुनौतियों और तैयारियों का
कोई मेल नहीं है,
बाहर भीतर की कैसी भी चुनौतियां
सरकार हर चुनौती से निपट सकती है मगर उसकी हर तैयारी में
हम आप ही नित नयी
दीवार बन रहे हैं,
देश के विकास में काँटे बिछा रहे हैं।
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Author:
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.