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Hindi Poetry on Hindi Diwas | हिंदी दिवस पर कविता | Hindi Poem | Hindi Kavita
हिंदी भाषा
जिसने अवगत कराया हमें,
इक दूजे की भावनाओं से,
जो मिलवाती हैं हमें खुद से,
हर होनी की सम्भावनाओं से।
जो परिचय देती है अपना,
अपनी स्वर्णिम संवेदनाओं से,
जो लक्ष्य उजागर करती है अपना,
कठिन श्रम साधनाओं से।
जो एकता की डोरी से,
बांधे रखती है हमें निर्मल ज्ञान से,
जिसकी उफान की छींटे अक्सर,
जुड़ी होती है अपनी पहचाना से।
ये भूमि बिना जल प्यासी है,
आकाश बिना जल प्यासा है,
बिना किसी अनमोल लम्हें के,
यादों का मोल धुआं सा है।
जो नींव सी होती है जीवन की,
वो आशा और निराशा है,
शब्दों की रेशमी ज़बान है जो,
वो हमारी हिंदी भाषा है।
हिंदुस्तान का सम्मान,
सर्वमान्य एक जिज्ञासा है,
सीमाहीन,सर्वव्यापक,सर्वगुण संपन्न,
ऐसी समृद्ध हिंदी भाषा है।
Author:
प्रो.आराधना प्रियदर्शनी
स्वरचित व मौलिक
हजारीबाग, झारखंड
हिंदी दिवस पर कविता
बहुत हो चुका अब
गुमराह करना बंद करो,
आजादी के चौहत्तर साल बाद भी
हिंदी की दुहाई दे रहे हो,
लुका छिपी का बच्चों जैसा
खेल खेल रहे हो,
हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह
हिंदी पखवाड़ा मना कर
कौन सा ओलंपिक पदक जीत रहे हो?
अरे अब तो आँखे खोलो
समूचे राष्ट्र के लिए हिंदी की
अनिवार्यता की राह तो खोलो,
हिंदी को राजभाषा की जंजीर से
अब बस आजाद ही करो,
हिंदी को राष्ट्रभाषा बन गई
बस इस ऐलान के लिए भी
कम से अपना मुँह तो खोलो।
हिन्दी
यह कैसी विडंबना है कि
हमनें हिन्दी को
अपनी ही भाषा को
उपेक्षित कर रखा है,
हमें शर्म भी नहीं आती
कि हमें हिन्दी दिवस
हिन्दी सप्ताह, पखवाड़ा
मनाना पड़ता है।
अरे! हमसे अच्छे तो
वो विदेशी हैं
जो अपनी भाषा के साथ साथ
हिन्दी को मान दे रहे हैं,
हिन्दी सीख रहे हैं,सिखा रहे हैं
हिन्दी अखबार, पत्र-पत्रिका
निकाल रहे हैं,
हम से ज्यादा हिन्दी का मान कर रहे हैं।
और हम हैं कि न तो हम
ढंग से अंग्रेजी को सम्मान दे रहे है
और न ही अपनी मातृभाषा को
उचित मान,स्थान दे पा रहे हैं।
मगर हम भी क्या करें?
हमारी तो आदत है न
घर की मुर्गी साग बराबर
और हम नहीं सुधरेंगे का
हमारा फार्मूला।
रोती हिन्दी,
सिसकती हिन्दी,
जय हिन्दी।
हमारी बेशर्मी को
आधी अधूरी अंग्रेज़ी, हिन्दी
झुककर नमन करे हिन्दी।
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