लघुकथा: माता पिता के दायित्व

माता पिता के दायित्व

आज के इस व्यस्त वातावरण और तकनीकी युग में माता पिता के लिए भी अपने दायित्वों का निर्वहन कठिन होता जा रहा है।

बढ़ती महँगाई ने जीवकोपार्जन के लिए बहुत सारे माता पिता काम पर जाते हैं ,ऐसे में दुश्वारियां और बढ़ती जा रही हैं।

फिर भी हर माता पिता अपने दायित्वों की दिशा में तो लगा ही रहता है।

हमें बच्चों से दोस्ताना व्यवहार कर उन्हें इतनी स्वतंत्रता तो देनी ही होगी कि वह जीवन में तनाव मुक्त रह सकें।उन्हें आज की परिस्थितियों/माहौल की भी सीख और सुरक्षा के प्रति सचेत भी करते रहना होगा।

सोशल मीडिया आज की जरुरत है ,सबको पता है कि बच्चों को इससे अलग नहीं किया जा सकता, परंतु उसके दुरूपयोग और उसके नकारात्मक पहलुओं से भी सचेत करते रहने,निगाह बनाये रखने, उनके गैजट्स कभी कभी जाँचते रहने की भी जरूरत है।

उनके दोस्तों के बारे में,बात करने के बारे में,अनावश्यक प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए।आज के समय में लड़के, लड़कियों का मिलना जुलना, बातचीत करना हर समय गलत नहीं होता।हाँ अगर बच्चे हमसे कुछ छिपाने की कोशिश करते हैं,हमसे छुपकर बातचीत, चैटिंग इत्यादि करते हैं तब सावधान होने और सतर्क होने की जरूरत है। लेकिन बहुत सावधानी और संयम से ।

क्योंकि आज के बच्चों में अपने माता पिता को गलत समझने, विद्रोह करने या अप्रत्याशित कदम उठाए जाने की भावना कुछ अधिक हो रही है।इसलिए संयम से उन्हें सही मार्ग पर लाने की चुनौतियों को सूझबूझ, संयम और दोस्ताना व्यवहार से ही यथार्थ और भविष्य के प्रति सचेत किये जाने की आवश्यकता है।

आज हमें अपने बच्चों को अपने आर्थिक हालातों से भी रूबरू कराते रहने की जरूरत है,ताकि बच्चा अपने दोस्तों से तुलना करने से भी बचने का प्रयास करे।

साथ ही अपने समय से आज के समय की तुलना भी काफी हद तक निर्रथक ही है।समय के साथ हम सब को वर्तमान परिदृश्यों पर चलना ही होगा।तभी पीढ़ीगत परिवर्तन के माहौल से सामंजस्य बिठाया जा सकता है।
कुल मिलाकर संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि समय और माहौल के साथ चलकर ही हम सभी माता पिता का दायित्व निभाकर हम अपने बच्चों की भावनाओं का भी सम्मान करते हुए सावधानी से बिना तुलना के यदि अपने दायित्वों का निर्वहन करते हैं,तो काफी हद तक सफल हो सकेंगें।

तभी हम बच्चों का विश्वास जीत सकेंगे, उनसे हर बात जान सकेंगे।

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सुधीर श्रीवास्तव
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